पैमाना गम का
पैमाना गम का कोई,
है नही अगर होता,
तेरे यूं दूर जाने की,
भनक से जल गया होता।
तेरी खुश्बू से हैं सारे,
गुलशन आज भी महके,
जो तू इनमें नहीं होता,
गुलशन गल गया होता।
तू वो है, जो साँसों में,
हवा बनकर उतरता है,
तेरा जो साथ न होता,
कभी का मर गया होता।
शायद मुझसे ही कोई,
खता हो जाती है अक्सर,
नहीं तो तू मेरे दिलबर,
बदल यूँ न गया होता।
समुन्दर लाख गहरा है,
नहीं उन आँखो से गहरा,
अगर इक आँसू गिर जाता,
समुन्दर बह गया होता।
हजारों जामों से ज्यादा,
नशा है तेरे इन लब में,
जो तू मुझको पिला देता,
न मयखाने गया होता,
ये लाली तेरे गालों की,
है छाती अब भी शामों में,
तू जो बाहों में आ जाता,
जमाना जल गया होता।
लेकर तेरे तकिये को,
मैं बाहों में यूं सोता हूँ
अगर तू साथ होता तो,
लिपट यूं ही गया होता।
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