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Showing posts from June, 2017

मैं क्या ढूंढता हूँ?

मैं क्या ढूंढता हूँ, मैं क्यों ढूंढता हूँ , दिवाना बना यूं किधर घूमता हूँ, मेरे दिल पर किसका असर हो गया है, मैं किसको यूं ही बेख़बर ढूंढता हूँ .... बहुत उम्र मैंने यूं ही बिता दी, नजर से पिला दे, मिला न वो साकी, तन्हा सी मैं एक नजर ढूंढता हूँ, मय में है किसका असर ढूंढता हूँ बहुत देर से यूं ही चलता रहा हूँ, अंधेरों में दिल की भटकता रहा हूँ जाने न किसका मैं घर ढूंढता हूँ, मिलता नहीं है मगर ढूंढता हूँ, मंदिर में पाया न मस्जिद में पाया, न सागर में पाया न साहिल पर पाया, वो क्या जिसको शाम-ओ-सहर ढूंढता हूँ, महफिल में किसकी नजर ढूंढता हूँ..... मैं क्या ढूंढता हूँ, मैं क्यो ढूंढता हूँ, दिवाना बना ये किधर घूमता हूँ, समझ में न आई थी ये बात मुझको, देखा नहीं मैने जब तक था तुझको.. तुझे ढूंढता हूँ, तुझे ढूंढता हूँ, दिवाना बना मैं तुझे ढूंढता हूँ, तन्हा सी तेरी, नजर ढूंढता हूँ, मैं मय में, तेरा ही असर ढूंढता हूँ, कब से तेरा ही मैं घर ढूंढता हूँ, तुझी को मैं शाम-ओ-सहर ढूंढता हूँ, महफिल में तेरी नजर ढूंढता हूँ, नजर ढूंढता हूँ, नजर ढूंढता हूँ, तुझे ढूंढता हूँ, तुझे ढूंढता हूँ,

आदि, अंत, मध्य तुम सब हो

आदि, अंत, मध्य तुम सब हो,  मेरे इस जीवन सफर का, दिन रात सुबह हो मेरी,  तुम्ही रंग मेरे गुलशन का। बहुत दिवस बीते तुम आये,  आये भी न आये जैसे, कितनी खुशियां लेकर आये,  लाये, कुछ न लाये जैसे। माना तुम ही प्राण हो मेरे,  सच्चे एक भगवान हो मेरे। बोलो कब तक यूँ ही जलेगा,  बुझता दिया मेरे जीवन का। दिन रात सुबह हो मेरी,  तुम्ही रंग मेरे गुलशन का। कोई ऐसी बात नही,  जो तुमसे कह पाये हम, कोई ऐसी रात नहीं कि,  ख्बावों में खो जायें हम, मेरे कण्ठों की बोली तुमही,  मेरी साँझ और रात तुम्हीं हो, साँसो की सरगम हो तुम ही, साज तुम्ही मेरे जीवन का। दिन रात सुबह हो मेरी,  तुम्ही रंग मेरे गुलशन का। आते नहीं तो अच्छा होता,  हम जीवन में सामने तेरे, इस दिल में तन्हाई भले थी,  पर फिर भी कुछ अरमान थे मेरे, इस दिल के मेहमान हो अब तुम,  जिंदा मैं और जान हो अब तुम। सपनों का एक सार हो तुम ही,  आधार तुम्हीं मेरे जीवन का। दिन रात सुबह हो मेरी,  तुम्ही रंग मेरे गुलशन का।

वेवफा हो तुम

वेवफा हो तुम, इसलिए नहीं कि, तुमने वादे तोड़े, बल्कि इसलिए, कि रोज चली आती हो, ख्वाबों में तड़पाने के लिए। जो तुमको जाना था, और तुम गए भी, अपनी यादें अपने सपने, क्यूं नहीं ले गए तुम, मेरी मोहब्बत, मेरे दिल को, क्यूं नही लौटा गए, वेवफा हो तुम, इसलिए नहीं कि, तुमने वादे तोड़े, बल्कि इसलिए, तुम अपना तो सब कुछ ले गए और मेरा भी... मैं खुश हूँ, इसलिए कि तुम खुश हो, मैं चुप हूँ, इसलिए कि, तुमने मौन धारण कर लिया है, मैं तुमसे वजह नहीं जानना चाहता, मगर इतना तो हक है कि, तुमसे कहूं, कसमें दूँ, कि याद नही आना तुम, वेवफा हो तुम, इसलिए नहीं कि तुमने वादे तोड़े, इसलिए नही कि तुम, रोज चली आती हो, ख्वाबों में तड़पाने के लिए, बल्कि इसलिए, कि मेरी आखिरी ख्वाईश भी, पूरी नही की तुमने। क्योकि, जो तुम्हारा था, उसकी तो मौत हो गई, तभी तुम जब छोड़ गई उसको, मैं जिंदा हूँ जो न वो है, न उसका साया है, मेरा बाकि अस्तित्व ही नही, शायद सब पीछे भूल आया है, ओह! वो सब तो मैं तुम्हें दे आया, अपने दिन, अपनी रातें, अपना दिल अपनी बातें, पर तुमने तो वो सब, अपना बना लिया, और मुझे

तुझे खोकर पाया खुद को

कि जब था साथ तेरा तो, नहीं कुछ पास था मेरे, तुझे खोकर के पाया है, खुद ही को साथ बस मेरे। न पूछो गम का वो आलम, कि जब तुम छोड़ भागे थे, मेरे दिल, मेरी उल्फत के, सब टूटे कच्चे धागे थे, कहीं कुछ भी नही था तब, मैं खुद हूँ साथ बस मेरे। तुझे खोकर के पाया है, खुद ही को साथ बस मेरे। कभी मुझसे मिला था तू, दिल ये तुझपर वारा था, कि सालों तक तूहीं मेरे, जीने का सहारा था, कि सपने है सभी टूटे, है बाकी अहसास बस मेरे। तुझे खोकर के पाया है, खुद ही को साथ बस मेरे। तुझे पाऊंगा इसी धुन में, मैं जग को ही भुला बैठा, तू मेरे दिल पर यूं छाया, मैं खुद को ही मिटा बैठा, अब भी है यूं ही बिखरे, नादान जज्बात सब मेरे। तुझे खोकर के पाया है, खुद ही को साथ बस मेरे। कि तू भी था खुशी भी थी, हसीन ये जिन्दगी भी थी, कि सब कुछ था मगर दिल में, कहीं कोई कमी भी थी, उमंगे है, नई मंजिल, नये पर साथ बस मेरे। तुझे खोकर के पाया है, खुद ही को साथ बस मेरे। मैं करता हूं कहीं कुछ भी, नया तो क्यूं अखरता है, जमाने का मेरे हंसने से, न जाने क्या बिगड़ता है, जब मैं रो रहा था तब, कोई न साथ था मेरे, तुझे खोकर के पाया है, खुद