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Showing posts from November, 2016

है तेरे नहीं बस की.....

1.  तुम मुझको भुला दोगे ये भी एक हकीकत है,  दिल तोड़ के जाना भी, है ढंग मोहब्बत का, हम लाख रहें तन्हा, तन्हाई में भी तुम हो, तेरा छोड़ के जाना भी, है रंग मोहब्बत का। तुम ही थे कभी आये, शरमाकर बाहों में., थे साथ चले तुम ही, ले हाथों को हाथों में उस शाम सिंदूरी पर, अब छाई उदासी है तुम कैसे भुला दोगे, वो संग मोहब्बत का। क्या होगा बिना तेरे, अंदाजा नहीं कुछ भी, यादें ही दिल में हैं अब ज्यादा नही कुछ भी,  इनको भी मिटाने को, सौ तीर चलाते हो, लगता है दिखा दोगे, हर रंग मोहब्बत का। सब हार के बैठा हूँ, तुम जीत गए सब कुछ, क्या क्या न किया लेकिन, है हाथ न आया कुछ, कहते हैं कि उल्फत ये, एक जंग ही होती है, मुझको भी सिखा दोगे, हर ढंग मोहब्बत का। 2. मेरे ख्बावों ख्यालों में, रंग बन तुम छाये हो, बंद आँख करू जब भी, तुम ही तुम आये हो, साँसों मे मेरे खुश्बू, अब तक वो तुम्हारी हैं, मैं कैसे मिटा दूं वो, अहसास मोहब्बत का। शब पर भी उदासी है, सांसों पर उदासी है, बिन तेरे सनम छाई, उपवन पर उदासी है, तुम क्रूर बहुत हो ये, लब से तो हैं कह देते, पर दिल ही समझता है, जज्बात मोहब्बत का। ये कैसी मोहब्बत थी, जिसको तुम

रंगत तेरी सूरत तेरी, कितनी भी अनमोल सही

रंगत तेरी सूरत तेरी, कितनी भी अनमोल सही, मेरे इश्क के आगे लेकिन, इसका कोई मोल नहीं। जब तक न छुआ हो भँवरें ने, फूलों पर है रंगत कब आई? परवाना हो कुर्बान न जब तक, शमा का कुछ मोल नहीं। जो भी कुछ था तेरा मेरा, उसको अपना कर लें आ, जीवन के इस इन्द्रधनुष में, रंग सुनहरे भर लें आ। जग से क्या लेना देना जब, मन से सब मंजूर हमें, मिटा के सब दिवार "मैं" की, प्रेम अमर ये कर लें आ। रूप का तेरे, जग में मेरे, इश्क बिना कोई मोल नहीं सब कुछ बिकता जग में लेकिन, बस मिलता बेमोल यही। रंगत तेरी सूरत तेरी, कितनी भी अनमोल सही। मेरे इश्क के आगे लेकिन, इसका कोई मोल नहीं। जीवन है अनमोल प्रिये ये, रूस्वा तन्हा (तन्हा-तन्हा) क्या जीना, सब कुछ मिटा कर ही तो, रंगत लाती है हिना। युग युग से जग ने दोहरायी, प्रेम कथा दिवानों की, साथ में हो जब जाम नयन के, मधुशाला जाकर क्या पीना। ...तो आऔ प्रिये खत्म करें ये, झगड़ा तेरा मेरा का.... चाहे जमीं हो चाहे गगन हो, इनका ही बस जलवा है तेरी सीरत मेरी उल्फत, सबसे है अनमोल यही, सादगी तेरी सबसे बड़ी है लेकिन, नेमत दुनियाँ में। इसके आगे जग झूठा 

ठान लो तो जीत है

जिन्दगी की बस यही तो, एक सरल सी रीत है, मान लो तो हार है और ठान लो तो जीत है।। कदमों में है, क्या समंदर, क्या शिखर, क्या आसमा, तेरी हद से कुछ नहीं, बाहर मेरे मन मीत है तू क्यूं हिम्मत हार बैठा, है भले दुष्वार ये, हर तरफ मुश्किल बड़ी, है कहां इनकार ये, जिन्दगी है नाम इसका, ये तो बदले हर घड़ी, कुछ मुकद्दर से नही, बस कर्म से साकार ये। हो भले ही प्यास उच्चतम, शुष्क सब संगीत है मान लो तो हार है और ठान लो तो जीत है।। खो गई मंजिल भले ही, वक़्त के इस धार मे , है नही मिलता सभी को, ये जहां उपहार में, जिसने उठ कर तोड़ डाले, है सभी बन्धन सफर के, उसके कदमो में झुके सब, जीत छुपी हर हार में। छा गया घनघोर तम पर, हाथ में एक दीप है, मान लो तो हार है और ठान लो तो जीत है।। कैसे छूटे राह वो जो, मंजिलो पर जा रही, मंजिलो से बस हवाए, महकी-बहकी आ रही, हो भले ही दूर लेकिन, रुक मै जाऊँ भी तो कैसे, मुझको पा लो बस यही, कह मंजिले बुला रही, सारा जग हो जाये रुस्वा, या टूटी सारी प्रीत है, मान लो तो हार है और ठान लो तो जीत है।।

दिल का ठिकाना याद है

यादें तेरी बाहों में मे रा , दिल का ठिकाना याद है, तू भले भूली, मुझे, गुजरा जमाना याद है। हमने खायी थी कसम ये, साथ जन्मो-जन्म का है, तू जिसे भूली, मुझे हर, वो फसाना, याद है। कौन कहता है जमाना ये, याद कुछ रखता नहीं, जग को तो अब तक हुआ जो, हर दिवाना याद है। तू भले माने न माने, प्यार तू समझी नही, तेरे दिल पर अब भी चलता, मेरे दिल का राज है। दिल न भूला आज तक वो, तुझसे मिलने का मजा़, तेरे दिल में भी अभी तक,  जगह मेरी कुछ खास है। तू भले समझे न समझे, दिल तेरा सब जानता है, गूंजती दिल में तेरे सुन, मेरी ही आवाज़ है। आज भी आया नहीं, इकरार वाला ख़त तेरा, घर मेरा उजड़ा हुआ बस, ये जहां आबाद है। किससे कहता दिल की बातें, मैं छुपाता ही गया, तू ही जब समझा नहीं, जग से क्या फिर आस है। कल मिले तो शर्म से खुद, झुक गई आँखें तेरी, तेरी नजरों को अभी तक, प्यार का अहसास है।

हँसती नजर

नजर हँसते हुए, फूलों में तू ही आ रही है। तेरी खुशबू ही, बागों को, यूं महका रही है। काफ़िर ना मुझे समझो, जहांन वालो यूं ही तुम, है मय़खाना, वो नजरों से, मुझे बहका रही है। वो सावन का खिला गुलशन, है महकाती हवाएं उसी की जुल्फों में बंधक ये बिजली ये घटायें, वही मस्ती में जुल्फें बस घनी, बिखरा रही है, है मय़खाना, वो नजरों से, मुझे बहका रही है। खुला आंचल यूं,  सरसों ने हो ली अंगराई. उसी की इक हँसी से, मस्ती फाल्गुन में है छाई, वही है जो, हमेशा दिल को, मेरे भा रही है, है मय़खाना, वो नजरों से, मुझे बहका रही है। नजर कातिल, असर कातिल, है बहका हर दीवाना, उसी की  छाँह, पड़ने से खिला, दिल का विराना, वही एक बस छटा बन कर, जगत पर छा रही है, है मयखाना, वो नजरों से , मुझे बहका रही है। ©"vishu"

मरता लोकतंत्र

यह नया भारत है, हमारा नया प्यारा भारत। जो लोग सहिष्णुता पर लम्बे लम्बे भाषण भोक रहे थे कहां हैं वो जो सहिष्णुता को हिन्दू मुस्लिम से जोड़कर देख रहे थे, कहां है वो जिनको सहिष्णुता कम होने वाले बयान देशद्रोह लग रहे थे। क्या लोकतंत्र में सरकार से सवाल करना देशद्रोह है। हम क्यों समाज को टुकड़ों में बाँटने में जुटे हैं, हम ये क्यों नहीं समझ रहे की किसी का भी किसी भी नेता का किसी धर्म को समर्थन देना सिर्फ उसकी अपनी स्वार्थ सिद्धि है; वो न किसी धर्म का हितैषी है, न समाज का, न ही देश का हितैषी। उसको सिर्फ अपनी कुर्सी से मतलब है। इसलिए आओ लोकतंत्र बचाओ, समाज बचाओ, घर बचाओ, खुद को बचाओ, और सबसे जरूरी देश बचाओ। नेताओं द्वारा झूठे भाषण देकर भूल जाना एक प्राचीन चलन है लेकिन इसमे नया अध्याय ये जुड़ा है कि अब साफ साफ बोल दो ये किसने बोला, यह तो सिर्फ भाषण को चटपटा करने के लिए बोला गया, अरे भाई चटपटा खाना होगा तो गली के बाहर के गोलगप्पे बाले से पैसे देकर खा लेंगे, चटपटा सुनना होगा तो फिल्मो, नाटको, सोशल साईट की कमी नही है। तुम देश चलाने के लिए वोट मांगने आये हो, कोई सामान बेचने नही, तुमसे ये उम्मीद न