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Showing posts from December, 2020

घाट यमुना के फिर आओ

न जुदाई का ही शिकवा, न तो कोई चाह मितवा, बस यही एक आरजू है, घाट यमुना के फिर आओ। मन की सारी आह विस्मृत, तुझमे सारी चाह विस्मृत, है विरह की आग व्यापक, घाट यमुना के फिर आओ। दीप कितने जल उठे हैं, नयनों में भर जल उठें हैं, श्याम जब से तुम गए, मिलन के पल खल उठें हैं, कोरी आशा ये नही है, हाँ निराशा भी नही है, देव तुम, प्रबरह्म तुमसा, कोई दाता भी नहीं है। तान दो फिर प्रीत की तुम, श्याम बंसी फिर बजाओ, है विरह की आग व्यापक, घाट यमुना के फिर आओ। कृष्ण बने हो श्याम बनो फिर, ओ कान्हा घनश्याम बनो फिर, हो कर्मो के न्यायधीश पर, महारास का धाम बनो फिर, प्रेम बिना आधार नहीं कुछ, राधिका बिन श्याम नहीं कुछ, मुरलीधर घनश्याम न होगे, प्रेम बिना तो ज्ञान नहीं कुछ, अहम कुचलने ज्ञान का फिर, श्याम गोवर्धन उठाओ, है विरह की आग व्यापक, घाट यमुना के फिर आओ। विरह की इस वेदना पर, मुझको कोई शोक नहीं है, आत्मा में तूं बसा एक, तन की कोई रोक नहीं है, पर है मन का वेग चंचल, तुझको अपने पास चाहे, काश फिर तू कान्हा आये, माखन मिश्री फिर चुराये, हाथ लेकर हाथ अपने, नंदनवन में फिर घुमाओ, है विरह की आग व्यापक, घाट यमुना के फिर आओ।

बहुत सताया तुमने बीस

नया सवेरा, नया उल्लास, नव उम्मीद लाया इक्कीस, भूले से भी लौट न आना, बहुत सताया तुमने बीस। तुमने सारे स्वप्न सुनहरे, एक ही पल में चूर किये, जितने भी थे आस के दीपक, तुमने सब बेनूर किये, कितने भूखे, कितने टूटे, मीलों पैरों पर बोझ लिए, कितनी माओं के बच्चे हंसते, उनसे तूने दूर किये, न तो संगी और न साथी, बच्चों के मन की ये टीस। भूले से भी लौट न आना, बहुत सताया तुमने बीस। तुम फिर उसको न दोहराना, तुम लेकर उस राह न जाना, तुमसे सबकी आस है जिंदा, तुम न देकर धोखा जाना, अबकी सारी खुशियाँ होंगी, जन्म दिवस पर बतियाँ होंगी, नए नए जो स्वप्न सजाए, तुम उनको फिर तोड़ न जाना, हो ऐसा उन्मांद खुशी का, स्वर्ग भी जाये हमसे खींझ, नया सवेरा, नया उल्लास, नव उम्मीद लाया इक्कीस। नया सवेरा, नया उल्लास, नव उम्मीद लाया इक्कीस, भूले से भी लौट न आना, बहुत सताया तुमने बीस।

सुबह सुबह जो छू लेते हो...

सुबह सुबह जो छू लेते हो, तुम इस तन की डाली को, प्रेम भरा आलिंगन करता, ज्यों भंवरा फुलवारी को। नयन ये बरबस झुक जाते हैं, लब लब पर आ रुक जाते हैं, लहरा उठता है मन का सागर, पा गालों पर लाली को। स्वर्ग हुई है जीवन बगिया, पावन मन का कोना-कोना, तेरा होना मुझको भाया, तुम ही अब जीवन का गहना, आस यही कि भूल के खुद को, मन में तेरे छुप जाऊं, प्रीतम मेरे थाम लो आकर, मन की तुम लाचारी को, सुबह सुबह जो छू लेते हो, तुम इस तन की डाली को, प्रेम भरा आलिंगन करता, ज्यों भंवरा फुलवारी को, टूट गई सब लाज की गाठें, सदियों से थीं प्यासी रातें, मिलन के इस आवेश में भूली, करनी तुमसे कितनी बातें, राज सभी खुलते जीवन के, राग नए बजते हैं मन के, तुम ही कह दो थाम लूं कैसे, इस यौवन मतवाली को। सुबह सुबह जो छू लेते हो, तुम इस तन की डाली को, प्रेम भरा आलिंगन करता, ज्यों भंवरा फुलवारी को। प्रथम मिलन मधुमास की रातें, इतनी जीवन की सौगातें, तुम को पाया अब पाना क्या, सब पूरी मन की फरियादें, सब मधुमय है जीवन लय है, अमर हमारा ये परिणय है, तुमसे मेरा तन मन रोशन, भूल ही बैठी दीवाली को। सुबह सुबह जो छू लेते हो, तुम इस तन की डाली को, प

फेसबुक से दूर रहो

"फेसबुक चलाने वाली सभी माताओं और बहनों को। हमारा एक सुझाव है। आज फेसबुक पर कुछ ऎसे लोग मौजूद हैं। जिनका मकसद माताओं और बहनों को फ्रेंड बना कर उन्हें शोसित करना है। अतः आप सभी बहनों से मेरा हाथ जोड़कर निवेदन है। अपनी फ्रेंड लिस्ट सीमित रखें। या फिर किसी भी फ्रेंड के गलत कमेंट देखकर उन्हें तुरंत अपनी फ्रेंड लिस्ट से तुरंत ही ब्लॉक कर दें। किसी से भी किसी प्रकार की बहस ना करें। इस पोस्ट के माध्यम से हमारा सिर्फ एक ही मकसद है। कि हमारी सारी माताएं एवं बहने सुरक्षित रहें।" फेसबुक पर एक पोस्ट पढ़ी जो ऊपर दी गई है, जिसको पढ़े लिखे लोग शेयर करते है कि फ्रेंड्स न बनाओ, बात न करो, महिलाएं शेयर करतीं है पढ़ कर लगता है वो डरा रहीं हैं, औरत होने की सज़ा देने को उतारू हैं। हमेशा औरतों को बोला जाता है डरो, डरो डर कर रहो, घर से बाहर न निकलो, घूंघट करो, बात न करो, कुछ गलत हो तो छुपाओ, कोई गलत करे तो भी तुम्हारी गलती है। तुम औरत हो, तुम टुच्ची हो, तुम्हारी अस्तित्व की सीमा पुरुष है। तुम सिर्फ उसके सेवा के लिए हो, उसके लिये खाना बनाओ, पानी दो, कपड़े धोने का काम करो, परिवार सम्भालो, बच्चे

तुम्हारा चेहरा हैं चांद जैसा

तुम्हारा चेहरा हैं चांद जैसा, तुम्हारी जुल्फें घटा बनी है। दीवाने कट कट के गिर रहे हैं, तुम्हारी नजरें कज़ा बनी है। न्याय भला अब करेगा कैसे, इंसाफ का जो है देवता भी। उसकी नज़रों में तू ही तू एक, दिल की हसरत जवां बनी है। कहीं किसी दिन निकल न जाना, कोई कन्हैया मन हार बैठे, ये घाट यमुना के बहके-बहके, सुरा तुम्हीं से हवा बनी है। कोई नज़र में बसा हुआ है, मगर जहां को दिखाऊँ कैसे, कि कौन लेकर गया है चैना, ये साँसे किसकी सदा बनी है। हैं खेल दिल के बड़े ही निष्ठुर, जो चाहा उसको ही पाना मुश्किल, कोई बचाए हमें हमीं से, अब खुद की चाहत सजा बनी है। निगाह भर के न देख पाया, लो बीती अंतिम पहर मिलन की,   भला मैं कैसे ये चांद छू लूं, मेरी ये उलझन ख़ता बनी है।