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अरमानों पर पानी है 290

क्या हुआ जो दिल के सारे अरमानों पर पानी है, दिल ने तेरे इश्क से मेरे, रार ये कैसी ठानी है, ऐसे तूने अरमानों को खत्म किया है सीने में, दुनिया कहती तुझपर मरना, मेरी बस नादानी है। दुनिया के बस कह देने से, दिल बोलो कब डरता है, इश्क तो वो है सदियों से जो, जूती पर जग रखता है, जग के सारे समझाने से, कैसे माने दिल मेरा, दुनिया को ठुकरा देने की, जब इस दिल ने ठानी है। रोज चले आते समझाने, दिल ने कब कुछ पूछा है, डर लगता है जग को सारे, ख्वाब जो मेरा टूटा है, जग को डर है रीत नई फिर, इश्क मेरा ये गढ़ लेगा, खुद की लाज बचाने को ही, जग की आनी-जानी है। तुम भी सुन लो सदियों तक, तुमको तो आना होगा, प्रीत के मेरे अवशेषों पर जग को झुक जाना होगा, द्रोह सुनो मेरा अविचल है, जग की कुंठित रीतों से, जो मन को मंजूर नहीं वो, बात कब दिल ने मानी है। आज कहो तो जग को जाकर, सारा हाल बता दूँ फिर, तुमसे प्रेम मुझे कितना है, जाकर क्या दिखला दूँ फिर, लेकिन जग से कह देने में, प्रेम को क्या मिल जाएगा, तू न समझा, तो जग से फिर, कुछ कहना बेमानी है

हर्ष विकंपित हो रही हैं..p 289

हर्ष विकंपित हो रही हैं, मन में लो सारी व्यथाएं  राम तुम आए हो गूंजें, प्रेम से सब दस दिशाएं। हम व्यर्थ का ज्ञान भर मन, तेरा-मेरा कर रहे हैं, राम तुम कर दो कृपा बस, ज्ञान ऐसा भूल जाएं। कुछ नहीं ऐसा जगत में, जिसमे मेरे नाथ न तुम कैसे मानूं आ रहे अब, सदियों तक तुम थे न आए। हम सुनो! अज्ञान को ही, ज्ञान अपना कह रहे हैं, ज्ञान गीता का भुला कर, रच रहे कलि की ऋचाएं। तुम प्रभु जो सोच भर लो, सृष्टि नव निर्माण होगी, क्यों प्रभु अभिमान इतना, फिर रहा सर को उठाए। नारायण तुमको किया है, दूर नर से खेल देखो, खेलता कलि खेल निष्ठुर, कैसे मन खुद को बचाए। क्या धरा के पुण्य उदय को, कल्कि तक रुकना पड़ेगा, राम कहो हनुमान से तुम, पाप सब मन के मिटाएं।