Posts

Showing posts from March, 2022

ये जीवन है (भाग 10-12)

अब तक के भाग में अपने पढ़ा कि रवि घर के पास ही रहने वाली शांति जी से उनके बेटे के बारे में पूछता है। वो अपनी कहानी में बताती हैं कि नेहा को डॉल मिलती है और वो अपने दोस्तों से दूर हो जाती है। अब आगे.... वो डॉल बड़ी अजीब सी थी। जब से वो डॉल आयी थी नेहा बदल सी गई थी वो बिल्कुल अकेले अकेले रहने लगी, सबसे अलग। राहुल से भी दूर सी हो गई थी। घर भी आती तो अकेले रहती। उसका चहकना, चुलबुलापन, हंसना सब जैसे कहीं खो गया था। बस वो उस डॉल से खेलती वो भी अकेले में, किसी को हाथ भी न लगाने देती थी। सबने उसको कहा कि इसको छोडनकर अपने दोस्तों के साथ खेलो, लेकिन जैसे इन बातों का उसपर असर नहीं हो रहा था या वो ये बात सुन ही नहीं रही थी। राहुल ने कितनी बार नेहा को समझाया लेकिन वो उससे लड़कर भाग जाती। उसकी आंखें अचानक से अजीब सी लाल हो जाती थीं। राहुल भी बहुत परेशान हो गया। आखिर कोई दोस्त एकदम से ऐसे करे तो बच्चे तो उदास हो ही जाते हैं। बच्चों के पूरी दुनिया आखिर माँ बाप और दोस्त ही तो होते हैं और नेहा तो उसकी सबसे प्यारी दोस्त थी। उसी की क्यों वो सबकी दुलारी थी। बाकी बच्चे भी परेशान थे लेकिन राहुल का मन तो नेहा के

नारी शक्ति

कैद में रखकर मुझे न, ऐसे तो भगवान बनाओ, हक जो मेरे दे मुझी को, ऐसे न अहसान जताओ, दर्द जो मैंने सहे हैं, सहने की बस शक्ति मुझमे, जान कर निर्बल मुझे न, अपनी शक्ति से डराओ। खुद दिया मैंने जो तुमको, प्रेम का अधिकार वो था कोमल थे मन भाव मेरे, प्रेम का आधार वो था, तुम व्यर्थ ही दान मेरा, दमन का स्वीकार समझे, चरणों में परमेश्वर खुद, मेरा तो संहार वो था। तुच्छ है शक्ति प्रदर्शन, तुच्छता से बाज आओ। जान कर निर्बल मुझे न, अपनी शक्ति से डराओ। शिव ब्रह्मा हों या विष्णु, सब मेरी ही राह धरते, मेरा ही एक नाम लेकर, राम के थे शर चलते, मुझसे ही तो सारी शक्ति वो सुदर्शन पा रहा था, मेरी ही आंचल में सारे, शक्ति के थे धाम पलते, व्यर्थ मिटा देने की मुझको, इच्छा न मन में सजाओ जान कर निर्बल मुझे न, अपनी शक्ति से डराओ। कैद में रखकर मुझे न, ऐसे तो भगवान बनाओ, हक जो मेरे दे मुझी को, ऐसे न अहसान जताओ।

ये जीवन है पार्ट (7-9)

अब तक के भाग में अपने पढ़ा कि रवि पत्नी कविता और बेटे मोनू को लेकर बहुत सालों बाद गाँव आता है। वहां मोनू रात में जुगनू और सितारों से भरा आसमान देख कर उसमें खो जाता है। जोरदार आवाज होने पर कविता रवि के गले लग गई और अब आगे..... 'काश ऐसे ही मेरी बाहों में समाये रहो। बिजलियां गिरती रहे और मुझमे तू सिमटी रहे।' रवि ने बोला। 'चलो हटो जरा सा डर क्या गई तुम तो सपनों में खो गए।' कविता ने दूर होते हुए कहा। 'तुम तो मेरी हो ही इसमें दूर क्यों हटना। बिजली तुझे रोज गिरना चाहिए। उधर तू गिरी और इधर ये बिजली हमपर गिरी। अभी थोड़ी देर पहले तो हम याद आ रहे थे और अब हमसे ही .....' रवि में मुँह बनाते हुए बोला। 'चलो जाओ मैं नही डरती किसी से।' रवि की बात काटते हुए कविता बोली। 'अच्छा जी।' रवि ने कहा। तभी फिर से जोरदार आवाज हुई, और कविता फिर से रवि के गले लग गई।  'कोई किसी से नहीं डरता लेकिन बात बात पर दुबक कर गले लग जाता है।' रवि ने फिर कहा। 'जाओ जाओ उड़ा लो मजाक। ये बारिश भी ऐसे हो रही है जैसे आज मार्च में ही सावन आ गया हो। लगता है मुझे डराने के लिए ही आ

चल फिर, जीवन धार में उतरें

उम्मीदी पतवार को लेकर, चल फिर, जीवन धार में उतरें। क्या होगा, उसका भय छोड़ें, चल फिर, इस मझधार में उतरें। जो चाहा वो, मिलना मुश्किल, नामुमकिन, कुछ काम नही है, जग ना समझे, लेकिन फिर भी, स्वप्न अनमोल, कुछ दाम नही है अपनी ताकत, कमजोरी सब ले, टकराने, संसार से उतरें। क्या होगा, उसका भय छोड़ें, चल फिर, इस मझधार में उतरें। है टूटा, जो जाम उठाया, है छूटा, जग में जो भाया, लाख अंधेरे जब छाए थे, आशाओं ने राह दिखाया। छाई अंधेरी, उम्मीदों के, दीप लिए फिर हाथ में उतरें। क्या होगा उसका भय छोड़ें, चल फिर, इस मझधार में उतरें।

तू मेरा इश्क़ था

तू मेरा इश्क था तो चला क्यों गया,  इस जमाने में तन्हा मुझे छोड़कर, दिल ये रोता रहा दिल तड़पता रहा,  आंख बहती रही बांध सब तोड़कर। इस तरह तो नहीं थी हमारी दुआ, इस तरह तो नहीं दी थी हमने सदा, तुमको माना था अपना खुदा हमने पर, थी हुई हमसे शायद यही एक खता, तुमने रुसवा किया पर हमें ये यकीन, तुम मिलोगे कभी फिर किसी मोड़पर। दिल ये रोता रहा दिल तड़पता रहा,  आंख बहती रही बांध सब तोड़कर। कोई हसरत नही कोई चाहत नही, इस जामने से अब तो शिकायत नहीं, तू मेरे साथ होता तो कुछ बात थी, बिन तेरे कोई खुशियों की आहट नहीं, थाम कर दिल की धड़कन को बैठे हुए, जिंदगी है मेरी अजनबी मोड़ पर, दिल ये रोता रहा दिल तड़पता रहा,  आंख बहती रही बांध सब तोड़कर। रात बीती नहीं न सवेरा हुआ, न बहारों का गुलशन में डेरा हुआ, मेरे अंचल में कोई खुशी न गिरी, न ही आंगन में गीतों का मेला हुआ। सारे रस्ते हैं कोई भी मंजिल नहीं, मीत तन्हा गए हैं मुझे छोड़कर। दिल ये रोता रहा दिल तड़पता रहा,  आंख बहती रही बांध सब तोड़कर।

ये जीवन है (भाग 4-6)

4 अब तक के भाग में अपने पढ़ा कि रवि पत्नी कविता और बेटे मोनू को लेकर बहुत सालों बाद गाँव आता है। आधी रात के बाद अचानक मोनू कविता खाने के लिए उठाता है उसको कुछ खिलाने के बाद कविता के पूछने पर रवि अपने साथ हुए चींटी के हादसे की बात बताता है और अगले दिन मोनू कविता और रवि खूब मस्ती करते हैं। अब आगे..... मोनू रवि और कविता बातें कर ही रहे होते हैं की उनके द्वारा मंगाया गया सोलर पैनल और उसका इंजीनियर आ जाते हैं। पहले इंजिनीयर सब जगह का निरीक्षण करता है फिर छत पर जगह चुन कर वहां इंस्टालेशन करने से पहले हमारी जरूरतों का जायजा लेता है। कुछ पंखे, पाँच से छह बल्ब/ट्यूब इत्यादि कुछ इलेक्ट्रॉनिक चीजें चलानी थीं। जिसके हिसाब से दो बैटरी लगाने का प्लान था जिससे कि लगभग बीस से चौबीस घंटे का बैकअप मिल सके तथा वो बैटरी फुल चार्ज रह सके इसको ध्यान में रखकर उसने 1kva का सिस्टम लगाने का फैसला हुआ। जिसमें सोलर पैनल की वारण्टी 25 साल, बैटरी की दो साल की थी और इन्वर्टर की पांच साल की। इस सिस्टम में एक टीवी, छोटा फ्रिज इत्यादि भी चल सकता था।  सिस्टम लगाते लगाते दुपहर हो जानी थी  लेकिन तब भी दो से तीन घंटे की घ