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सुला दे मुझको 291

तेरे होठों की ये मिठास चखा दे मुझको, अपनी प्याली से एक घूंट पिला दे मुझको। आज की रात ये आई है बड़ी मुद्दत में, अपने पहलू में फिर आज सुला दे मुझको। ये सितम मुझपर बहुत ही ज्यादा है, इससे अच्छा तो निगाहों से मिटा दे मुझको। इन नजारों में नहीं, तुझमें कशिश है जो सनम, मान जा दिल में कहीं अपने बसा ले मुझको सुन कोई राज छुपाया ही नही तुझसे  कभी कहना चाहे जो तेरा दिल वो बता दे मुझको। थक गया हूँ मैं सपनों का वजन ढ़ोते-ढ़ोते, ख्वाब जिसमें न हो नींद ऐसी सुला दे मुझको।

अरमानों पर पानी है 290

क्या हुआ जो दिल के सारे अरमानों पर पानी है, दिल ने तेरे इश्क से मेरे, रार ये कैसी ठानी है, ऐसे तूने अरमानों को खत्म किया है सीने में, दुनिया कहती तुझपर मरना, मेरी बस नादानी है। दुनिया के बस कह देने से, दिल बोलो कब डरता है, इश्क तो वो है सदियों से जो, जूती पर जग रखता है, जग के सारे समझाने से, कैसे माने दिल मेरा, दुनिया को ठुकरा देने की, जब इस दिल ने ठानी है। रोज चले आते समझाने, दिल ने कब कुछ पूछा है, डर लगता है जग को सारे, ख्वाब जो मेरा टूटा है, जग को डर है रीत नई फिर, इश्क मेरा ये गढ़ लेगा, खुद की लाज बचाने को ही, जग की आनी-जानी है। तुम भी सुन लो सदियों तक, तुमको तो आना होगा, प्रीत के मेरे अवशेषों पर जग को झुक जाना होगा, द्रोह सुनो मेरा अविचल है, जग की कुंठित रीतों से, जो मन को मंजूर नहीं वो, बात कब दिल ने मानी है। आज कहो तो जग को जाकर, सारा हाल बता दूँ फिर, तुमसे प्रेम मुझे कितना है, जाकर क्या दिखला दूँ फिर, लेकिन जग से कह देने में, प्रेम को क्या मिल जाएगा, तू न समझा, तो जग से फिर, कुछ कहना बेमानी है

हर्ष विकंपित हो रही हैं..p 289

हर्ष विकंपित हो रही हैं, मन में लो सारी व्यथाएं  राम तुम आए हो गूंजें, प्रेम से सब दस दिशाएं। हम व्यर्थ का ज्ञान भर मन, तेरा-मेरा कर रहे हैं, राम तुम कर दो कृपा बस, ज्ञान ऐसा भूल जाएं। कुछ नहीं ऐसा जगत में, जिसमे मेरे नाथ न तुम कैसे मानूं आ रहे अब, सदियों तक तुम थे न आए। हम सुनो! अज्ञान को ही, ज्ञान अपना कह रहे हैं, ज्ञान गीता का भुला कर, रच रहे कलि की ऋचाएं। तुम प्रभु जो सोच भर लो, सृष्टि नव निर्माण होगी, क्यों प्रभु अभिमान इतना, फिर रहा सर को उठाए। नारायण तुमको किया है, दूर नर से खेल देखो, खेलता कलि खेल निष्ठुर, कैसे मन खुद को बचाए। क्या धरा के पुण्य उदय को, कल्कि तक रुकना पड़ेगा, राम कहो हनुमान से तुम, पाप सब मन के मिटाएं।

P287 न सफर में दिल को सकून था

न सफर में दिल को सुकून था,  न तो मंजिलों पर करार है,  तेरे इश्क का, तेरे इश्क का, तेरे इश्क का ये खुमार है। ये सुनो घटाओं की अनकही, मेरे दिल में उतरी है रात भर, मेरे साथ होकर भी दूर क्यों, तेरा प्यार कैसा ये प्यार है न सफर में दिल को सुकून था,  न तो मंजिलों पर करार है। सुनो सिलसिला ये बना कभी, तुझे देखा मैंने था रात भर, मेरी जिंदगी की नसीब से, ठनी कैसी चिर ये रार है। न सफर में दिल को सुकून था,  न तो मंजिलों पर करार है। कभी रात-दिन में फर्क न था, तेरा मिलना मुझसे अजब ही था। तू बता तो दिल के करार में, पड़ी कैसी अब ये दरार है न सफर में दिल को सुकून था,  न तो मंजिलों पर करार है। कोई बात है तो बता तो दे, किसी राज का तू पता तो दे, कुछ किया नहीं तूं गया बदल, बिन तेरे ये सूना दयार है। न सफर में दिल को सुकून था,  न तो मंजिलों पर करार है। अब सवाल है मेरी जिंदगी, अब सवाल है मेरी बंदगी, अब सवाल सांसों की डोर ये अब सवाल दिल में हजार है। न सफर में दिल को सुकून था,  न तो मंजिलों पर करार है।

तुमको मिल जाऊंगा p 288

प्रेम का, सिलसिला, तुम करो, जो कभी, याद कर,ना मुझे, तुमको मिल, जाऊंगा, गीत गाने लगे, मन तेरा, बाबरा, मोड़ पर, इश्क के, तुमको मिल, जाऊंगा, आज रंग, लो सखी, तन को जग, रंग में, प्रेम को, भूल कर, जग के हर, ढंग में, पर कभी, टूट कर, मन दुखे, जो तेरा, याद करना मुझे, तुमको मिल, जाऊंगा। दिल को आने लगे, जब कभी, याद सी, दिल को होने लगे, चाह फरियाद की। आंख बहने लगे, वजह कुछ, भी न हो, याद करना मुझे, तुमको मिल, जाऊंगा। लो गई, रात ये, रात लंबी चली रात के, साथ हर, बात लंबी चली, आस दिल, में कभी, जो जगे, हम मिलें, याद करना मुझे, तुमको मिल, जाऊंगा। क्या हुआ, थम गई, दिल की सारी सदा क्या हुआ, जम गई, आज बहती घटा, दिल को कहनी कभी, मन की कुछ, बात हो, याद करना मुझे, तुमको मिल, जाऊंगा।

जो मेरा नहीं उसी ख्वाब पर p286

जो मेरा नहीं उसी ख़्वाब पर, मैं था ख्वाब सारे सजा रहा, तेरी चाहतों का ले सिलसिला, मैं था राह अपनी बना रहा। कोई गीत कहता तो क्या भला, मेरे इश्क़ में कुछ नया नहीं तुझे भूल जाने की थी जिद्द लगी मैं तो खुद को ही था मिटा रहा। मेरे ख्वाब सारे गुनाह अब, तेरे इश्क में न पनाह अब तेरी एक निगाह की आस पर, मैं तो जिंदगी था लुटा रहा। चलो फिर से कोई घाव दो, चलो फिर ये बाहों का हार दो, मेरे चाहतों के महल में मैं, तेरी नफरतें को बसा  रहा। सुना होगा कोई नया सफर, तेरे इश्क का ये तो है असर, मैं तो खुद ही थमती सांसें ले, मेरी मय्यतें को सजा रहा। तुझे अब भी मुझपर यकीन नहीं, तुझे कैसे इसका प्रमाण दूं, मुझे तुझपर रब सा यकीन है, ये ही बात कब से बता रहा।

हँसते रहो मुस्कुराते रहो p285

तुम बस हँसते रहो मुस्कुराते रहो,  यूँ ही हँस हँस कर हमको सताते रहो।  हम तो परवाने हैं, तुझपर मर जाएंगे,  खुद ही जलकर हमें भी जलाते रहो। तुमसे उल्फत मुझे रोज कहता रहूँ,  तेरे सितमों को हँस कर के सहता रहूँ,  तुम निगाहों से बस रोज चूमो मुझे,  न-न कहकर, ये नजरें झुकाते रहो। मुझसे उत्फल है तुमको भी कर लो यकीन,  आके बांहों में मुझको तो भर लो अभी । मेरी उल्फत में तुम भी हो सोते नहीं,  ये हकीकत भले तुम छुपाते रहो। हो महफिल में गुमसुम क्यों बैठे हुए,  क्यू हो तन्हा मेरा साथ होते हुए। मेरी बाहो में आकर के छुप जाओ बस,  मुझसे नजरे न यूँ ही चुराते रहो।