Posts

Showing posts from April, 2019

पैमानो ने भी तौबा कर ली,

पैमानो ने भी तौबा कर ली, आंख जो तेरी पल भर देखी बहक गया मयखाना खुद ही, चाल जो तेरी चल कर देखी। रंग धवल और रूप सलोना, मचल उठा दिल का हर कोना, खुशबू तेरी, जुल्फें तेरी, बहक के यूँ महबूब चलो न, तितली, पक्षी, फूल और चंदा, सब देखे बस तू अनदेखी। बहक गया मयखाना खुद ही, चाल जो तेरी चल कर देखी। कैसा होता बिन तेरे जग, सागर गहरा कैसे कैसे होता, ऊंचे पर्वत कैसे होते, सांझ सवेरा कैसे होता, तुम जो अगर ना होती जग में क्या करती फिर काम की देवी। बहक गया मयखाना खुद ही, चाल जो तेरी चल कर देखी। नैनो ने लब ने तरसाया, आंख झुकी, इकरार न आया, कैसे कैसे जतन किये पर, तुमको एक ऐतवार न आया। प्रेम को पोथी पढ़कर भी तुम, प्रेम को करती हो अनदेखी बहक गया मयखाना खुद ही, चाल जो तेरी चल कर देखी।

गीत कोई तुम गाओ

गीत कोई तुम गाओ, और इस दिल को बहलाओ, मै भूलूं जगत की रीते, तुम भी जग को बिसराओ। मै दीप करुँ, तन मन को, तुम दीप शिखा बन जाओ, पतझड़ सा है ये जीवन, तुम फूलों सा महकाओ। है चंद्रिका से शीतल, ये रातें खूब जलाएं, तुमसे दूर ओ साजन, रजनीगन्धा ना भाये, कब तक की है ये दूरी, बुझता उम्मीद का दीपक, तुम काली घटा बनकर के, बस प्रेम सुधा बरसाओ, मै दीप करुँ, तन मन को, तुम दीप शिखा बन जाओ। जो जन्मो की है दूरी, तो जीकर क्या है करना, तुम बिन ओ मेरे साजन, मुश्किल बहुत है मरना, बस जीवन ये एकाकी, ढलते सूरज की छाया, तुम आ जाओ जीवन मे, एक नया सवेरा लाओ। मै दीप करुँ, तन मन को, तुम दीप शिखा बन जाओ। दिल कब से ढूँढ रहा है, कोई मार्ग तुझे पाने का, ऐसा ना कि हो जाये, फिर वक़्त मेरे जाने का। मै दुनियाँ छोड़ ना जाऊँ, तुझसे मिलने से पहले, तुम जल्दी से आकर बस, मुझको अपना कर जाओ। मै दीप करुँ, तन मन को, तुम दीप शिखा बन जाओ।

अफसाना

दिल के दर्द को भी, अफसाना समझ बैठे, हमको भी वो वक्ती, दीवना समझ बैठे। क्या हाल मेरे दिल का, कह कर तो कोई आये, खुद गैरो के संग हैं हमको, बेगाना समझ बैठे। मैं घुट कर रह गया था, जो साथ तूने छोड़ा दर्द दुनिया सुनकर रोई, वो फसाना समझ बैठे, दो घूट पिला जो देते, अहसान बहुत होता, तेरी निगाहों को हम थे, पैमाना समझ बैठे। जिसको खुदा सा पूजा, दुनियाँ को भुला कर, वो मेरी मोहब्बत को, भरमाना समझ बैठे।

पहला प्यार (e)

तुझको शरमाते देखा नही था कभी आज तक फिर भला आज क्या हो गया, झुकती नजरों से जग है, बहकने लगा, आज किस्सा ये कैसा नया हो गया। पहले भी आती जाती थीं, गलियो से तुम, ये नज़र इस तरह तो लजाती ना थी, धडकने बढ़ गई, साँस भी चढ़ गई, क्या हुआ तुम तो कुछ भी छुपाती ना थी, क्या हुआ ये कहो, गम ना तन्हा सहो, रोग कैसा तुम्हे ये नया हो गया। झुकती नजरों से जग है, बहकने लगा, आज किस्सा ये कैसा नया हो गया। रोज आते थे तुम, छत पर पहरो मगर, आज लाली सी चहरे पर छायी है क्यूँ? जैसे सोये नही, तुम कई रात से, आंख मे नींद तेरे ये छायी है क्यूँ? लग रहा है मुझे, है ये रंग इश्क़ का, कौन दिल का तेरे है, खुदा हो गया? झुकती नजरों से जग है, बहकने लगा, आज किस्सा ये कैसा नया हो गया। आज मौसम भी बेवक़्त बदलने लगा, और कदम भी तुम्हारे बहकने लगे, ओ सखी तुम सम्भालो ये दामन तेरा, दुनियां वाले भी अब तो हैं हँसने लगे। कौन साजन तेरा मुझसे सब दे तू कह, कब से पर्दा ये हममे नया हो गया। झुकती नजरों से जग है, बहकने लगा, आज किस्सा ये कैसा नया हो गया। ebook publish   अभिव्यक्ति  सांझा काव्य संग्रह

चांदनी रात मे

चांदनी रात मे, अधखुले नैन से, ढूँढते है तुझे, छत पर बैचैन से, दीप जलने लगे तुम कहाँ हो प्रिये, नैन तकते हैं, राह कब से बैचैन से। चांदनी रात मे, चांदनी रात मे... सादगी का जो श्रन्गार तुमने किया, जिन्दगी को मझधार तुमने किया, इश्क़ का है ये दरिया, और डूबा हूँ मैं, निगाहो का क्या वार तुमने किया। अब करुँ क्या मै, इस दिल-ए-नादान का, खो गया ये तुझी मे प्रथम रैन से। दीप जलने लगे तुम कहाँ हो प्रिये, नैन तकते हैं, राह कब से बैचैन से। चांदनी रात मे, चांदनी रात मे... स्वप्न मे भी कभी तुम तो आते नही, मुझको दामन मे अपने छुपाते नही, मै तो बैचैन हूँ, अपने हालात पे, क्या हुई है खता, ये बताते नही, जग है थम सा गया, चाँद नम सा गया, अब तो आती नही, नींद भी चैन से। दीप जलने लगे तुम कहाँ हो प्रिये, नैन तकते हैं, राह कब से बैचैन से। चांदनी रात मे, चांदनी रात मे... जो बनी भी नही, उस कहानी को दिल, ढूंढता है तेरी, मेहरबानी को दिल, बढ़ गई जो बहुत पीर, बहने लगी, ढूंढता है तेरी हर निशानी को दिल, मुझसे कह दे, अगर तेरे काबिल नही, मर तो पाऊंगा, फिर मैं जरा चैन से दीप जलने लगे तुम कहाँ हो प्रि

अपराध

बड़े दिनो बाद आज पत्नी जी को अपने मायके जाने का मौका मिला। सच मे कोई कितना भी माजाक करे लेकिन एक महिला का प्रेम और त्याग की कोई तुलना संसार मे हो ही नही सकती। अपने घर को छोड़ कर नये घर मे आना और एक अजनबी घर को अपना घर संसार बना लेना। ये सिर्फ एक नारी के द्वारा ही सम्भव है। चलिये अपनी कहानी पर चलते हैं। पत्नी जी के मायके चले जाने के बाद आज पवन ने बहुत जिद्द की कि आज मेरे साथ ही चलिये, भाभी जी है नही, कल छुट्टी भी है तो आराम कीजियेगा, कहाँ खाना पीना बनायेंगे। पवन ने बार बार जिद करते हुए कहा। काफी मना किया लेकिन पवन के आग्रह को टाल नही पाया। फिर साथ चला ही गया, घर जाकर काम करना, खाना बनाना सब करने की हिम्मत तो हो भी जाती लेकिन पत्नी और बच्चो के बिना घर भी तो खाने को आयेगा कैसे वक़्त गुजरेगा ये सोच कर पवन के घर जाने का फैसला किया। वैसे पवन रहता तो शहर मे ही था लेकिन थोड़ा बहरी इलाका था। वहा पहुंच कर लगा ही नही की ये शहर से बाहर का इलाका था। बाज़ार मे काफी भीड़ थी। वही एक सब्जी वाले के पास एक गाय आकर सब्जी खाने लगी। जैसा की अमूमन होता है उसने अपनी सब्जी को बचाने के लिये गाय को ड़ंडे से भागा दिय

क्या गजब हो गया

क्या गजब हो गया, देख कर के तुझे, तेरी जुल्फों से मौसम बहकने लगा। तू जो ऐसे हंसी, फूल खिलने लगे, दिल पर जादू सा कोई तो चलने लगा। बिना सावन के आंखें भिगाने लगी मुझको रह रह तेरी याद आने लगी। कैसे गुजरेंगी रातें जुदाई की ये, मुझको चाहत तेरी आजमाने लगी , आज रंगत नई, जिंदगी पर चढ़ी, तुमको छू कर समय भी बहकने लगा तू जो ऐसे हंसी, फूल खिलने लगे, दिल पर जादू सा कोई तो चलने लगा। दिल की कोई कहानी सी बनने लगी, दिल की महफ़िल ये सूनी सी, सजने लगी, मेरे सपनों में आई जो तूँ मेहरबान, मेरे सपनों की महफ़िल संवरने लगी, तूने कैसा असर मुझपर डाला प्रिये, मैं तो तन्हाई में खुद ही हंसने लगा। तू जो ऐसे हंसी, फूल खिलने लगे, दिल पर जादू सा कोई तो चलने लगा। बात बात पर रूठ यूँ जाना, मुश्किल चंचल मन को समझाना तुमसे से हैं सांसो की रौनक, गीत तुम्हारे बिना क्या गाना, मुझे तुमसे कोई शिकायत नही, मन तेरी हसरतों पर ही मचलने लगा, तू जो ऐसे हंसी, फूल खिलने लगे, दिल पर जादू सा कोई तो चलने लगा। ये माना नही हम है काबिल तुम्हारे, नही मन मे, सांसो में शामिल तुम्हारे, था ये इश्क़ होना, हमे हो गया है, भले

प्रकृति

जीवन शक्ति, जीवन आधार, जीवन आरम्भ, जीवन साकार। बस प्रकृति के हाथो सम्भव, मानव जीवन का उपकार। किया निरंकुश असीमित दोहन, फिर भी करती जीवन पालन जिसमे फलित हो सब आशायें, है सहनशीलता का व्यवहार। रूप धरा बन नारी आई, दिया जीवन को आधार, पुत्री, बहन प्रेमिका पत्नी, और माता मे हुई साकार। समझ विधाता जब जब खुद को, किया मानवता का अपमान, दुर्गा काली, रूप मे आई, किया दानवता का संहार। मातृ स्वरूपा दे देती है, अपना जीवन भी उपहार, पर जब अति हुई मानव की, मिट्टी कर देती संसार