झड़ते फूलो की गाथा
तन का क्या है, तन तो निशदिन, झड़ते फूलो की गाथा है। मन का मीत बनो तुम प्रियतम, मन प्यासा जीवन प्यासा है। कुछ दैहिक क्षण भर के सुख को, अन्तिम मान रही है दुनिया, लेना-देना, खोना-पाना, बस ये जान रही है दुनियाँ। मन से जो सब बात समझते, काम नही, अनुराग समझते, बस उनसे ही पल्लवित निशदिन, अमर प्रेम की ये गाथा है। मन का मीत बनो तुम प्रियतम, मन प्यासा जीवन प्यासा है। दिन संग टूट गये सब दर्पन, रूप शिखर पर जो बैठे थे, सांझ भये वो अनगढ़ दीपक, दीप्त हुए, दिन भर फेंके थे। पल पल छांट रहे सब, पत्थर, हीरा, मान रहे सब पत्थर, टूटा सा वो मील का पत्थर, राह सभी को दिखलाता है। मन का मीत बनो तुम प्रियतम, मन प्यासा जीवन प्यासा है। तन का क्या है, तन तो निशदिन, झड़ते फूलो की गाथा है। मन का मीत बनो तुम प्रियतम, मन प्यासा जीवन प्यासा है। साहित्य अंकुर में प्रकाशन को भेजी गई। 12 जून, 19