Posts

Showing posts from March, 2019

झड़ते फूलो की गाथा

तन का क्या है, तन तो निशदिन, झड़ते फूलो की गाथा है। मन का मीत बनो तुम प्रियतम, मन प्यासा जीवन प्यासा है। कुछ दैहिक क्षण भर के सुख को, अन्तिम मान रही है दुनिया, लेना-देना, खोना-पाना, बस ये जान रही है दुनियाँ। मन से जो सब बात समझते, काम नही, अनुराग समझते, बस उनसे ही पल्लवित निशदिन, अमर प्रेम की ये गाथा है। मन का मीत बनो तुम प्रियतम, मन प्यासा जीवन प्यासा है। दिन संग टूट गये सब दर्पन, रूप शिखर पर जो बैठे थे, सांझ भये वो अनगढ़ दीपक, दीप्त हुए, दिन भर फेंके थे। पल पल छांट रहे सब, पत्थर, हीरा, मान रहे सब पत्थर, टूटा सा वो मील का पत्थर, राह सभी को दिखलाता है। मन का मीत बनो तुम प्रियतम, मन प्यासा जीवन प्यासा है। तन का क्या है, तन तो निशदिन, झड़ते फूलो की गाथा है। मन का मीत बनो तुम प्रियतम, मन प्यासा जीवन प्यासा है। साहित्य अंकुर में प्रकाशन को भेजी गई। 12 जून, 19

अपराधी

फूल को सुन्दर फूल कहा, रूप, अप्सरा का रूप कहा चांद भले पत्थर ही सही, उसको भी कितना खूब कहा, जहान मे सुंदर है जो, तेरा है प्रारूप कहा, खुद पर जो अभिमान लिखा, देश का स्वाभिमान लिखा, जो क्रोध मे था तो क्रोध लिखा, तो दुनिया की नजरों मे, गीत सभी वो सुंदर थे, लेकिन जब था प्रेम ये हुआ नैनो का जो खेल हुआ जो दिल मे थी वो, लगी कही, दिल मे जो है छवि कही, हुस्न ये तेरा बेमोल प्रिये, दिल के जो थे बोल कहे तेरे दीवाने की चाहत की दिल मे जो थी बात कही, जो दिल मे रखती दुनिया है, खुलकर सारी वो बात कही, प्रेम किया साकार लिखा, प्रथम मिलन का सार लिखा, तब से दुनिया मे पापी हूँ, वासना का साथी हूँ, तुमसे प्रेम कह जो दिया, बस तब से मै अपराधी हूँ, जो दुनिया छुप छुप कर करती, खुल कर कहने का भागी हूँ।

बिखड़ी पंखुड़ियां : वावफा थे

हम वावफा थे, ना तेरी बेवफाई पर रोए, आदत थी तन्हाई की, ना तेरी जुदायी पर रोए, क्या कहेगा जमाना, मेरे महबूब को, बस यही सोच कर, ना तेरी सगाई पर रोए।

मैं फिर आऊंगी

उस सुंदरता का चातक सा मै, एक उसे देख लेने की चाह मे, आस लगाये एकटक निष्क्रम, घट, पल, घड़ी, पहर, दिवस, निष्प्राण से गुजर रहे, वो सृष्टि के कुछ मधुरतम शब्द, "मैं फिर आऊंगी" तुम्हारे सुन्दर मधू होठों से, सुनकर बैठा उसी पथ पर, बस एक तुम्हारी, पुन: आगमन, की आस लेकर, जीवन भूल, विषाद का सागर, साथ ले बस एक दीप आशा का, एक तुम्हारी बाट जोहता, अपलक, कि तुम आओगी, वचन अपना जरूर निभाओगी, कितने पल, कितने दिन, कितनी रातें, कितने माह, कितने वर्ष, कितने जनम, लेकिन, ये पूछ लेना भी तो, प्रेम का अपमान ही है,

दर्पन कितने तोड़ गई मैं

पिया मिलन की बेताबी मे, लोक लाज कर गोल गई मैं, वो आयें ये सुनकर पगली, घूंघट के पट खोल गई मैं। कब से आस लगाये बैठी, अब आओगे, कब आओगे, शुष्क मरुभूमि जीवन पर, बादल बनकर तुम छाओगे, पिया मिलान की बस आहट पर, सपनो में रंग घोल गई मैं। वो आयें ये सुनकर पगली, घूंघट के पट खोल गई मैं। फल्गुल की मनभवान रातें, दीप जले ज्यो तन जलता था, कब से दूर गये साजन तुम, आन मिलो ये मन कहता था, खेलो मुझसे जीभर कर रंग, हाय  ये क्या, बोल गई मैं। वो आयें ये सुनकर पगली, घूंघट के पट खोल गई मैं। काजल बिन्दीया, लाली, खुशबू, तन को मन को, खूब सजाये, बाट जोहती कब से बैठी, मै राहों पर नैन लगाये, तेरे सिवा कोई देख ना ले बस, दर्पन कितने तोड़ गई मैं। वो आयें ये सुनकर पगली, घूंघट के पट खोल गई मैं।

बिखड़ी पंखुड़ियां : दिल सुंदर है

दिल सुंदर है, तो दुनिया की कही, बातों से क्या,लेना मुझको। हो साथ तुम्हारा, बहके हुए, जज्बातों से क्या लेना मुझको। हर सांस से आती है ये सदा,  तुम साथ रहो अंत सांसों तक। तुमसे मिलकर दुनियां भर के, अहसासों से क्या लेना मुझको।

महिला दिवस

आज उठे सुबह, तो हर ओर, एक ही रौनक छायी थी, व्हाटसप, डूड़ल, फेसबुक पर, महिला दिवस की बधाई थी, नई नई ये रीत चली है, या, बदलाब की नई अंगराई थी? अखबार मैगजीन, और टीवी पर, सबने दी ये बधाई थी। पीएम, सीएम, राष्ट्रपति की, सबको चिट्ठी आई थी, और उसी पन्ने पर एक खबर, बलत्कार की आई थी, इन्ही नेताओ के चमचो ने, देश की इज्जत बढाई थी। अखबार मैगजीन, और टीवी पर, सबने दी ये बधाई थी, आज ही कितनी बेटियों ने, कोख मे जान गवाई होगी, और कितनी ही दुल्हनो को दहेज ने आग लगाई होगी, लड़के लड़की का भेद मिटा क्या, कसम जो पहले उठाई थी अखबार मैगजीन, और टीवी पर, सबने दी ये बधाई थी, हर और जिधर भी देखो, महिला दिवस का साया है, सेल लगी है बस्ती बस्ती, त्योहार नया ये बनाया है, होगा कुछ क्या भला किसी का, इतनी जो रौनक छायी थी? अखबार मैगजीन, और टीवी पर, सबने दी ये बधाई थी, मुझको लगता सेफ्टी वाल्व है, महिला दिवस मनाओ बस पूरे साल दबा कर रखो, एक दिन उनका जताओ बस, आज करो सब खाना पूर्ति, कल फिर लात लगाई थी, अखबार मैगजीन, और टीवी पर, सबने दी ये बधाई थी, पुरुषो की नजरों मे औरत ने, इतनी ही इज्जत कम

तन सीमित मन असीमित

बस रूप रंग का कायल था पहले नैनो से घायल था। गोरे मुखडो का चातक था, वो समय बड़ा ही घातक था। हिलती कमरो मे डोल गया, भावों का रेला रोल गया। तन ही तन की थी चाह करी, बस रूप देख कर आह भरी। कितना सीमित, वो प्रथम मिलन, काम जनित, तन-तन का मिलन। तन बस दो दिन की माया है, वो प्रीत नही बस साया है नित घटती चंचल काया है थोड़ा तू मन मे समाया है। जिस दिन मन को अह्सास हुआ, तू दूर भी था तो पास हुआ। ना नैनो को तेरे रूप की चाह, ना हाथों को तेरी तन की थाह। बस मन पर तेरा अधिकार प्रिये, तुझसे पराजय स्वीकार प्रिये, सांसों मे आते जाते तुम, मेरे स्वप्नो मे समाते तुम, मन के मंदिर मे मूरत एक, अब आन बसी वो सुरत एक, तेरे तन की अभिलाष नही, मन को तेरे मन की प्यास नई, सांसों संग तुम आते जाते, संगीत नया हर पल गाते। आज मिली मुझको सुमती तन सीमित, मन असिमित।

कैसे इजहार करें

कैसे इजहार करें, तुझसे इकरार करें, तू ही मुझको दे बता, कैसे क्या यार करें? लग गई है जो तेरी, मासूम अदाओं से लगन, तू ही मुझको दे बता, कैसे हम प्यार करें? तू कभी सुन तो जरा, इश्क़ मे हुआ है क्या, जीने की आस जगी, पहले कहाँ जीता था। तुमको देखूं है बची, बस ये ही चाह मेरी, तुझसे पहले ये मेरा, हाल ऐसा तो ना था। तेरी जो चाह जगी, दिल को बेजार करे। तू ही मुझको दे बता, कैसे क्या यार करें? दिल की धड़कन में तेरा, नाम बस आने लगा, मैं तुझे दुल्हन बना, ख्वाबो में लाने लगा, जाने कैसे ये हुआ, मै तो हैरान सा हूँ, मैं तो हर और तुझे, बस तुझे पाने लगा। कैद से कैसे तेरी, दिल को आजाद करें? तू ही मुझको दे बता, कैसे क्या यार करें?

जरा तेरी जो परछाई

जरा तेरी जो परछाई, मेरे ख्वाबो मे आती है, तेरे हाथों की नरमाई, मुझे जब याद आती है, सोच कर तेरी बातों को, बहुत रोता हूँ रातों को, ये लम्बी रात सर्दी की, गुजर आंखों मे जाती है। मैं कह दूँ ये भी मुमकिन है, हमे चाहत ने लूटा है, मगर मालूम है मुझको, मेरी किस्मत का धोखा है। तेरी चाहत की सच्चाई,ब मुझे जब याद आती है। सोच कर तेरी बातों को, बहुत रोता हूँ रातों को, ये लम्बी रात सर्दी की, गुजर आंखों मे जाती है। क्या वादे थे वो उल्फत के, क्या कसमें थी मोहब्बत की, हमने संग सजाई थी, हसीन दुनियां मोहब्बत की, तेरी बातों की गहराई, मुझे जब याद आती है, सोच कर तेरी बातों को, बहुत रोता हूँ रातों को, ये लम्बी रात सर्दी की, गुजर आंखों मे जाती है। तेरे धोखे मे दिल लेकर, कहा से ये कहा आया, तेरे दर, तेरी गलियो ने ना ठुकराया ना अपनाया, तेरी शादी की शहनाई, मुझे जब याद आती है। सोच कर तेरी बातों को, बहुत रोता हूँ रातों को, ये लम्बी रात सर्दी की, गुजर आंखों मे जाती है।