ये जो इल्म है, वो कहीं नही

ये जो इल्म है, वो कहीं नही,
जो है जिंदगी की किताब में,
हर एक पल, है सबक नया,
जाने क्या है, कल के हिजाब में।
जो नही चला दी उसे भी सीख,
जो चला तो मंजिल हज़ार दी,
हैं हज़ारों रंग, सब मिले-जुले,
ज्यों इंद्रधनुष है आकाश में।

मिली हर खता पर नही सजा,
कुछ खता गुलाबों सी खिल गई,
कुछ कदम गलत जो पड़े कही,
मेरी मंजिले ही निखर गई,
कुछ रंग अंधेरो में खिले मिले,
कही रोशनी भी स्याह थी,
उठा हर कदम था सबक नया,
मिला जिंदगी की किताब में।

ये जो आज पूनम चाँद है,
कल मलिन हो जाएगा,
फिर रात अमावस के परे,
ये पूर्ण यौवन पायेगा,
यह मिलना-बिछड़ना, खेल है,
जो है दूर वो ही मेल है,
हैं छुपे सृजन के बीज भी,
यहां होते हर एक विनाश में।

Comments

Popular posts from this blog

अरमानों पर पानी है 290

रिश्ते

खिलता नही हैं