Posts

Showing posts from January, 2020

कब से मन पर तुम छाए हो (e)

कब से मन पर तुम छाए हो, अब गीत मिलन के गा जाओ, कब से तेरी प्रीत का प्यासा हूँ, कुछ प्रेम सुधा बरसा जाओ। जबसे ये प्रीत मेरी जागी, अब दिल को कोई नहीं जंचता, तेरे होने की चाहत पर, अब कोई रंग नहीं फबता, कब तक दिल को यूं समझाऊं, तुम खुद आकर समझा जाओ। कब से मन पर तुम छाए हो, अब गीत मिलन के गा जाओ। महबूब हो मेरे या तुम बस, यूं ही कोई स्वांग रचाते हो, क्यों क्षण भर यूं आकर के तुम, जन्मों की प्यास बढ़ाते हो, क्या प्रीत में मेरी खोट कोई, गर है तो बस ठुकरा जाओ, कब से मन पर तुम छाए हो, अब गीत मिलन के गा जाओ। तुमको पाने का स्वार्थ नही, तुमको अर्पण की चाहत है, तुमसे कुछ भी पा लेना क्या, तुमको सब देना राहत है, तन मन अर्पण है तुमको ये, तुम आओ और अपना जाओ कब से मन पर तुम छाए हो, अब गीत मिलन के गा जाओ। ebook published  अभिव्यक्ति  सांझा काव्य संग्रह

काश कि तुम

काश की तुम मुझसे मेरे,  अरमान ये सारे ले जाते, जो मुझको लिखे तुमने थे कभी,  पैगाम ये सारे ले जाते। वीरान सा दिल, तू बहकी हुई,  पुरवाई सी, छाई उस दिन, बह निकले सरिता मरु में, यूं जीवन में आई उस दिन, अब मैं हूं सारी खुशियों से, अनजान ये, सारे ले जाते। सारी खुशियां, सारे आंसू, अहसान ये सारे ले जाते। जो मुझको लिखे तुमने थे कभी,  पैगाम ये सारे ले जाते। जज्बातों की मैय्यत में, हर भूल सखी स्वीकार मुझे, तुम पर क्या खुद पर भी नही, अब थोड़ा भी अधिकार मुझे, न प्रणय मिलन, बस एकांकी वरदान हमे, सब ले जाते तुम बिन तो मैं जीवन से अनजान, ये सारे ले जाते, जो मुझको लिखे तुमने थे कभी,  पैगाम ये सारे ले जाते। मैं भूल गया कि स्वप्नों की, सीमा बस नींद की हद तक है, हर पल तुमसे से जो दूर जिया, जीवन की अंतिम दस्तक है, देकर अपने तुम सब आंसू सौ बार, ये सारे ले जाते। स्वप्नों के ये महल सखे बेजार, ये सारे ले जाते। जो मुझको लिखे तुमने थे कभी,  पैगाम ये सारे ले जाते।

मृत्यु से विनती (e)

ऐ मृत्यु तुमसे विनती एक, जब आना एक पल में आना, रुग्ण हो जब तन मन ये मेरा, और न तुम इसको तड़पाना। वहीं आज तक खड़ा हुआ है, जीवन उस अनजान मोड़ पर, जहाँ से बिछड़े तुम थे मुझसे, ढूंढ रहा तुम्हें कोर-कोर पर। ऐ मृत्यु तुमसे विनती एक, जब पाना प्रियतम सा पाना, रुग्ण हो जब तन मन ये मेरा, और न तुम इसको तड़पाना। तिल-तिल छिन-छिन जो ऐसे तुम, आओगे तो कैसे होगा, मिलन यूं होगा फीका-फीका, उन्मुक्त मिलन न ऐसे होगा, ऐ मृत्यु तुमसे विनती एक, हाथ पकड़ हक़ से ले जाना, रुग्ण हो जब तन मन ये मेरा, और न तुम इसको तड़पाना। कहने को तो क्रूर बहुत तुम, पर जीवन परिपूर्ण तुम्हीं से, खुद को मिटा कर तुमको पाना, प्रेम अमर सम्पूर्ण तुम्हीं से, ऐ मृत्यु तुमसे विनती एक, जल में जल जैसा मिल जाना रुग्ण हो जब तन मन ये मेरा, और न तुम इसको तड़पाना। प्रतिध्वनि सितंबर पत्रिका ebook published  अभिव्यक्ति  सांझा काव्य संग्रह

बिना तुम्हारे

बिना तुम्हारे हर एक लम्हा, गुजरा मौत की आहट जैसे। मैं टुकड़ों में ढूंढ रहा हूं, वही पुरानी चाहत जैसे। अब तक भूल नहीं पाया दिल, साथ गुजारे थे जो लम्हे, तिल तिल टूट रहा, पेड़ों पर, पतझड़ की हो आहट जैसे। बेखौफ गले से वो लग जाना, पहरों अंखियों से बतियाना। होठों पर होठों को रखकर, भूल ही इस दुनिया को जाना। गई नही अब तक सांसों से, सांसों की गर्माहट जैसे। तिल तिल टूट रहा, पेड़ों पर, पतझड़ की हो आहट जैसे। अभी तो बस कलियों ने सीखा, था भवरों के ख्वाब सजाना। अभी तो बस सपनों ने सीखा, था साजन को गले लगाना। रूठ गए सावन के बदरा, बिन बरसे हो बगावत जैसे, तिल तिल टूट रहा, पेड़ों पर, पतझड़ की हो आहट जैसे। तुमसे मिलने की बेताबी, बढ़ी, बनी विश्वास मिलन का, दुनिया पर देखो फिर छाया, जरा जरा अहसास जलन का, कांटे भी महसूस यूं होते, तेरी हो नर्माहट जैसे। तिल तिल टूट रहा, पेड़ों पर, पतझड़ की हो आहट जैसे।