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पत्रकारिता की दिशा

संभल कर रख कदम, तेरा तो कर्म सत्य बताना है. तू है पहरी जम्मूरियत का , तेरा बस सत्य ठिकाना है! नही हस्ती तेरी कोई, अगर तू झुक गया क्षण भर, तुझे तो बस हिमालय बन, तूफानों को हराना है! आज एक पत्रकार का लेख पढ़ा, जिसका लिंक नीचे है पढ़कर जो महसूस हुआ वो बहुत खतरनाक स्थिति की तरफ इशारा कर रही है, देश की कुछ शक्तियाँ खुद को सर्वस्व मानने पर आमादा हैं. और इलैक्ट्रोनिक मीडिया का बहुत बड़ा हिस्सा अपना फ़र्ज भूलकर उनके इस अलोकतांत्रिक कार्य को सही बताने के लिए किसी भी निचले कार्य को करने से बाज़ नही आ रहा. कुछ पत्रकारों और मिडिया कॉरपोरेट ने मिडिया की निष्पक्ष छवि को वो चोट पहुचाई है कि जिसको वापस ठीक करना सर्वाधिक दुष्कर सिद्ध होगा. आज़ादी के समय से जो कार्य गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे हजारों पत्रकारों ने किया उससे पत्रकारिता एक सम्मानीय कार्य बना, आज के दौर में भी कुछ एक पत्रकार जैसे रविश कुमार इत्यादि का नाम निष्पक्षता के लिए लिया जा सकता है लेकिन मिडिया हाऊस पर कुछ बिजनेस घरानों का कब्जा होने से प्रिंट मिडिया, और डिजिटल मिडिया की निष्पक्षता समाप्त प्राय है. एक समय था कि किसी भी पत्रकार प