हसीन दुनियां

हो मुस्कुराहट सबके चेहरे पर,
क्या ऐसी एक दुनियाँ बन नही सकती?
हसीन सपने हो हर एक की आंखों में,
क्या ऐसी एक दुनियाँ बन नही सकती?

कहने को तो हम हर एक चीज़ बना लेते है,
चाँद पर भी अपने झंडे लगा देते हैं,
पहाड़ों से भी ऊंचे घर बना लेते हैं,
गहरे सागर पर भी, सुंदर, शहर बना लेते है,
एक छत हो हर एक के सर पर,
क्या ऐसी एक दुनियाँ बन नही सकती?

नफरत का वो आलम है यहां,
इंसान हर चीज़ से घबराता है,
किसको अपना समझे वो तो,
अपने साये से भी आज डर-डर जाता है,
हो मोहब्बत जहाँ सबके लिए,
क्या ऐसी एक दुनियाँ बन नही सकती?

वैसे तो हम रोज तरक्की कर रहे हैं,
लाखों-करोड़ों कुछ, जेबों में भर रहे है,
पर अब भी हज़ारों-लाखों, भूखे ही सो रहे है,
जीने की आरज़ू ले, भूखे ही मर रहे है,
मिल जाये सभी को रोटी, सुबह और शाम की,
क्या ऐसी एक दुनियाँ बन नही सकती?

हो मुस्कुराहट सबके चेहरे पर,
क्या ऐसी एक दुनियाँ बन नही सकती?

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