जमाने में जिसे देखो, वही बेगाना मिलता है
अफ़साना तमन्ना महफिलों की थी, मगर वीराना मिलता है। जमाने में जिसे देखो, वही बेगाना मिलता है। तुमसे दूर जाने की, कोई हसरत नही दिल में। महफ़िल मे जिसे देखो, तेरा दीवाना मिलता है। तेरे ही पास आने को कदम बरबस हैं उठ जाते, कोई भी हर्फ़ लिखता हूँ, तेरा अफसाना मिलता है। कभी फिर मौसमों का वो हसींन मंजर नहीं देखा, तेरे बिन कब बहारों का कोई नजराना मिलता है। चले थे लड़कर दुनियां से, तेरा एक साथ पा लेंगे तू हो न साथ दिल को कब, कोई ठिकाना मिलता है। जलन दिल की नही बुझती, सावन की हवाओं से, ये दिल जलता है हंसकर जब, कोई अनजाना मिलता है। जरा सा वक़्त बाकी है, साकी आ पिला जा फिर, शमां जब बुझती है उसपर, कहाँ परवाना मिटता है।