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Showing posts from June, 2023

कभी दूर से जब आती है 282

कभी दूर से जब आती है, पानी की आवाज मचलती, तुमसे जब-जब टकराती हैं, पानी की एक धार मचलती, खुशबू-खुशबू हो जाती है, सारे जग की सारी बातें, दिल की सारी धड़कन देखो, तुम पर है हर बार मचलती। इश्क तो बस पानी के जैसे, बह जाने का नाम है मानो, प्रियतम की नजरों से हरपल, सज जाने का काम है मानो, कुछ कहने की बात नहीं ये, चुप रहने की जिद के जैसी, जिस पर मरते उससे ही न, कह पाने की बात है मानो, पर दिल की इस चाह को कैसे, होठों पर हम आने ना दें, दिल की सारी धड़कन देखो, तुम पर है हर बार मचलती। हो जाएगा जब तुमसे ये, चाहत का इकरार सुनो न, मिल जाएगा जब इस दिल को, तेरे दिल का साथ सुनो न, हो जायेंगी बाहें जब ये, वरमाला के फूलों जैसी, तब होगा एक अलग-अलग सा प्रेम का फिर इतिहास सुनो न, पर तब तक मानो ये जीवन, कांटो की एक सेज है मुझको, दिल की सारी धड़कन देखो, तुमपर है हर बार मचलती। बैठ आज फिर पहरों-पहरोंं, चुप-चुप सी जो बात करें वो, तुमसे मुझको सपनो का जो,

नारी

"अपराजिता" संग्रह में शामिल लेखकों को हार्दिक बधाई। आप सभी के सहयोग से ये संग्रह प्रकाशित हो पा रहा है इसके लिए सभी लेखकों को धन्यवाद। संपादक मोनिका सिंह "मोह", सह संपादक मीना सिंह "मीन", चेतना लाबास, और प्रियंका गहलौत:"प्रिया कुमार" को भी संग्रह को मूर्त रूप देने के लिए शुभकामनाएं। जब इस पुस्तक के लिए कुछ लिखने का समय आया तो मेरा कुछ लिखने का विचार बिल्कुल नहीं था। मैं अक्सर ऐसे समय पर कुछ नहीं लिखता जब किसी विषय पर लिखने का मन न हो। लेकिन एक घटना के बाद खुद को लिखने से रोक नहीं पाया... हम कितना भी प्रचार करें, कि हम अधुनिक हो गए हैं, मानवीय इतिहास और विकसित देश होने के मार्ग पर तेजी से भाग रहे है, लेकिन ये एक ऐसा झूठ है जिसपर हम अन्धविश्वास करके बैठे हैं। नारीवाद का उदय इसी मिथ्या का एक रूप है। ठीक वैसे ही जैसे पुरुषवाद। असल में ये दोनों ही झूठ हैं और अपने आप को दूसरे से ऊपर रखने की मुहिम का हिस्सा हैं। मेरा मनना है कि सभ्यता, जीवन या सृष्टि जो भी कह लीजिए, के निर्माण और क्रियाशील होने में नारी और पुरुष समान रूप से भागीदार है न कोई बड़ा है न छो

रात देखा तुम्हे 281

पूर्णिमा चाँद सा, रात देखा तुम्हें, प्रेम के बाग सा, रात देखा तुम्हें, रात देखा तुम्हें, रात रानी सी तुम, अनछुई आस सा रात देखा तुम्हें। देखा तुमको लगा, झुरझुरी सी हुई, चलते चलते यूँ हीं, बेबसी सी हुई, ये नजर प्रेम में झुक गई तो मगर, इन निगाहों को कुछ, बेखुदी सी हुई। आँख बहने लगी, दिल भी गीला हुआ, बहकी बरसात सा रात देखा तुम्हें। हाथ में हो मोहब्बत की रेखा सी तुम, चांदनी रात की चित्रलेखा सी तुम,  हो रवानी तुम्हीं प्रेम के राह की, मेरे जीवन की हो स्वर्णरेखा सी तुम। तुमसे कैसे कहें तबसे क्या हाल है, मन के अहसास सा रात देखा तुम्हें। मुझको बांधो मुझे, अपना करते रहो, प्रेम है तो न आहें, यूं भरते रहो, जिंदगी की है, छोटी डगर ये प्रिय, तन्हा तन्हा न इसपर यूं चलते रहो। तेरा बंधन तो कोई शिकायत नहीं प्रेम के पाश सा रात देखा तुम्हें। पाँव थक जाएं तो, मैं सहारा बनूँ मन के मझधार का मैं किनारा बनूँ, तेरे काँटों को पलकें, ये चुनने लगें, तेरी हर रात का, चांद तारा बनूँ, इतनी नाजुक हो कैसे संभालू तुम्हें, अनछुए प्यार सा रात देखा तुम्हें। NM