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Showing posts from 2021

जीवन मे जब जो होना है

जीवन मे जब जो होना है,  उसकी सब सीमाएं निश्चित, उस निश्चित परिधि से आगे,  मानव कब बढ़ पाया बोलो, कर्म भी निश्चित भाग्य सुनिश्चित,  जीवन की हर राह सुनिश्चित, जो इच्छित मन में सदियों से, प्रतिमा कब गढ़ पाया बोलो। और सुनो उसपर ये भ्रम भी, जीवन बस कर्मों के बल है, आज मिला जो भी है हमको, वो जन्मों जन्मों का फल है। पर कर्मों का लेख लिखा है। निश्चित सारा खेल लिखा है। हैं दुष्कर जीवन दोराहे, किस पथ जाना शेष लिखा है। नियति से कितना भी चाहे, मानव कब लड़ पाया बोलो। जो इच्छित मन में सदियों से, प्रतिमा कब गढ़ पाया बोलो। उन्मादी नादों को लेकर,  जीत के सब दावों को लेकर, उतर पड़े जीवन के रण में, आशा के भावों को लेकर। पर मानव इतिहास सुनहरा। नव पथ का आकाश सुनहरा। जब होगा जो भी देखेंगे, मानव मन अहसास सुनहरा। विधिना के दुर्गम जो पर्वत,  मानव कब चढ़ पाया बोलो। जो इच्छित मन में सदियों से, प्रतिमा कब गढ़ पाया बोलो। बहुत हुआ जीवन का निष्ठुर, आंख मिचौली का ये खेला, मिले कहीं पर अनजाने दो मिला कहीं वीराना मेला। हे ईश्वर तुम कथ्य हो अंतिम, इस सृष्टि का दृश्य हो अंतिम, प्राणी में बसते मन बनकर, भाग्य कर्म का सत्य हो अंति

दिल मेरा तोड़ कर

दिल मेरा तोड़ कर जाने की तो आदत है तुझे, गैर को दिल से लगाने की तो आदत है तुझे। एक कही बात को सीने से लगाकर बरसों, राई से पर्वत बनाने की तो आदत है तुझे। कितनी हलचल है छतों पर मुहल्ले भर की, दिन ढले छत पर आने की तो आदत है तुझे। हर तरफ टूटे हैं, बिखरे हैं हज़ारों मोती, झटक कर जुल्फें सुखाने की तो आदत है तुझे। मै नए ख्वाब सजाऊँ तो सजाऊँ कितने, मेरा हर ख्वाब चुराने की तो आदत है तुझे। उम्र भर सुनता रहूं, हो नशीली सी ग़ज़ल तुम तो, दिल मे ये प्यास जगाने की तो आदत है तुझे। नज़र के जाम भी हैं होठों के हैं मयखाने भी, जग को बेबात लुभाने की तो आदत है तुम्हें। खो गईं खुशियां मेरी गम के तारानो में कहीं। मेरा गीत गम में डुबाने की तो आदत है तुझे। फिर नई सुबह, नया दिन, नई है शाम मगर, रात भर मुझको रुलाने की तो आदत है तुझे।

है तमन्ना आज तुमसे

है तमन्ना आज तुमसे, दिल की सारी बात कह दें, क्या इस दिल की आरजू, कैसी थी बरसात कह दें। कैसी झड़ियां लगी हुई हैं सावन बिन आंगन मेरे, तुम कहो तो आज दिल के, हम सभी जज्बात कह दें। तुमसे होना प्रीत मुझको, ये पुण्य कर्मों का रंग था तुमसे मिलना और बहकना, तेरी जुल्फों का ही फन था, आज सतरंगी हुई हैं, मरघट सी जो थी उदासी, हिलते होठों से ही फूटा, जीवन मे मेरे गयन था, हो रही हैं मन में हलचल, आज सब हालात कह दें है तमन्ना आज तुमसे, दिल की सारी बात कह दें, क्या इस दिल की आरजू, कैसी थी बरसात कह दें। हां सुनो, है सच यही बस, तुममें सारे गीत बसते, हां सुनो, संगीत मन के, तुममें ही हैं मीत बसते, सच यही कि तुमसे पहले हर डगर सुनसान सी थी, तुममें ही है हार सारी तुममें ही हैं जीत बसते सारे दिन अब साथ मे हों, जागें सारी रात कह दें, है तमन्ना आज तुमसे, दिल की सारी बात कह दें, क्या इस दिल की आरजू, कैसी थी बरसात कह दें।

भीख और लीज की आजादी

क्या कहा सन सैंतालिस की, वो आजादी भीख थी, क्या कहा मरकर मिली जो, वो आजादी लीज थी। लग रहा कि विष वमन करते हुए कुछ नाग हैं, लग रहा राजाओं के कुछ, पाले हुए ये घाघ हैं। लाख हो कटुता किसी से लाख ही मतभेद हों, पर कहो न जिसको सुनकर भारत माँ को खेद हो। ये हुआ तो वीरों का जो शीश अमर झुक जाएगा ये हुआ तो कौन भगत की पुण्य कथायें गायेगा। कौन बोस को खून देगा, कौन बिस्मिल फिर उठेगा, स्वर्ग में बैठे शहीदों का अमर फिर शीश झुकेगा। ओ कपूतों ज्ञान रख लो, अमर तिरंगा गान रख लो, दे गए खुद मर के हैं जो, उस विजय का मान रख लो।

तुम आ मिलना कान्हा

जीवन का अनुरागी स्वर जब, घुट घुट कर बहना चाहे, जीवन का अंतिम अवसर, कोई दीप नही जलना चाहे, घूमिल हों जब सब इच्छाएं, गीत जगत के बेसुर हों,  ओ कान्हा तुम आ मिलना, जब कोई नहीं मिलना चाहे। जब इस आभासी दुनिया में, भावशून्य सब हो जाए, जब ईश्वर का नाम कठिन, होठों पर मेरे थम जाए, दीप वो अंतिम प्रज्वलित हो, जब धूप धूम्र का ज्वार उठे, जब जीवन के अंतिम क्षण में, गूंज के सब चीत्कार उठे, मीत जो सच्चा बैठ निकट, कह झूठ ये मन छलना चाहे, ओ कान्हा तुम आ मिलना, जब कोई नहीं मिलना चाहे। जब अंतिम गीतों की अंतिम, पंक्ति का उच्चारण हो, जब सत्य झूठ और इस जीवन के, पापों का निर्धारण हो, जब जीवन सुर सारे बिखरें, एक अलौकिक झंकार उठे, मृत्यु सखी से अंतिम मिलन का, साँसों में जब ज्वार उठे, जब महामाया का मोह मुझे, सद्कर्म विमुख करना चाहे, ओ कान्हा तुम आ मिलना, जब कोई नहीं मिलना चाहे। जीवन में जो मिल न सका वो, शायद जीवन बाद मिलेगा, कर्मों का सब लेखा जोखा, मुझको यकीन हर हाल मिलेगा, पाप की जितनी बोई फसलें, पुण्य के जितने बीज गिरे, फलित वो होंगे ही आखिर, जीवन भर जो हैं कर्म किये, भोग लूँ सारे पाप के फल, जब पुण्य उदित होना

ख्वाब बुनता रहा

ख्वाब बुनता रहा, सुन तुम्हारी सदा, आरजू मन की सब, आरजू ही रही। इश्क़ में डूब कर, बात ऐसी हुई, जिंदगी भर तेरी ज़ुस्तज़ु ही रही। मुझसे कहने लगी मेरी वीरानियाँ, इश्क़ कैसा भला तूने किससे किया, जो मिला न तुझे, एक पल के लिए, किसको तूने भला था ये दिल दे दिया। तुझको पाया नहीं, तुझको खोया नहीं। जिंदगी में तेरी एक कमी ही रही इश्क़ में डूब कर, बात ऐसी हुई, जिंदगी भर तेरी ज़ुस्तज़ु ही रही। कैसा आघात था जो हुआ नेह पर, फूल कांटे बने, जो बिछे सेज पर, धड़कनो की ध्वनि, प्रीत की रश्मियां, जग कुचलता रहा वक़्त की रेत पर, कुछ भी बाकी नहीं जो कहूँ तुमसे मैं, रात बोझिल नयन में नमी ही रही, इश्क़ में डूब कर, बात ऐसी हुई, जिंदगी भर तेरी ज़ुस्तज़ु ही रही। कुछ नया सा हुआ अब नई भोर है, गीत भी हैं नए, अब नया दौर है, चाहतें पर वही दिल में मेरे दबी, हैं उड़ानें नई और नई डोर है कितना चाहा जरा भी पिघली नहीं, बर्फ किस्मत पर मेरी जमी ही रही। इश्क़ में डूब कर, बात ऐसी हुई, जिंदगी भर तेरी ज़ुस्तज़ु ही रही।

मेरे हर गीत में तुम हो

मेरे हर गीत में तुम हो,  ये दूरी क्यों बढ़ाई है, हैं मेरी आंख में आंसू,  तुम्हारी याद आई है, कि तुझसे दूर होकर के अभी तक इश्क़ रोता है, जमाना हो गया रूठे कभी मिलने तो आ आओ। कभी तुमसे ही रौनक थी, कभी तुमसे ही रोशन थी, जो रातें आज तन्हां हैं, जो गलियां आज सूनी हैं, मोहब्बत आज भी तन्हा,  मोहब्बत आज तक रुसबा, तेरी ही याद में डूबा, कभी तो दिल पर छा जाओ, जमाना हो गया रूठे कभी मिलने तो आ आओ। मुझे इन चाँद तारों की, कभी हसरत नही थी पर, मुझे दिलकश नजारों की, कभी चाहत नही थी पर, तुम्हारी चाह में कितना,  नयापन आज भी देखो, नए अरमान में डूबे, नए कुछ गीत गा जाओ, जमाना हो गया रूठे कभी मिलने तो आ आओ। कभी कहने नहीं देती, मोहब्बत की है मजबूरी, बहुत लंबी हुई देखो, जो अपने बीच थी दूरी, नया है आज फिर सूरज, नई रातें नया चंदा, जो बीती भुलकर उसको, गले फिर से लगा जाओ। जमाना हो गया रूठे कभी मिलने तो आ आओ।

सरकारों की असंवेदनशीलता

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सरकारें कितनी असंवेदनशील हो सकती हैं इसका उच्चतम उदाहरण अनेको बार सामने आया है। आज से 10 साल पहले भी  सैनिकों के शहादत पर सांसद कह देते थे कि सैनिक मरने के लिए ही तो नौकरी करते हैं इसकी इनको तनखाह मिलती है, और कालांतर में वो लोग मंत्री बन जाते हैं। इसमें वर्तमान सरकार को ही दोषी मानना बिल्कुल सही नहीं, इसमें हर कोई शामिल है, केंद्र की सरकार हो या राज्य की सरकारें हो, पंचायत हो, सब इसमें शामिल हैं। अफसरों की संवेदनशीलता खासकर वो अफसर जो जनता के सम्पर्क में आते हों वो कितने भी छोटे पद पर क्यों न हों लेकिन उनके झोपडी को मकान, मकान को बंगला बनते कितना समय लगता इसकी जानकारी किसको नही? हर भारतीय कभी न कभी इसका स्वाद ले ही चुका हैं। नोट बंदी, बिना गरीबो की सुध लिए लॉकडाउन लगाना, इसका ताजा उदाहरण हैं जिनसे देश की 85% आबादी किसी न किसी रूप में बुरी तरह प्रभावित हुई। इसका ताज़ातरीन उदाहरण गंगा में बहती लाशें है जिनको किसी भी वजह से दफनाया गया हो लेकिन ये दृश्य कितना विभत्स था इस बारे में लिखना मुश्किल है लेकिन इन सब बातों से आधुनिक राजाओं पर कोई फर्क नही पड़ता कोई कितना भी जनहित की बात करे लेकिन उ

तुम मिलो तो मुझे (e)

तुम मिलो तो मुझे, इस जन्म उस जन्म, कुछ कहें इश्क़ में, हमको तुम, तुमको हम। यूं ही लड़ते हुए, उम्र बीते तो क्या। जब गिरें थाम लें, हमको तुम, तुमको हम। ये जमाना रहा, प्रेम पर क्रूरतम, चुप जो अल्फ़ाज़ हैं, बिन कहे जान लो, कोई तेरा सहारा बने न बने, दिल मे जो है तेरे बस उसे ठान लो। मंजिलों का पता खुद कहेगी हवा, थाम कर आ चलें, हमको तुम, तुमको हम। तुम मिलो तो मुझे, इस जन्म उस जन्म, कुछ कहें इश्क़ में, हमको तुम, तुमको हम। दूर होने की कोई भी सूरत प्रिये, ये जमाना गढ़ेगा, बहकना नही, जग में पूरी न होगी कमी प्रेम की, पर जमाना कहेगा, बदलना नही, तन की दूरी से कब है घटी प्रीत ये, मन से रब मान लें, हमको तुम तुमको हम। तुम मिलो तो मुझे, इस जन्म उस जन्म, कुछ कहें इश्क़ में, हमको तुम, तुमको हम। दीप ये झिलमिलाता रहा रात भर,  आस ने इसको हरगिज न बुझने दिया, तुमसे कैसे कहें प्रेम की बेबसी, प्रेम ने ही कभी कुछ न कहने दिया, प्रेम के मायने जग ये बदले मगर, प्रीत से बांध लें हमको तुम, तुमको हम तुम मिलो तो मुझे, इस जन्म उस जन्म, कुछ कहें इश्क़ में, हमको तुम, तुमको हम।

एक बाण काम फिर मारो

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एक बाण काम फिर मारो, व्यापक प्रेम अगन हो जाये, हर ओर प्रेम प्रेम ही फैले, जग ये प्रेम मगन हो जाये, नयनों में साजन और सजनी, डूब गए सारा जग भूले, दिन बीते जैसे एक पल हों, सदियों का जगन हो जाये। एक बाण काम फिर मारो, व्यापक प्रेम अगन हो जाये। तुमसे मिलने को यौवन ने की कितनी तैयारी, रूप सजाया अनुपम सुंदर, तन ज्यूँ हो फुलवारी। आई मैं पास तुम्हारे, तन मन और जीवन को हारे,  महावर काजल बिंदिया, होकर के सोलह श्रृंगारी। बरसों से तरसे ये नैना, मार लिया मन मिला न चैना, तुमको देखा मन ये बहका, तन गाये जैसे हो मैना। एक बाण काम फिर मारो, सम्पूर्ण लगन हो जाये, बरसो की हर आस हो पूरी, पिया मिलन हो जाये। नयनों में साजन और सजनी, डूब गए सारा जग भूले, दिन बीते जैसे एक पल हों, सदियों का जगन हो जाये। सांसों में सांसें उलझी, तुमने ली वो अंगड़ाई, लब छू बैठे उन होठों को, भूली सारी चतुराई, हम साथ तुम्हारे ऐसे, हों सर्प और चंदन जैसे, रात मिलन की हमने, है स्वप्न से सुंदर पाई, सरगम है देखो बहकी, सांसें है दहकी-दहकी, मन तृप्त हुआ है ऐसे, मरु में ज्यूँ नदिया बहती, एक बाण काम फिर मारो, जो तन मन को बहकाये, मधुमय

एक बाण पुष्प फिर मारो

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एक बाण पुष्प फिर मारो, जो शिव को मारा तुमने, है प्रेम का सूखा जग में, कुछ अमृत रस बरसाओ, कितनी दूरी है उनसे, कितनी व्याकुल हैं सांसे, जन्मों की अगन है जैसे, निज नेह सुधा बरसाओ। है प्रेम जो सच्चा मेरा, तुमको पाना ही होगा, जो नयनो ने रच डाली, मुक्तक गाना ही होगा, ये माना जग की दूरी, है बीच में अपने आई, जब प्रीत बुलाएगी तो, तुमको आना ही होगा ये मान लो अब तो साजन, न हमको यूं तरसाओ, जन्मों की अगन है जैसे, निज नेह सुधा बरसाओ। सूख गई सृष्टि की, सब रसमय जो नदियाँ थीं, ठूँठ हुई हैं सारी, मधुमास में जो अमियाँ थीं, कौन जो तुमसे बेहतर, समझे इस मन की हालत, शुष्क हुई बह-बह कर, जो नयनो की नमियाँ थीं, सुनो मीत नहीं तो मेरे, शत्रु बनकर आ जाओ, जन्मों की अगन है जैसे, निज नेह सुधा बरसाओ। ओ साजन ये भी सुन लो, पहचान हो मेरी तुम ही, साँसों में आती-जाती, जीवन का नाम हो तुम ही, कुछ होने को हो जाये, पर सत्य यही मेरा है, काम तुम्हीं हो साजन, और धाम प्रेम का तुम ही, अब भूल के सारे जग को, आ बाहों में सो जाओ, जन्मों की अगन है जैसे, निज नेह सुधा बरसाओ।

कत्ल करती चली जा रही तुम

कत्ल करती चली जा रही तुम, कत्ल होते चले जा रहे हैं, हुस्न ऐसा खुदा से है पाया, सब्र खोते चले जा रहे हैं। कत्ल होने की है आरजू बस, तेरी नज़रों के खंजर से हमको, चली बेबाक तुम आ रही हो, हम भी बेसुध बढ़े जा रहे हैं। कोई दिलकश अदा फिर से फेंको, अब भी नज़रों में उलझा मेरा दिल, दुनिया भटकी कमर की लचक में, हम नज़र पर मरे जा रहे हैं। और होगी तो पूरी हो हसरत,  इस जहां में करे जो भी सजदा, सारी रंगत ख़ुदाई की फीकी,  तेरा हर रंग पढ़े जा रहे हैं। ए ख़ुदा मूंद ले अपनी आंखें, हो न ये कि बहक जाए तू भी, है नशा वो कि मयखाने बहके, जाम ऐसे गढ़े जा रहे हैं। न हो उनसे मिलन अपना मुमकिन, मुझको मेरे खुदा बस यकीं दे, वो मय्यत पर आएंगे मेरी, जो दिल झटक यूं चले जा रहे हैं।

है बहुत खूबसूरत हसीन रात ये

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है बहुत खूबसूरत हसीन रात ये, तेरी जुल्फें और तारों की बारात ये, जुगनुओं आओ, दामन को रोशन करो, है मोहब्बत की दिलकश शुरुआत ये। देखूं छत पर तुम्हें रोज आती हुई, धूप में जेठ की मुस्कुराती हुई, दर्द दिल में छुपा कर जो रखा सनम, रोज जाती हो उसको बढ़ाती हुई। सारे फूलों से जग के, तुम तो हसीं, नाज़ जिसपर करे बाग, तुम वो कली। टूट कर प्यार हो कोई ऐसा जतन, कितनी दिलकश मोहब्बत की बरसात ये, जुगनुओं आओ दामन को रोशन करो, है मोहब्बत की दिलकश शुरुआत ये। वो मुझे देखकर मुहँ बनाना तेरा, अपनी जुल्फों में, अंगुली फिराना तेरा, मौसमों को न बहकाओ ऐसे प्रिये, हुस्न से बाग, न यूं जलाओ प्रिये।  तेरी जुल्फों ने उड़ उड़ बताया मुझे, टूट कर आज बरसेगा सावन यहां। बहके-बहके कदम, बहका-बहका समां, रात बहकी, तेरी ही है सौगात ये। जुगनुओं आओ दामन को रोशन करो, है मोहब्बत की दिलकश शुरुआत ये। आज का जो था वादा वो कल का हुआ, रंग उल्फत का शायद है हल्का हुआ, कुछ भरें रंग फिर से चलो प्यार से, उम्र का हमने माना धुंधलका हुआ, पर मोहब्बत जवां थी जवां ही रही, रूठती भी दिखी मेहरबान भी रही, जलते-जलते रहे मेरे मन के दीये, रोशनी की हो जैसे कायनात य

तेरे बिना है फीका सावन कान्हा

तेरे बिना है फीका सावन, तेरे बिना बेरंगी फाल्गुन, तुमसे दूरी मरघट दुनियाँ, साथ तुम्हारा हर पल पावन। हे कान्हा कुछ ऐसा कर दो, जन्मों तक हो मिलन ये वर दो, मुझमे बस एक वास हो तेरा, स्वप्न में महारास हो तेरा, तुममे जीवन, तुममे मृत्यु, तुममे सांसों का अनुपालन, तुमसे दूरी मरघट दुनियाँ, साथ तुम्हारा हर पल पावन। दीपों के सब आलय तममय, सूख रहे हिम आलय रसमय, जीवन की हर छाया खोई, बृज की मिट्टी मिट्टी रोई, आस लगाये थकती यमुना, नीर नयन ज्यों बरसे सावन, तुमसे दूरी मरघट दुनियाँ, साथ तुम्हारा हर पल पावन। सखा सखी सब को बिसरा के, तोड़ चले इस जन्म के नाते, मात-पिता का प्रेम भी भूले, कैसे करते कर्म की बातें, ये तो कहो क्या कर पाओगे, प्रेम बिना सृष्टि संचालन, तुमसे दूरी मरघट दुनियाँ, साथ तुम्हारा हर पल पावन।

संस्कार

मुझे नही करनी शादी वादी। आप लोग समझते क्यों  नहीं। मेरे सपने है मैं पढ़ना चाहती हूँ, अपने पैरों पर खडी होना चाहती हूँ, शादी की कौन सी जल्दी है। अदिति जोर से लगभग चिल्लाते हुए बोली। मत करना, लेकिन कोई आ रहा है तो उसको मना कैसे कर दें। देख लो नही पसंद आया तो ना करना। हम कौन सा जबरदस्ती करवा रहे है मेरी प्यारी सी परी की शादी। वैसे किसी मेहमान का अपमान करना अच्छी बात नहीं है ना। अदिति के पापा ने प्यार से बोलते हुए कहा। ठीक है आ जाऊंगी कल कॉलेज से जल्दी। अदिति बोली। जल्दी, मतलब, कल नहीं जा रही हो तुम। ब्यूटी पार्लर जाना है, तैयार होना है, और तुमको कॉलेज की लगी है। माँ कितने गुस्से मे बोली थी। अरे अरे। मिलने को हाँ क्या कह दिया आप तो दुल्हन बनाने लग गई। मैं कही नहीं जाने वाली। जिसको देखना है ऐसे देखे नहीं तो वापस जाये। अदिति बोलते हुए अपने कमरे मे चली गई थी। सुना अपने, क्या बोल रही है। क्या हो गया है आज के बच्चों को, संस्कार ही खत्म हो गये है। मां ने पापा को सुनाते हुए बोला था। अरे कोई नहीं वैसे भी हमारी गुड़िया किसी परी से कम नही। क्या करेगी पार्लर जाकर। कभी गुलाब कोई मेकअप करता है क्या

साथ कर लें हम

आओ, रोना-हँसना, जीना-मरना साथ कर लें हम, बहुत लंबी हुई चुप्पी, जरा फिर बात कर लें हम, सुनो ये चांद तारों का, सफर कितना सुहाना है चलो फिर प्रेम की रोशन, यूँही शुरुआत कर लें हम। नई दुनिया नए सपने, नए अरमान लेकर के, बसे थे प्रेम की नगरी में, नया पैगाम लेकर के, तो कैसे तुमने सोचा खुद नई तुम राह चल दोगे, अगर चलना ही है तो चलो एक साथ चल लें हम, बहुत लंबी हुई चुप्पी, जरा फिर बात कर लें हम। जो बजती है कोई घंटी, दिल सब भूल जाता है तेरी बातों, तेरी यादों का झूला झूल जाता है, अकेला महफ़िल में छुप छुप सुनो आंसू बहाता है, चलो शिकवे मिटायें, इक नया आगाज कर लें हम बहुत लंबी हुई चुप्पी, जरा फिर बात कर लें हम। मिलना और बिछड़ना, होगा ही जब साथ दो होंगे, लड़ना और झगड़ना होगा ही जब साथ दो होंगे, ये दो होना अगर जड़ है मिटा दें मिलकर दोनों को, चलो अब एक हो जाएं, मैं को आज कर लें हम। बहुत लंबी हुई चुप्पी, जरा फिर बात कर लें हम। नई आदत नए किस्से नए किरदार होंगे अब, जो हम तुम साथ होंगे तो नए इतवार होंगे सब, चलो अंतिम कुँवारेपन की सारी यादों को रख लें, बाबू शोना, रात सारी अंतिम बार कर लें हम बहुत लंबी हुई चुप्पी, जर

भक्ति

हैं कृष्ण ही संसार का प्रथम और अंतिम ज्ञान, जिसने इनको पा लिया, सृष्टि मिली तमाम। शिव ही है इस सृष्टि का, अंतिम शक्ति धाम, शिव द्रोही को न मिलें, शक्ति, कृष्ण या राम। शिव भी उस दुर्भाग्य का, कर न सकें उद्धार, जो राम से विमुख हुआ, डूबा वो मझधार। जीवन की इस नाव का, राम नाम पतवार, जिसने राम भुला दिया, कौन हो खैवनहार। शिव जो मानो दीप है, राम हैं पुण्य प्रकाश, एक दूजे से पूर्ण हैं , ज्यों धरती आकाश। बहुत गए कहने वाले, उनसे सकल संसार, रावण, हिरण्यकश्यप गया, बल जिनका अपार, करो तपस्या लाख या, घूम लो चारो धाम, सम फल चाहो नित्य भजो, रघुपति सीताराम।

हर ओर उदासी सी है

हर ओर उदासी सी है, तबियत भी बासी सी है। तुझे ढूंढ ढूंढ थक कर के, ये रात भी जाती सी है। कैसे समझाएं दिल को, कितना भरमाये दिल को, तुम दूर गए यूं लगता, ज्यूँ मौत भी आती सी है। घुटते अरमान विकल हैं, मधु के सब जाम विफल हैं, जो किंचित न विचलित हों, यादों के घाम प्रबल हैं, तुमसे मिलने को सदियों, हम जन्मों दौड़े आयें, हर हाल मिलोगी तुम ही, मन में अरमान अटल हैं। फिर भी एक दुख की छाया, मन को बहकाती सी है, तुम दूर गए यूं लगता, ज्यूँ मौत भी आती सी है। हर ओर उदासी सी है, तबियत भी बासी सी है। तुझे ढूंढ ढूंढ थक कर के, ये रात भी जाती सी है। जो गढ़ते थे बरसों से, वो मूरत जीवित पाई, मचल गया जिसपर दिल, वो सूरत तुमने पाई, मन में जब तेरी झांकी, जग का समझाना फांकी,  हर रात स्वप्न में तुम ही, हो अप्सरा बन आईं, पर मिलन हमारा दुष्कर, दुनिया समझाती सी है तुम दूर गए यूं लगता, ज्यूँ मौत भी आती सी है। हर ओर उदासी सी है, तबियत भी बासी सी है। तुझे ढूंढ ढूंढ थक कर के, ये रात भी जाती सी है। है दूर बहुत मंजिल पर, सबको जाना ही होगा, जो नियति ने लिख भेजा, उसको पाना ही होगा, हाँ कर्म बदल सकता सब, दुनिय

इश्क़ में डूबा था दिल

कुछ इश्क़ में डूबा था दिल, कुछ तुमने था बहकाया, हैं नींद से बोझल आंखें, मैं बरसों सो न पाया, जो गीत बहे आंखों से, वो गीत मैं कैसे गाऊँ, जो दर्द दफन सीने में, दुनियां से कह न पाया। तुमने मजबूर किया है, जीवन से दूर किया है, हम प्रेम में घुट घुट जीते, तुमने भरपूर जिया है, सारी खुशियों का सौदा, प्रेम से ही कर डाला, तुम अच्छे सौदागर थे, सौदा ये खूब किया है, हाँ ये भी सच जीवन का, है पाठ पढ़ाया सच्चा, प्रेम पर चढ़ तुम निकले, मैं प्रेम से बढ़ न पाया। हैं नींद से बोझल आंखें, मैं बरसों सो न पाया। जो गीत बहे आंखों से, वो गीत मैं कैसे गाऊँ, जो दर्द दफन सीने में, दुनियां से कह न पाया। हम प्रेम को समझे जीवन, तुम प्रेम को चांदी सोना, बस तोड़ दिया तुमने दिल, था जैसे एक खिलौना, कहो प्रेम का कैसे कोई, नव गीत गढ़ेगा फिर से, दो पल का हँसना बन जाये, जीवन भर का रोना, देखो पल भर में टूटे, जो स्वप्न सजाए हमने, दिल मे चुभते नश्तर से, नव स्वप्न मैं बो न पाया। हैं नींद से बोझल आंखें, मैं बरसों सो न पाया। जो गीत बहे आंखों से, वो गीत मैं कैसे गाऊँ, जो दर्द दफन सीने में, दुनियां से कह न पाया। खिल जाएंगी बागों में, फिर फू

आओ बाहों में भर लो

आओ बाहों में भर लो, जीवन का चिर गीत तो गा दो आती जाती साँसों का वो, मुझको मधुर संगीत सुना दो। होठों को थामों आंखों से जो कहना हो कहते जाओ, कुंठित आशाओं को तुम, छू लो और परवाज़ बना दो। ऐसा हो हर ओर से तेरी, धड़कन की प्रतिध्वनि आये, जीवन के सब कोर कोर पर, एक तेरा ही रंग छा जाए, आज मिटा दो इस जीवन से, मिलने खो देने के डर को,  तुम ईश्वर बन जाओ मन के, मुझको अपना दास बना दो आती जाती साँसों का वो, मुझको मधुर संगीत सुना दो। होठों को थामों आंखों से, जो कहना हो कहते जाओ, कुंठित आशाओं को तुम, छू लो और परवाज बना दो। मधुर मिलन की ये बेताबी, बरसों से खामोश रही है, कुछ तो बात है तुममे ऐसी, जबसे देखा होश नहीं है, दुनिया पूरी पा लेने की, बिना तुम्हारे कीमत क्या है, तुमने ही भरमाया मन को, मेरा कुछ भी दोष नहीं है, प्रेम भरा आलिंगन दो फिर, जन्मों की ये प्यास बुझा दो आती जाती साँसों का वो, मुझको मधुर संगीत सुना दो। होठों को थामों आंखों से, जो कहना हो कहते जाओ, कुंठित आशाओं को तुम, छू लो और परवाज बना दो। कब गाएंगे हम तुम मिलकर कब आएगी शाम सुहानी, बाहों में कब होंगी बाहें, कब महकेगी रात की रानी। कब होगा जब साथ

हो तिमिर कितना भी गहरा

हो तिमिर कितना भी गहरा, आखिर भोर तो आनी ही है, कितनी घनघोर घटाएं छायें, आखिर वो छंट जानी ही है। कितने भी दीपक बुझ जाएं, आस नहीं तुम बुझने देना, सुख दुख का ही नाम है जीवन, एक आनी एक जानी ही है। नाव चलानी है ही हमको, चाहे बाढ़ या सिमटे पानी, इस धारा के पार है मंजिल, खड़ा तू कैसे है हैरानी, जीवन का मतलब है चलना, राह नहीं तो भी है डंटना, वक़्त का पहिया चलना ही है, मंजिल तो आ जानी ही है। हो तिमिर कितना भी गहरा, आखिर भोर तो आनी ही है। कितनी घनघोर घटाएं छायें, आखिर वो छंट जानी ही है। कर्मों का फल मिलके रहेगा, चाहे जितना जोर लगा ले, जैसा किया वही पायेगा, चाहे जितना भी आजमा ले, जो मिलना है यहीं मिलता है, स्वर्ग यहीं है नर्क यहीं, सत्य अमर बस है दुनिया मे, मृत्यु झूठ को आनी ही है। हो तिमिर कितना भी गहरा, आखिर भोर तो आनी ही है। कितनी घनघोर घटाएं छायें, आखिर वो छंट जानी ही है। जीवन तो बस वो ही जीता, हार नही जिसने है मानी, जीवन के सुखों दुखों को, जो समझे बस बहता पानी, जिसने आस की लौ लगाई, उसने सारी खुशियां पाईं वक़्त सभी का आता ही है, होनी तो हो जानी ही है। हो तिमिर कितना भी गहरा, आखिर भोर तो आनी ही है

रात गहरी

रात गहरी बहुत और गहरी हुई, गम के बादल छटे और न सहरी हुई, दिल के किस्से ख्यालों में अटके रहे, गम की परछाई कुछ और गहरी हुई। हाँ ख्यालात मेरे थे मदहोश से, हाँ सवालात मेरे थे खामोश से बस तेरी आरजू का, अफसाना था बस ये हालात मेरे थे बेहोश से, दिल के हालात बहके थे बहके रहे स्वप्न टूटे व्यथा मन की गहरी हुई। रात गहरी बहुत और गहरी हुई, गम के बादल छटे और न सहरी हुई। जो भी साथी बने, वो कहीं खो गए, हमसफर जो भी थे, राह में सो गए, मैं भी चलता रहा जिंदगी न थमी, आंख से निकले आंसू, स्वप्न धो गए, हर जगह मैं गया, लेके टूटा सा दिल, स्वर्ग की सारी सत्ताएं बहरी हुईं, रात गहरी बहुत और गहरी हुई, गम के बादल छटे और न सहरी हुई। वो बहुत खूब थे गुजरे तेरे जो दर, न खबर थी हमे लागी किसकी नज़र, कौन अपना था जो न गया तोड़ कर, रात होते ही दामन मेरा छोड़कर। गीत गायें भी क्या गुनगुनाएं भी क्या? मौत की शायद अंतिम अंधेरी हुई। रात गहरी बहुत और गहरी हुई, गम के बादल छटे और न सहरी हुई।

मजा

तुझको छूने के बहानो का मज़ा, कुछ तो है। रूठती तुझको, मनाने का मज़ा, कुछ तो है। हो गया दुश्मन ये जहान, छुप छुप मगर, प्यार का गीत ये गाने का मज़ा, कुछ तो है। मैं तेरे इश्क़ की राहों में चलूंगा जन्मों। जो हुई रात, शमा बनकर जलूंगा जन्मों,  अब कोई दर्द, तमन्ना, न खुशी है तुम बिन, हो तेरा साथ, जी-जी कर मरूँगा जन्मों बन गया मंदिर मेरे दिल का हर एक कोना, तुझको रब अपना बनाने का मज़ा, कुछ तो है। तुझको देखेगा तो डर जाएगा ये चांद भी आज, तुझको देखेगा तो जल जाएगा काम भी आज, तुझको पाने की तमन्ना भी जागेगी उसमे, तेरे अधरों पर मिट जाएगा ये जाम भी आज, बस ख़ुदा की ये हसीन दुनियां बचाने के लिए, तुझको दिल मे यूं छुपाने का मज़ा, कुछ तो है। आज की रात ये आई है बड़ी फुरसत से, जिंदगी आज ये मुस्काई है बड़ी फुरसत से, मैं इश्क़ का परवाना हूँ समा लो खुद में, तेरी दिल ने लौ लगाई है बड़ी फुरसत से तेरी नींदों में तुझे देखूं, तुझे प्यार करूँ, तुझको बाहों में सुलाने का मज़ा, कुछ तो है। सांझ ढले ये दुनिया सारी, जगमग दीप जला बैठी, जो मन मे मेरे बरसों से, बात वो लब पर आ बैठी, कहाँ चली अपने घूंघट में, सारे जज्बात छुपा कर के तू मेरे तन

तुम्हारी आंखें

तुम्हारी आंखें तुम्हारी जुल्फें, तुम्हारी बाहों में दिल हमारा, उलझ गया है संभालूं कैसे, तुम्हारे पहलू में दिल हमारा। तराशा जिसको खुदा ने खुद ही, कि जैसे मूरत हो संगमरमर, कहीं वो खुद ही न दिल हार जाए, चुराया तुमने है दिल हमारा। नशा नशा सा छाया है बस, तुम्हारे होठों को छू लिया है, ये कैसी मय है ये कैसा जादू, मिटा तुम्हीं पर है दिल हमारा खुशबू इतनी कहाँ से लाई, बाग सारे है बहके बहके, तुमसे सहमे हैं फूल सारे, खोया तुममे है दिल हमारा। ये भोली भाली अदाएं कातिल, समझ न पाऊं क्या तेरे दिल मे, कभी लगाती गले हो मुझको, कभी तो रोता है दिल हमारा। न सांस आये, न सांस जाए, लगा लो मुझको गले से ऐसे, लब ये छू लें तुम्हारे लब यूं, थम ही जाए ये दिल हमारा। Vishu "आनन्द" 04 मार्च, 2021

आ जाओ बरस जाओ

आ जाओ बरस जाओ, तुम मुझपर घटा बनकर, क्यों प्यास बढ़ाती हो, तुम मेरी नशा बनकर। थी रात बहुत काली, तुमसे ही हुई रौशन, है थाम लिया तुमने, रोया है जब भी मन। हर सांस तुम्हीं से है, हर आस में एक तुम ही, हर चोट पर आती हो, तुम मेरी दवा बनकर। आ जाओ बरस जाओ, तुम मुझपर घटा बनकर, क्यों प्यास बढ़ाती हो, तुम मेरी नशा बनकर। थमती मेरी धड़कन को, बंसी सी जुबा दे दो, तुम मेरे ख्यालों को अम्बर तो नया दे दो। उम्मीद से ज्यादा तुम, मुझमे ही समाते हो बहलाती हो मन मेरा, तुम गीत नया बनकर। आ जाओ बरस जाओ, तुम मुझपर घटा बनकर, क्यों प्यास बढ़ाती हो, तुम मेरी नशा बनकर। होठों पर होठों को,  बाहों को बाहों में, कुछ ऐसे समाने दो, हर दूरी मिटाने दो। तुम हो जो मेरी दुनियां, हर रंग सजी देखो, ये प्रेम लुटाओ फिर, तुम मेरी वफ़ा बनकर। आ जाओ बरस जाओ, तुम मुझपर घटा बनकर, क्यों प्यास बढ़ाती हो, तुम मेरी नशा बनकर। ऐसा न हो साया ही अपना भी ये खो जाए, उम्मीद न टूटे तूँ, आये या नहीं आये, पर प्रेम के सागर का, कोई छोर नही मिलता, मुझे पार लगा जाओ, बस मांझी मेरा बनकर, आ जाओ बरस जाओ, तुम मुझपर घटा बनकर, क्

असर ये कैसा इश्क़ का

असर ये कैसा इश्क़ का, जलने लगी बरसात, गीली गीली धूप हुई, ठंडी ठंडी आग। शीत दुपहरी जेठ की, जले पूस की रात, गीली गीली धूप हुई, ठंडी ठंडी आग। तुमसे जब हमको हुई, प्रीत तो बदले रंग, जीवन था ये अनमना, छाई नई उमंग। कैसे तुम रंगते प्रिये, स्वप्न धवल बेरंग, हो जाती है रोशनी, छुपती काली रात। असर ये कैसा इश्क़ का, पूर्ण सभी अहसास, गीली गीली धूप हुई, ठंडी ठंडी आग। कुछ भी हो बस एक तुम्हें, पा लेने की आस, आंखों से अब न बुझे, जीवन भर की प्यास। हुई सुनहरी जिंदगी, नाचा मन का मोर, आती जाती सांस ये करती तुमको याद, असर ये कैसा इश्क़ का, हरपल तुम ही पास, गीली गीली धूप हुई, ठंडी ठंडी आग। सारे जग का रहनुमा, नाचे जैसे काठ, सबको प्रियवर श्याम मिले, न बीते ये रात, सब हो जाये श्याममय, मन नाचे मस्त मलंग, गलियाँ सारी जी उठीं, नाचें यमुना घाट। असर ये कैसा इश्क़ का, रात हुई महारास, गीली गीली धूप हुई, ठंडी ठंडी आग। मन वैरागी सा हुआ, जग को बैठा भूल, तुम लौटे न युग गया, हुई है कैसी भूल, तरसे यमुना घाट सब, बंसी की आवाज, कान्हा तुमसे दूर सभी, फूल भी लगते शूल, मिलन में भी एक दर्द ये, छूटेगा फिर साथ गीली गीली धूप है, ठंडी ठंडी

आंकड़ा सिर्फ आंकड़ा...

आप चाहे किसान आंदोलन के समर्थन में हों या विरोध में या आपका अधिकार है, लेकिन जिसको लगता है कि कोई कानून गलत है उनका अधिकार है कि वो उसका विरोध करें, और जो उनके इस विरोध करने का विरोध करता है वो देशद्रोही है, क्योंकि वो संविधान में दिये विरोध के अधिकार के खिलाफ है। यहां बात किसी एक के लिए नही सबके लिए है।  तो आप विरोध करें सरकार का साथ दें, लेकिन किसी आंदोलनों के अधिकार का विरोध गलत है, क्योंकि जब आप किसी बात पर सरकार के विरुद्ध होंगे तो आपको समर्थन नही मिलेगा। जबकि आपको भले मुद्दों से सहमति न हों लेकिन लोग अपने नागरिक होने का फर्ज निभा रहे हैं इसके लिए तो उनका साथ देना चाहिए। वो लोकतंत्र के मंदिर में यज्ञ कर रहे है, यदि वोट देना लोकतंत्र में पूजा है तो ये आंदोलन ही लोकतंत्र में यज्ञ है और जब यज्ञ होता है तो वरदान मिलता है, देवता संतुष्ट होते हैं। और रहा सवाल की राजा से सवाल कैसे पूछ सकते हैं तो पहली बात राजा देश नही होता और राजा से सवाल करना हर नागरिक का अधिकार है। और राजा की हैसियत क्या है लोकतंत्र में जनता मालिक है और मालिक सवाल नही पूछेगा तो नौकर उदंड हो जाएगा। और दूसरी बात हम सवाल