वीराना मेरे घर सा इस जहाँ में घर नहीं

वो आँखों के सामने भी हैं पर, हमनजर नहीं,
या खुदा क्यों उनको कुछ मेरी खबर नही।

दिल की हर आस पर, उनको है इक्तियार,
जाने क्यूँ इश्क का हुआ कुछ, उनपर असर नही।

मेरी जिन्दगी पर छाया उन्हीं का सूरूर है,
कैसे कहें कि मेरे, वो हमसफर नहीं।

या तो छुपा रहे हैं वो, हमसे, दिल का हाल,
या वो खुद हैं पत्थर, उनमें जिगर नही।

ख्वाबों में आकर हमको, जगाया है बार-बार,
खुद सो रहे हैं ऐसे, कुछ उनको खबर नहीं।

अब दुआ भी करना, किसी से फ़िजूल है,
दिल की सदा में शायद, बचा कुछ भी असर नही,

मेरे लिए तो मंदिर-मस्जिद है उनका घर,
जो जाए न वहाँ वो मेरी, राहगुजर नहीं।

उनके बिना तो सूने, बहारों में बाग हैं,
वीराना मेरे घर सा, इस जहाँ में घर नहीं।

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