मधुर-मधुर मधुबन में गुंजन


मधुर-मधुर मधुबन में गुंजन, पवन सुगंधित छाई है।
आई है हर जगह बहार, इस दिल में नहीं आई है।।

तेरे हँसने भर से हमदम, कलियाँ सभी मुस्कराती थी,
जुल्फों के खुल जाने भर से, काली घटायें छाती थी,
जब से गई है दूर तू मुझसे, न एक कली मुस्काई है,
आई है हर जगह बहार, इस दिल में नहीं आई है।।

तुमसे कुछ पाया न पर, दिल को मेरे आस है बाकी,
बैठ कभी फिर साथ तुम्हारे, देखें इन तारों की झांकी,
झूठी है पर आस ये कैसी, दिल ने तुझसे लगाई है,
आई है हर जगह बहार, इस दिल में नहीं आई है।।

सुबह सुबह ऊषा की लाली, तेरे आँचल का रंग जैसे,
साँझ ढले रात वो काली, तेरी जुल्फों का साया कैसे,
कैसे होता मिलन हमारा, तू तो बस परछाई है,
आई है हर जगह बहार, इस दिल में नहीं आई है।।

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