कत्ल करती चली जा रही तुम
कत्ल करती चली जा रही तुम, कत्ल होते चले जा रहे हैं, हुस्न ऐसा खुदा से है पाया, सब्र खोते चले जा रहे हैं। कत्ल होने की है आरजू बस, तेरी नज़रों के खंजर से हमको, चली बेबाक तुम आ रही हो, हम भी बेसुध बढ़े जा रहे हैं। कोई दिलकश अदा फिर से फेंको, अब भी नज़रों में उलझा मेरा दिल, दुनिया भटकी कमर की लचक में, हम नज़र पर मरे जा रहे हैं। और होगी तो पूरी हो हसरत, इस जहां में करे जो भी सजदा, सारी रंगत ख़ुदाई की फीकी, तेरा हर रंग पढ़े जा रहे हैं। ए ख़ुदा मूंद ले अपनी आंखें, हो न ये कि बहक जाए तू भी, है नशा वो कि मयखाने बहके, जाम ऐसे गढ़े जा रहे हैं। न हो उनसे मिलन अपना मुमकिन, मुझको मेरे खुदा बस यकीं दे, वो मय्यत पर आएंगे मेरी, जो दिल झटक यूं चले जा रहे हैं।