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Showing posts from 2018

चिड़िया रानी

चिड़ियां-रानी चिड़ियां-रानी, रोज कहाँ से आती हो। चीं-चीं-चीं करके, कितना शोर मचाती हो। पास मैं जब आता हूँ तेरे, तुम झट से उड़ जाती हो, चीं-चीं-चीं करके, कितना मुझे सताती हो। करो बात ओ चिड़ियां रानी, मुझको संग खिलाओ न, बार-बार यूं उड़-उड़-उड़ के, मुझको रोज सताओ न, चिड़ियां-रानी सबसे छुपकर, रोज कहाँ खो जाती हो? चीं-चीं-चीं करके, मुझको रोज रुलाती हो। चिड़ियां रानी क्या तुम मुझको, अपना दोस्त बनाओगी, पंख फैला कर आसमान में, उड़ना मुझे सिखाओगी, चिड़ियां रानी इतना ऊपर, तुम कैसे उड़ जाती हो? चीं-चीं-चीं करके, सपने नए दिखती हो। मेरी चिड़ियां-प्यारी चिड़ियां, कितने दोस्त तुम्हारे हैं। हरे, गुलाबी, नीले, पीले, रंग बिरंगे सारे हैं। इतने सारे सुंदर-सुंदर, रंग मुझको दिखलाती हो, आसमान में सबको लेकर, फुर्र-फुर्र तुम उड़ जाती हो।

कवि की आशा

आस नहीं कि इस दुनियां में, कुछ गीतों से जाना जाऊं। आस नहीं बस शब्दों का, एक समंदर माना जाऊं। आस नहीं कि ये दुनियां, मुझको कोई सितारा समझे, आस यही कि, बस तेरे ही, होठों पर सज जाना चाहूं। स्वप्नों का कुछ मोल नहीं जो, स्वप्न तुम्हारे शामिल ना हो, उन अश्को से, क्या मुझको जो, प्रेम मे तेरी हासिल न हो। दीप बुझे तो बुझ जाये सब, प्रेम अगन बन जाना चाहूँ आस यही कि बस तेरे ही, होठों पर सज जाना चाहूं। इन नयनो से प्रीत जता कर, प्रेम मेरा स्वीकार किया जब भूल जगत की सब रीतों को, मन पर था अधिकर किया जब अब क्या कह दूँ, कैसे कह दूँ, बस तेरा बन जाना चाहूँ। आस यही कि बस तेरे ही, होठों पर सज जाना चाहूं। प्रीत भला कैसे हंस कर के, निर्मम जग स्वीकार करेगा, तेरा मचलना, मेरा बहकना, कैसे ना प्रतिकार करेगा, जग कुछ भी कर ले मै तुझसे, प्रेम अमर कर जाना चाहूँ, आस यही कि बस तेरे ही, होठों पर सज जाना चाहूं। कब से ढूँढ रही मधुशाला, जाम उठाने कब आऊंगा, भूल भला नयनो को तेरे, जाम कोई फिर ले पाऊँगा तोड़ जगत की सब दीवारे, रीत सभी बिसराना चाहूँ, आस यही कि बस तेरे ही, होठों पर सज जाना चाहूं।

कुछ आज नया लिख दो आकर

कुछ आज नया लिख दो आकर, मेरे जीवन की कहानी में, तुम रूठ गए तबसे तन्हा, कुछ भी न मज़ा, है जवानी में। मैं रंग बिरंगी कुदरत के, हर रंग से ही अन्जाना था, तुमसे मिलकर हूँ जीने लगा, जीवन से बेगाना था, कुछ ऐसा करो की आग लगे, मेरे लहू की रवानी मे, तुम रूठ गए तबसे तन्हा, कुछ भी न मज़ा, है जवानी में। हालात ही अब कुछ ऐसे है, उल्फत की राहों मे मेरी, सपनो ने भी आकर देखो, नींद उड़ा दी अब मेरी, तुम खुश हो तो मैं भी खुश हूँ, अब तेरी हर नादानी मे, तुम रूठ गए तबसे तन्हा, कुछ भी न मज़ा, है जवानी में। भगवान से लड़ तो मैं लूँगा, किस्मत मे तुम जो नही होगे, मै दुनिया से टकरा लूँगा, तुम साथ जो ना मेरा छोडोगे। हाथ तुम्हारे, कुछ भी लिख दो, अब मेरी प्रेम कहानी में तुम रूठ गए तबसे तन्हा, कुछ भी न मज़ा, है जवानी में।

चांद कहूँ कैसे तुझको

चांद कहूँ कैसे तुझको, फिर रात अमावस आयेगी, तुझको ना जो देखूँगा, सांस मेरी थम जायेगी। चांद कहूँ कैसे तुझको........... एक रात सुहानी सपनो की, दिल मे सज जाने तो दे, कुछ देर तो रुक सांसो मे, खुशबू, तेरी घुल जाने तो दे। जो दिल मे मेरे है, बरसो से, वो राज बतलाने तो दे, या सच है ये कि आस मेरी, मेरे साथ चिता पर जायेगी।। तुझको ना जो देखूँगा, सांस मेरी थम जायेगी। चांद कहूँ कैसे तुझको........... बेरंग जवानी पर तुने, रंग इश्क़ का तो लगा ही दिया, तू माने या फिर ना माने, मुझको तो भटका ही दिया, और इश्क़ है दरिया गहरा ये, आंखो से समझा ही दिया, अब आंखो मे तेरी कश्ती, क्या मेरी डूब ही जायेगी। तुझको ना जो देखूँगा, सांस मेरी थम जायेगी। चांद कहूँ कैसे तुझको........... ये तेरी जुल्फों का बादल, उड़ उड़ कर कुछ तो कहता है, क्या प्यार मेरा भी तेरे दिल मे, चुपके चुपके से रहता है, या तू भी दर्द जमाने की, रीतों का छुपकर सहता है, कुछ तो कह दे, अपने दिल पर क्या बोझ लिये जी पायेगी तुझको ना जो देखूँगा, सांस मेरी थम जायेगी। चांद कहूँ कैसे तुझको...........

गर हो जिन्दा, कुछ तो सदा कीजिये

फर्ज इंसाँ का, कुछ तो, अदा कीजिये, गर हो जिन्दा, कुछ तो सदा कीजिये। फूंक डाले, जमाना, ना जड़ मान कर, हिलिये-डुलिये, जरा कुछ अदा कीजिये। क्या हुआ जो कोई न, तेरा साथ दे, उठिए-चलिये मुश्किलों को फ़ना कीजिये। सोते-सोते न मिलती है, मंजिल कोई, स्वप्न देखा तो, कोशिश सदा कीजिये, टूटना, हारना, क्यू ये मायूसियां हौसलों से ही आगे बढा कीजिये। कौन फनकार है, जो ये सब गढ़ रहा, उसको कूची नई एक थमा दीजिये, कर्म ही है, बस एक, राह आकाश की, सदकर्म की ही पूजा किया कीजिये। रात लम्बी है, तो भी कोई गम क्यू हो, दीप आशा का बस एक जला लिजिये। गिरना भी तो सफर का ही इनाम है, उठिए, फिर रस्ता एक नया लिजिये। उस विधाता की, अनुपम, रचना है तूं, उसकी रचना से नफरत तो ना कीजिये। हम जो चाहें तो फूंकों से रुख मोड़ दें, डट के तूफांन को ये भी बता दीजिये। हमने चाहा जिसे, वो मेरा हो गया, सारे ब्रह्मांड को बस ये जता दीजिये। है मोहब्बत जिन्हें, वो मिटेंगे नही, चाहे दुनियां ये सारी, मिटा दीजिये। हम तो परवाने से, बस खिंचे आयेंगे, इश्क़ की एक शमा बस, जला लिजिये। तुमको तो बेवफा, हम न कह पायेंगे, जफा कीजिये या वफ

इश्क़ की गुफ्तगू

तुमसे होने लगी, इश्क़ की गुफ्तगू, जिन्दगानी हमारी, सवँर जायेगी, ऐसे आये हो मेरी, कहानी में तुम, हर कहानी हमारी, सवँर जायेगी। तुम कहो तो मुझे, कुछ कही अनकही, दिल का कोई तराना, जो कह ना सके, मुझको आंखो मे ऐसे, बसा लो पिये, कोई आंसू कभी, इनसे बह ना सके, इश्क भी तो खुदा का ही वरदान है, अब खुशी कोई बचकर, किधर जायेगी ऐसे आये हो मेरी, कहानी में तुम, हर कहानी हमारी, सवँर जायेगी। वो जो छुटा, जो टूटा, तेरा कुछ न था, गम की यादें, मिटाने की, कोशिश तो कर, हर तरफ बस है बिखरी खुशी फूल सी, इनको बढकर उठाने की कोशिश तो कर, थोडा कर हौसला, खुद से नजरें मिला, तू जो हंस दें, बहारें बहक जायेंगी, ऐसे आये हो मेरी, कहानी में तुम, हर कहानी हमारी, सवँर जायेगी।

एहसास जगाया न करो

यूं मोहब्बत के तुम, ख्वाब दिखाया ना करो। तुम मेरे पास से, मुस्करा के यूं जाया न करो। तेरे पहलू में मेरे, दिन रात गुजर नहीं सकते, तुम मेरे दिल में वो, एहसास जगाया न करो। दिल को तन्हाई में रहने की बुरी आदत है, दर्द को दिल मे सजोने, की बुरी आदत है तुम तो परदेशी हो, चल दोगे, न जाने कब, यूँ ही दिल को मेरे, आ कर बहकाया न करो तुम मेरे दिल में वो, एहसास जगाया न करो। मैने दरवाजा मेरे दिल का, खोला जो कभी, जो मेरे दिल में हैं, तुमसे वो बोला जो कभी, फिर मेरी चाहत की, लहरों से न बच पाओगे। तुम मेरे दिल का, यूं दरवाजा, खटखटाया न करो। तुम मेरे दिल में वो, एहसास जगाया न करो। है मोहब्बत तो मुझे, अपने ले साथ चलो, दूर तक तुम ही मेरे, हाथ ले हाथ चलो, मुझको तो है ये पता, तुम मेरे होगे नही, तुम मेरे दिल का जहां, यूं मिटाया ना करो तुम मेरे दिल में वो, एहसास जगाया न करो।

सांझ में दिन सिमट गया है

ये आंखें तेरी झुकी हुई है, या सांझ में दिन सिमट गया है, बहुत पुरानी, तुम्हारी यादें, फिर घाव कोई खुरच गया है। कहूं ये कैसे हुआ है लेकिन, तुम्हे अभी तक भुला न पाया, जग की बीती हजार रातें, समय मेरा ही ठिठक गया है। वो बहकी बहकी सी बात अक्सर, कभी तुम्हीं से, दिन रात करते, वहीं पुरानी हमारी आदत, जमाने को ये खटक गया है। ख्याल जब भी तुम्हारा आया, दिल पर काबू नही है मुझको, तुमने पा ली, तुम्हारी मंजिल, दिल ये मेरा अटक गया है। तुम्हारा दिल भी दुखा ही होगा जरा मुझे तुम बस माफ करना, खता तुम्हारी कोई नही थी, मेरा ही मन भटक गया है। kathabimb@gmail.com में प्रकाशन हेतु भेजी गई। 12 जून 19

जब जवानी तुम्हारी ये, खो जाएगी

जब जवानी तुम्हारी ये, खो जाएगी, तब कहानी हमारी ये याद आएगी। तोड़ दो छोड़ दो, चाहे मुहँ मोड़ लो, बददुआ मेरे लब पर ना एक आयेगी तब तो तुम बस कहोगे ये क्या हो गया, जिसके सपनो में तुम थे, कहां खो गया, कैसे तुम बिन तरसते थे हम ओ सनम, कौन तकिया अंधेरे में, ये धो गया, जब मचलोगे गैरों की बाहों में तुम, दिल की एक—एक सदा़ तुमको तड़पाएगी, जब जवानी तुम्हारी ये, खो जाएगी, तब कहानी हमारी ये याद आएगी। हम तो वो है, जिसे बस, वफा चाहिए, संग, सपनो का एक आसमां चाहिए, ये नहीं, वो नहीं, सोना चांदी नहीं, हमको बस एक तू ही मेहरवां चाहिए। तुम ये समझे हमे बस, है चाह जिस्म की, तुझको चाहत मेरी एक दिन याद आयेगी। जब जवानी तुम्हारी ये, खो जाएगी, तब कहानी हमारी ये याद आएगी। जो तुम समझे नही, गम है मुझको नही, तुमसे कोई भी हसरत है मुझको नही, तुम को जाना है जाओ कही भी सनम, तुमसे कोई गिला, कोई शिकवा नही। मै मेरे प्यार को, वेवफा नाम दूँ, हमसे हरकत तो ऐसी ना हो पायेगी। जब जवानी तुम्हारी ये, खो जाएगी, तब कहानी हमारी ये याद आएगी। लौटना हो कभी, याद रखना सदा, तेरे खातिर सदा दिल का आंगन खुला, पर कही देर

तुमने फूलों के कानों में क्या कह दिया

तुमने फूलों के कानों में क्या कह दिया, हर तरफ बाग में है, नशा ही नशा, इससे पहलेे भी आता था सावन मगर, आज तक बाग में ऐसा मौसम न था। ए मेरे दिल मुझे आज काबू न कर, मुझको न तू जमाने की रीतें बता, जिसकी बस एक झलक से, दीवाना हूं मै, ये जमाना उसे झेल पाएगा क्या। शायद होगी हसीनों से दुनियां भरी, मेरे दिल में मगर कोई ऐसा न था, इससे पहलेे भी आता था सावन मगर, आज तक बाग में ऐसा मौसम न था। उसने देखा मुझे देख कर हंस दिया, मेरे दिल को मोहब्बत का घर कर दिया, और जाने लगा दूर मुझसे फिर वो, पल में जीवन मेरा क्या से क्या कर दिया। अब क्या में कहूं और क्या न कहूं, मेरे तन मन पर मेरा कोई काबू न था इससे पहलेे भी आता था सावन मगर, आज तक बाग में ऐसा मौसम न था। आज मुझसे न कह इश्क़ की बात तू, आज मुझसे न कोई, बना सिलसिला, लेकिन ऐसा न हो, कल किसी मोड़ पर, तेरे दिल में रहे, इश्क़ का कोई गिला, मैं चला जाऊंगा, इस शहर से तेरे, इस शहर में मेरा कोई हमदम न था, इससे पहलेे भी आता था सावन मगर, आज तक बाग में ऐसा मौसम न था।

हर सजा से वाकिफ हूँ

बिजलियां गिराने की, हर अदा से वाकिफ हूँ। हूँ दीवाना, दिल की मैं, हर सदा से वाकिफ हूँ। तू मुझे डरा ना यूँ , हाल मेरा क्या होगा, इस जहाँ में उलफत की, हर सजा से वाकिफ हूँ । झील सी निगाहों पर, क्यों उदासी छाई है। मोहनी सी सूरत पर, निशा सी क्यू छाई है, क्या है दिल में ऐसा कि, जिससे तुम यूँ डरते हो, तन्हा तन्हा महफ़िल में, खोये खोये रहते हो। दिल की सारी हसरत को, आज पंख लगा दो बस, क्यों डरे हो दुनियां से, खुल के सब बता दो बस, क्या कहेगी दुनियां की, हर व्यथा से वाकिफ हूँ इस जहाँ में उलफत की, हर सजा से वाकिफ हूँ। इश्क़ जब हुआ न था, ये जहान साथी था। हर कहानी में मेरी, हर कदम का भागी था। क्या हुआ कि सबने क्यू, मुझसे मुहँ ये मोड़ा है, इश्क़ ही किया मैने, ना घर किसी का तोड़ा है, ये जमाना वो है जो, मीरा से भी जलता था, इस जमाने मे मजनूँ भी, मारा-मारा फिरता था, मैं तो हर मोहब्बत की, दास्ताँ से वाकिफ हूँ, इस जहाँ में उलफत की, हर सजा से वाकिफ हूँ। बिजलियां गिराने की, हर अदा से वाकिफ हूँ। हूँ दीवाना, दिल की मैं, हर सदा से वाकिफ हूँ।

चूम लो मुझको

चूम लो मुझको, अमर, प्रेम कहानी कर दो मेरे पास आओ, मुझे अपनी दीवानी कर दो, मैंने कब रोका तुम्हें, दिल से लगा लो आओ, मुझको छू कर मुझे, पत्थर से पानी कर दो।। दिल ने तूफान उठाया, तुम्हें देखा जब से, मैं बहुत दूर, तक आया, तेरे पीछे घर से। सबसे दिलकश है शरमा के सिमटना तेरा, मेरे हो जाओ, अमर, प्रेम कहानी कर दो। मैंने कब रोका तुम्हें, दिल से लगा लो आओ, मुझको छू कर मुझे, पत्थर से पानी कर दो।। सुर्ख गालो का ये कहना की छू लो मुझको, बन्द आंखे भी ये कहती है चूमो मुझको, संगमरमर की हसीन मूरत सा तेरा ये बदन, जाम होठों के ये कहते हैं पी लो मुझको शर्म ने रोका मेरे, कदमो को आ जाओ दिलबर मुझको छू कर मुझे, पत्थर से पानी कर दो।। दिल को बैचैन कर जाती, है आहट तेरी, दिल मे एक प्यास जगाती है चाहत तेरी, तेरी उल्फत की शमा मे है जलना मुझको, मुझको दीवाना बनाती है, सुरत तेरी, मुझको खुद में छुपा लो मेरे दिलबर आकर, मुझको छू कर मुझे, पत्थर से पानी कर दो।।

तुमसे बड़ी उम्मीदे थी

तुमसे बड़ी उम्मीदें थी जो,  एक पल मे ही तोड़ दी तुमने।  कश्ती फंसी भँवर मे ज्यो ही,  मंजिल की जिद छोड़ दी तुमने। कुछ जो बात थी दिल मे वो,  मुझसे खुलकर तो कह देते, ये क्या अब तो बात ही करनी,  मुझसे ऐसे छोड़ दी तुमने। अब भी ये दिल कहता है,  सीने से लगा लोगे मुझको तुम। हसरत भले ही दिल की सारी,  तिनका तिनका, तोड़ दी तुमने। प्रेम तुम्हे जो मुझसे न था,  बरसो क्यों तुम साथ चले थे, ऐसा क्या की प्रेम की नेमत,  चंद पैसों में मोल दी तुमने। बाग खिलाये सूखे दिल मे,  और स्वप्नों के महल बनाये, पल में कैसे सारी कलियां, खुद कदमो रौंद दी तुमने साहित्य अंकुर के 1 जुलाई 2019 अंक में प्रकाशित ।

तुम बिन हम मर भी न पाए

इन आँखों ने कह दी सारी, जो बातें लब कह न पाए, तुम बिन जीना मुश्किल लेकिन, तुम बिन हम मर भी न पाए। गीत नही संगीत नही कुछ, नीरस जीवन की धारा थी, दीप जले घर मंदिर-मस्जिद, मन मे बस विरह हाला थी। तुमने हंसकर जब देखा था, चहुं ओर सजी, स्वप्नों सी झांकी, आंख खुली और बिख र गये सब, हम फिर से, बस थे एकांकी। स्वप्न में तुम हम मिले हजारों, दिवा भए, तो स्वांग रचाए, तुम बिन जीना मुश्किल लेकिन, तुम बिन हम मर भी न पाए। कैसा होगा, जब जीवन ये जीवन का प्रतिकार करेगा। क्षण भर मिलना, और ये बिछड़ना, कैसे मन स्वीकार करेगा, कुछ तो ऐसा भी हो जाता , समय यही पर थम-रुक जाता, तुम अपने मे भर लेते मुझको, तेरा-मेरा सब मिट जाता। हुआ नही कुछ चाहा मेरा, कुछ मन का हम कर ना पाए। तुम बिन जीना मुश्किल लेकिन, तुम बिन हम मर भी न पाए।

मन उद्वेलित कर देते हो

मन उद्वेलित कर देते हो, भर स्वप्नों में रंग देते हो, कुछ ऐसी आभा है तुममे, सब सम्मोहित कर देते हो, कुछ शब्दों में, बांध लिया है, सारा सागर साध लिया है, कितना सुंदर, कितना मनोरम, भावों को आकार दिया है, तुम सुंदर, मानोभावों जैसे गीत मनोहर कह देते हो, कैसे तुम गीतों में अपने, स्वप्नों से रंग भर देते हो, कैसे मैं कुछ कहूँ अब तुमको, जुगनू हम सूरज के आगे, तुम अपने सुंदर शब्दों से, निशब्द हमेशा कर देते हो।। महान गीतकार नीरज जी को समर्पित

इन आँखों की मस्ती में है

इन आँखों की मस्ती में है, दोनों जहां की जीवन रेखा, इन होठों की लाली, लेकर, शाम ढले आलम है मय का। कौन कहे क्या, बीत रही है, दीवानों की इस महफ़िल मे मेरा दिल जो कहना चाहे, बात वही सबके है दिल मे, गूंज गई है एक आह सी, लुटा कोश सांसो की लय का इन होठों की लाली, लेकर, शाम ढले आलम है मय का। हुआ चंद्र भी आज है लज्जित, रात पूर्णिमा है तो क्या है। तुझसे नजरें ना मिल जाये, इसी लिये जा चांद छुपा है, मेघराज  ने आज बजाया, बिगुल निरंतर तेरी ही जय का। इन होठों की लाली, लेकर, शाम ढले आलम है मय का। रूप ने कर सबको दीवाना, प्रेम अगन ऐसी भड़काई, बन परवाना झूम रहे सब, जल जाने की होड़ लगाई, जीवन तेरे नाम लिखा सब, नाश हुआ मरने के भय का, इन होठों की लाली, लेकर, शाम ढले आलम है मय का। ढल जायेगी कल ये जवानी, प्रीत मगर गुलजार रहेगी, पतझड़ आये या कोई आँधी, दिल मे बस आबाद रहेगी, साथ तुम्हरा मिल जाये बस फिर, फर्क मिटे, पराजय और जय का इन होठों की लाली, लेकर, शाम ढले आलम है मय का।

बस मोहब्बत करके तन्हा

बस मोहब्बत करके तन्हा, दिल भी है, और हम भी हैं। तू शमां जैसी, पतंगा दिल भी है, और हम भी है। इश्क़ करता जो न था तो, दिल मे कोई गम न था, मरघट सी थी एक उदासी, उमंग न थी, कोई रंग न था, दिल लगा कर हो गई, हर उदासी दूर सी थी। तू गई बस, अब तो तन्हा, दिल भी है, और हम भी है। तू शमां जैसी, पतंगा दिल भी है, और हम भी है। बस कहीं पर खो गए है, इश्क़ के जो दीप थे, आज कण-कण ढूंढ़ता हूं, स्वप्नों के जो सीप थे, हर तरफ बस एक रंग, तुमसे जुदा होकर हुआ है फाल्गुन में भी बेरंग, सा ये, दिल भी है, और हम भी है। तू शमां जैसी, पतंगा दिल भी है, और हम भी है। तुम मिले तो ये लगा कि, स्वपन को अधार मिला है, देर से ही हो मिला पर, स्वप्न ये साकार मिला है, पर कहानी मे कुछ ऐसे नियती ने गम को लिखा है, अब तो बस बेमौत जिन्दा, दिल भी है, और हम भी है। तू शमां जैसी, पतंगा दिल भी है, और हम भी है।

अच्छा वक्त सबका साथ।

जब तक कि हम खड़े थे, सब साथ चल रहे थे, गिरने लगे है जब से, सब साथ छोड़ते है, मेरे सामने वो जैसे, दुनियाँ को थे बनाते, वैसे ही अब मेरे जज्बात छेड़ते हैं। कैसे कहूँ की हमको, कोई साथ चाहिए बस, डूबते को तिनके की, वो बात चाहिए बस, जमाना क्या कहेगा, मुझको यही सुनाकर, किसी और ने बुलाया, बोला फिर मुस्कुरा के, बहकाते थे ज्यों सबको, धीमे से मुस्कुराकर, वैसे ही अब मेरे जज्बात छेड़ते हैं। वो भूलते की उनकी, हर बात का पता है, कैसे छुड़ाते पीछा, इस राज का पता है, हमसे वो सीधा कहते, अब साथ न चलेंगे, अब हो गए परेशां, तेरी राह न चलेंगे, बातें जो सभी से, करते थे मुँह बनाकर, वैसे ही अब मेरे जज्बात छेड़ते हैं।

दिल की कलम से

अपनी कहानी, दिल की कलम से,  लिख मैं जो दूंगा, पढ़ न सकोगे। मेरी मोहब्बत की, तुम राजरानी,  लिख मैं जो दूंगा, पढ़ न सकोगे। किसने कहा कि, तुमको भुलाकर,  दुनियां नई हम, बसाने चले है, तेरे बिना कोई, हसरत नहीं है, कैसे कहें क्या, निभाने चले है। कैसे जुदाई ने, हमको रुलाया,  दुनिया ने क्या-क्या, सितम हमपर ठाया, वफ़ाएँ तुम्हारी, तेरा नाम लेकर, लिख मैं जो दूंगा, पढ़ न सकोगे। अपनी कहानी, दिल की कलम से,  लिख मैं जो दूंगा, पढ़ न सकोगे। है ये कैसा सफर, कुछ नहीं जानता मैं, न मंजिल न राहें, हूँ पहचानता मैं, मेरे हमसफर जो तेरा साथ न हो, ख़ुदाई, या रब को, नहीं मानता मैं। कि किसने चुराई, मेरी सांस मुझसे, कि किसने चुराई, मेरी प्यास मुझसे, जो तुझसे मिली, आखरी वो निशानी, लिख मैं जो दूंगा, पढ़ न सकोगे। अपनी कहानी, दिल की कलम से,  लिख मैं जो दूंगा, पढ़ न सकोगे। अमर प्रेम है हमने ऐसा सुना था, तुझे दिल ने पहली नज़र में चुना था, जो हमने सजाया वही बाग उजड़ा, कहाँ स्वप्न जो हमने मिलकर बुना था? किसने ढहाया है ये ताज दिल का, किसने उजाड़ा हसीन बाग दिल का, है किसने सजाई मोहब्बत की मैय्यत, लिख मैं जो दूंगा, पढ़ न सकोगे। अपनी कहानी

गणतंत्र

"हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की और एकता अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई० "मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी) को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं." ये वो पावन शब्द है जो भारत के संविधान के उस आदर्श को प्रस्तुत करते है जिसके अनुसार सिर्फ सिर्फ और सिर्फ भारत के लोगों ने सभी नियम, कानून, अधिकार, कर्तव्य, सब कुछ अपने लिए निर्धारित किये। ये संविधान किसी सत्ता, किसी शासक किसी पार्टी द्वारा देश मे लागू नही किया गया, ये स्वयं "हम भारत के लोग" द्वारा खुद पर लागू किया गया। यहाँ जनता के अलावा किसी और कि प्रधानता नही है।   लेकिन प्रस्तावना सिर्फ आदर्श स्थिति ह

कभी कभी बस करता है मन

कभी कभी बस करता है मन, मुझसे आंखें चार करो। नयनो का है, प्रणय निवेदन, नयनों से स्वीकार करो। हमने तुमको छुपकर देखा, राहों में रुक-रुक कर देखा, प्रेम रुग्ण अपने प्रेमी को, करते हो तुम बस अनदेखा, कभी कभी बस करता है मन, मुझसे बातें चार करो, नयनो का है, प्रणय निवेदन, नयनों से स्वीकार करो। इन स्वप्नों से इन नयनो तक, इन सांसों से इन प्राणों तक, इस वाणी से, इन कंठों तक, मन के विस्तृत अंत छोरों तक, कभी कभी करता है ये मन, सब पर तुम अधिकार करो। नयनो का है, प्रणय निवेदन, नयनों से स्वीकार करो। दुनियां के छल प्रपंचों ने, प्रेम में ये व्यवहार किया है, मन देना, मनचाहा पाना, नया प्रेम व्यापार किया है, कभी कभी बस करता है मन, मुझको अंगीकार करो, नयनो का है, प्रणय निवेदन, नयनों से स्वीकार करो। कब तक तुम यूं रार करोगे, प्रेम का तुम प्रतिकार करोगे, जीवन क्षणभंगुर ये जानो, व्यथ जीवन उपहार करोगे। कभी कभी बस करता है मन, छुप-छुप फिर इकरार करो। नयनो का है, प्रणय निवेदन, नयनों से स्वीकार करो।

जिंदगी क्या है, ताउम्र की तन्हाई है

चाँद तारे सब उतर आये हैं जमीं पर,  जैसे, ऊषा की लाली जमीं पर आई है, या खिला है इन्द्रधनुष ढ़लती सी शाम में, चारो तरफ ये कैसी, बेखुद खुमारी छाई है, सोच रहा हूं उनसे कहूँ, या चुप रहूं मैं, चुरा गये हैं वो दिल मेरा कैसे कहूँ मैं, नाम पता मालूम नही, एक मुस्कान है पहचान उनकी, बस उनकी यादें हैं और चारो तरफ तन्हाई है, उनसे शिकायत भी की, मिले वो हमसे जब, कब से इंतजार था, और आप आयें हैं अब, लगने लगा था तुम न आओगे फिर कभी, तेरे आने से अरमानों ने जिन्दगी पाई है, फिर मुलाकातें बढ़ी, दिल मिलते रहे, फूल खिलते रहे, कह न पाये हम, लव उनके भी खामोश रहे, मजबूर दिल ने किया तो कहना ही पड़ा हाल-ए-दिल उनसे, ऐसा लगा सारी दुनियां, मेरी बाहों में सिमट आई है। वक्त गुजरा, वादे हुए, कुछ कसमें खाई मैने उसने, ख्बावों की हसींन दुनिया, दिल में बसाई मैने उसने, हूई दुनियां हसींन थी, रंगीन जिन्दगी थी हुई, पर अजीब किस्मत खुदा ने मोहब्बत की बनाई है। बिछड़ गए हम उनसे मजबूरियों के नाम पर, आज खड़े हैं हम, एक ऐसे मुकाम पर, पल-पल तिल-तिल, घुट कर जी रहे हैं, मौत ने भी न आने की, शायद कसम खाई है। ये किस्सा नही सच्ची दास्तान है मो

चिड़ियां-रानी

चिड़ियां-रानी चिड़ियां-रानी, रोज कहाँ से आती हो। चीं-चीं-चीं करके, कितना शोर मचाती हो। पास मैं जब आता हूँ तेरे, तुम झट से उड़ जाती हो, चीं-चीं-चीं करके, कितना मुझे सताती हो। करो बात ओ चिड़ियां रानी, मुझको संग खिलाओ न, बार-बार यूं उड़-उड़-उड़ के, मुझको रोज सताओ न, चिड़ियां-रानी सबसे छुपकर, रोज कहाँ खो जाती हो? चीं-चीं-चीं करके, मुझको रोज रुलाती हो। चिड़ियां रानी क्या तुम मुझको, अपना दोस्त बनाओगी, पंख फैला कर आसमान में, उड़ना मुझे सिखाओगी, चिड़ियां रानी इतना ऊपर, तुम कैसे उड़ जाती हो? चीं-चीं-चीं करके, सपने नए दिखती हो। मेरी चिड़ियां-प्यारी चिड़ियां, कितने दोस्त तुम्हारे हैं। हरे, गुलाबी, नीले, पीले, रंग बिरंगे सारे हैं। इतने सारे सुंदर-सुंदर, रंग मुझको दिखलाती हो, आसमान में सबको लेकर, फुर्र-फुर्र तुम उड़ जाती हो।