वो अल्हड़ सी जवानी
वो अल्हड़ सी जवानी,
वो अल्हड़ एक कहानी,
पहाड़ी एक नदी सी,
उन्मुक्त एक हंसी सी।
जिधर चाहे बहक ले,
जिधर चाहे चहक ले,
सुमन बन महके जीभर
जहां मन हो दहक ले,
कोई बंधन नही है,
कोई भी गम नही है।
उसे थामे सभी मे,
ऐसा दम नही है।
वो अल्हड़ सी जवानी,
मगर मासूम अक्सर,
बिना छल और कपट के।
है सब, कहती-करती,
बिना लाग-ओ-लपट के।
भले दुनिया न बूझे,
उसे खुदगर्ज समझे,
वो चाहे, जग मिटा दे,
अचंभा नव बना दे,
जवानी कुछ भी कर दे,
कहानी कुछ भी कर दे,
वो अल्हड़ सी जवानी,
वो अल्हड़ एक कहानी।
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