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Showing posts from 2022

तुम्हारी नजरों से पी कर बहका

तुम्हारी नजरों से पी मैं बहका,  जमाना या खुद बहक गया है, नशा तुम्हारा चढ़ा है ऐसा,  खिजां का मौसम महक गया है। जरा सा ही तो छुआ था तुमको, बदन हमारा हुआ है चंदन, था भोला भाला हमारा दिल ये, मिला जो तुमसे चहक गया है। है रात प्यासी हमारी कब से, तुम्हारी सांसों में डूबना था, नजर झुकाई हैं तुमने ऐसे, कि शोला तन में दहक गया है। जरा छुओ फिर ये घाव दिल के, भरेंगे कैसे बिना तुम्हारे, दीए जलाए जो रोशनी को, ये घर उसी से लहक गया है। कोई नहीं जो बताए हमको, कहां पे मन को करार होगा, कि दर्द खुद ही दवा हुआ है, हमें तो कोई यूं छल गया है।

हिरनी सी आंखों में देखो

हिरनी सी आंखों में देखो, नैना मेरे अटक गए हैं, उसमें सारे अरमान देखो, दिल के मेरे भटक गए हैं। कैसे उनको पा लेने के, दिल ने सब अरमान सजाए, कैसे उलझा दिल जुल्फों संग, बेदर्दी वो झटक गए हैं। आज अभी तक हुआ न ऐसा, जीवन में कितनों को देखा, उनको देखा बस दिल के सब, स्वप्न उन्हीं में भटक गए हैं। होठों की लाली में डूबी, लाली सारे मयखानों की, धार हुई है कुंद मय की, लब पर लब जो अटक गए हैं। नयनों ने जो बाण चलाए, उनसे बचना नामुमकिन था, इन नयनों से घायल देखो, महफिल में सब लटक गए हैं। कुछ तो था मुस्कान का जादू, और कुछ पागलपन सा मेरा, जितना चाहा बचना इनसे, इनमे ही हम भटक गए हैं। सारे गुलशन जल जाएंगे, हुस्न तुम्हारा कुछ ऐसा है, जुल्फों का उड़ना इठलाना, सावन को ये खटक गए हैं।

दिल को टुकड़ों में सजा दी मैंने

दिल को टुकड़ों में सजा दी मैंने तेरी तस्वीर घर में ही लगा ली मैंने। किस-किस की कही का क्या देता जवाब, एक चुप्पी सी मेरे होठों पर लगा ली मैंने। एक वो जो मेरे होने पर फिदा था बरसों, आज उस दुनियां से नजरें ही फिरा ली मैंने। लौट आएगा गया वक्त मुमकिन ये नहीं, तेरी यादों की चिता कल ही जला दी मैंने। मन का तूफान रुका कब है किसी के रोके, दिल की कश्ती ही लहरों को थमा दी मैंने। मैं बिखर जाऊंगा इस बात का यकीन था उसे, उसकी नजरों से नजरें ही हटा ली मैंने। कोई आहट नही होगी, मेरे दिल पर कभी, दिल में दीवार पत्थर की बना ली मैंने। शुक्रिया तेरा मुझे मुझसे मिलाया तूने, तेरे सजदे में नजरें ये झुका ली मैंने।

तरस न आया

तरस न आया पल भर उनको, सदियों की ये जुदाई  है, पल भर न बाँहों में आये,  जग से प्रीत निभाई है। तरस न आया पल भर उनको.... कुछ सपनों ने छीना सब कुछ, रिश्ते नाते, दुनिया, यारी, छीन लिए पल भर में हमसे, चीजें जो हमको थी प्यारी, जिन सपनों में जी लेने को, कालकूट विष पान किया, उन सपनों ने हमसे देखो, कैसी प्रीत निभाई है। तरस न आया पल भर उनको.... जग को सारे यकीन नहीं था, स्वर्ग प्रेम से बौना है, उसको पाना जग को खोना, उसको खो बस रोना है, चाल चली नियति ने ऐसी,  मन ये ठूठ, पाषाण हुआ, जीत गए सब बाजी अपनी, प्रेम की बस रुसवाई है। तरस न आया पल भर उनको.... प्रबल कठिनतम वो जीवन जो, बिन तेरे उपहार मिले, सदियों तक हो विरह का रोना, जब मिले तो तेरा प्यार मिले, क्रूर समय की निर्मम गति से, जीवन खुद संताप हुआ, जिसको अमृत मान लिया था, वो जीवन ही दुहाई है। तरस न आया पल भर उनको.... जो होना वो होना ही है, किसने ये इंकारा है, नियति ही अंतिम शक्ति है, कब उसपर जोर हमारा है, करने को कुछ भी कर लो पर, समय कहीं कब ठहरा है, जीवन का मतलब तो खुद के, जीवन से ही लड़ाई है तरस न आया पल भर उनको....

असर तुम्हारा शामिल होगा

असर तुम्हारा शामिल होगा, इस तपती गर्मी में कुछ तो, मन की तपन बढ़ा देती हो, तन में अगन लगा देती हो, तुम देती हो ताप बढ़ा यूं, सारा जग ये आह है भरता, मधुर मिलन मधुमास का मेरे, मन में मोह जगा देती हो। भूला ना दिल सदियां बीती, होठों पर होठों का आना, नयनों का नयनों में थमना, सांसों पर सांसों का छाना, दुनियां के जो नियम थे सारे, उस पल में कुछ याद नहीं थे, हम में तुम थे तुम में हम थे, बातें थीं अल्फाज़ नहीं थे, नयनों से मधुमय एक धारा, जीवन में बिखरा देती हो मधुर मिलन मधुमास का मेरे, मन में मोह जगा देती हो। तन लचकाती, मन भरमाती, नयनों से मदिरा बरसाती, डाल–डाल पर फूल–फूल पर, ईर्ष्या की तुम आग लगाती, सागर लहरें, रिमझिम वर्षा, सावन मधुबन तेरी चर्चा, रोज स्वप्न में आकर देखो, मुझको तुम हो खूब सताती, कितना होगा जीवन मधुमय, हंसकर तुम बतला देती हो, मधुर मिलन मधुमास का मेरे, मन में मोह जगा देती हो। जीवन के सारे दोराहे, तुम पर आकर एक हुए हैं, भाव जो सारे बौराए थे, मिलकर तुमसे नेक हुए हैं, तुमसे नजरों का मिल जाना, तुममें दिल का खोते जाना, तुमसे मिलकर बैरंगे सब, स्वप्न मेरे रंगरेज हुए हैं, जन्मों मैं किस

तुम्हारे दिल में छोटा सा घर

तुम्हारा संगमरमर सा बदन मैं चूम लूं आओ, तुम्हें बांहों में लेकर के जरा मैं झूम लूं आओ, तुम्हीं तुम एक समाई हो, तुम्हें देखा है जबसे,  तुम्हारे दिल में छोटा सा, घर मैं ढूंढ लूं आओ। ये लंबी रात बहकी सी, तुम्हारा ही असर होगा, तुम्हारे जुल्फों में उलझा वो चंदा बेसबर होगा, ये देखो दिल है बेकाबू, ये अरमा भी नहीं थमते, तुम्हें दिल से लगा कर मैं, जरा सा झूम लूं आओ। तुम्हारा संगमरमर सा बदन मैं चूम लूं आओ, तुम्हें बांहों में लेकर के जरा मैं झूम लूं आओ। जुदाई का कोई सपना भी, आए न कभी मुझको, तुम्हारे बिन कोई अपना, भाए न कभी मुझको, तुम्हारी खुशबू से महके ये सांसें जन्मों-जन्मों तक तुम्हारा हाथ हाथों में, मैं लेकर चूम लूं आओ। तुम्हारा संगमरमर सा बदन मैं चूम लूं आओ, तुम्हें बांहों में लेकर के जरा मैं झूम लूं आओ। सफर कोई भी मंजिल का, बिना तेरे नहीं करना, इन होठों से जो पी ली अब, नशा कोई नही करना, ये मयखाने क्या जानेंगे, छिपा असली नशा किसमे, नशीली आंखों से पीकर इन्हीं में घूम लूं आओ। तुम्हारा संगमरमर सा बदन मैं चूम लूं आओ, तुम्हें बांहों में लेकर के जरा मैं झूम लूं आओ। कहीं ये नजरें न कह दें, कोई अफसान

दिल में उम्मीदें पाले

दिल में उम्मीदें पाले, बैठे हैं एक किनारे, मुमकिन नहीं है सारे सपनों का सच हो पाना। होता नहीं है पूरा, कभी इंतजार दिल का, होता है पास उनके, हर रोज एक फसाना। कई दुश्मनों ने घेरी, है राह इस मिलन की, होता कभी सताना, होता किसी का आना। बड़ी मिन्नतें करो तो, अहसान हो ही जाता, बड़ी देर से है आना, जल्दी है उनको जाना। कभी इंतजार तुमको, होता तो तुम समझते, पागल सा मन ये मेरा, क्या चाहे तुम्हें बताना। इठला के बन संवर के, निकले हो तुम तो घर से, कभी बन के ऐसे हमको, करो अपना फिर दीवाना कुछ बात है कह दो, किसी चाह को न शह दो, जल्दी है मुझको उठना, ऑफिस भी तुमको जाना पल भर में कैसे भर ले, सागर जो मन का खाली, बस प्रेम बन के बरसो, कर लो यहीं ठिकाना। बड़ी देर हो गई है, बच्चे नहीं हैं सोए, सो जाओ दे के मुझको, बांहों का ये सिरहाना। अब बात कल ही करना, मुश्किल है नींद टलना, चाहो अगर जगाना, सुबह काम करके जाना। मुझे प्रेम है तुम्हीं से, मगर काम मुझको दस हैं, दिल प्यार नहीं है भुला, रिश्ते भी हैं निभाना।

ये जीवन है (भाग 22–23)

अब तक के भाग में अपने पढ़ा। रवि ऑफिस के पास ही किराए के मकान में रहने लगता है। कविता और रवि एक दूसरे का ध्यान रखते है। आखरी महीने में कविता मायके चली जाती है। दिवाली के दिन वो बहुत खुश थी और देर रात तक रवि से बात करती रही। अब आगे... दीपावली के दिन देर रात तक कविता को नींद ही नहीं आ रही थी। वो काफी देर से सोई। अगले दिन छुट्टी थी इसलिए रवि देर से सोकर उठा। 10 बज गए थे। उसने कविता को फोन इसलिए नहीं किया कि देर से सोई थी तो सोई होगी। वो तैयार कविता के पास जाने के लिए तैयार हो गया था। चाय बनाने को रख दी थी। कविता की डेट में अभी 14 दिन का समय था रवि ने पहले ही ऑफिस से उस समय की छुट्टी ले रखी थी। तभी कविता का कॉल आया। उसकी आवाज बिल्कुल थकी हुई लग रही थी। जैसे रात भर सोई न हो या बहुत दर्द हो रहा हो।  "हेलो रवि हमारा बेटा हुआ है" कविता ने बोला। "चल झूठी, जादू थोड़े ना है जो हो गया।" रवि ने हंसते हुए कहा। "सचमुच में, अभी थोड़ी देर पहले ही" कविता ने खुश होते हुए बताया। "मतलब आज अप्रैल फूल है क्या? रात को एक बजे तक तो मेरे से बात करके सोई हो। अभी उठी होगी। ओह सपने

राधा रे

खनकती दूर से आई, तेरी आवाज राधा रे, ये नापे मन की गहराई, तेरी आवाज राधा रे, कहाँ मुमकिन बिना तेरे, किसी का श्याम को पाना, तेरे बिन बांसुरी फीकी, तेरे बिन श्याम आधा रे। इन्हीं कजरारे नैनों से चुरा मन थाम लेती हो, जो मन में था छुपाया वो, कहे बिन जान लेती हो, कि जिसकी चाह से बनती है सृष्टि, धाम सारे ये, बना कर राधिका उसको, प्रेम का ज्ञान देती हो, दीवानी दुनिया है जिसकी, किसी का जो नहीं होता, तुम्हारा है वो दीवाना, तुम उसकी प्राण राधा रे। तेरे बिन बांसुरी फीकी, तेरे बिन श्याम आधा रे। मेरे मन में बसा दो वो, है जिसका नाम न्यारा सा, तुम्हीं को छेड़ना पल पल, है जिसका काम प्यारा सा, तुम्हारा नाम ले ले कर भटकता, ब्रिज की गलियों में, मुझे बस चाहिए दे दो, वही घनश्याम प्यारा सा, मेरा हर स्वप्न हो पूरा, मुझे मिल जाए हर मंजिल,  तेरा मुझ पर जो हो जाए, अगर अहसान राधा रे। तेरे बिन बांसुरी फीकी, तेरे बिन श्याम आधा रे। तुम्हें पाना जो हो जाए, तो दुष्कर श्याम पा लूं मैं, दुखों के इस समंदर में, सुखों की खान पा लूं मैं, यहां से दूर अंबार में, जो लेटा शेष पर निष्ठुर, उसी के सामने होकर, उसी का गान गा लूं मैं,

ये जीवन है (भाग 19-21)

अब तक आपने पढ़ा, रवि कुछ दिन गांव में रह कर वापस शहर लौट रहा है रास्ते में कविता को बाहर के वातावरण को देख कर बहुत खुश हो जाती है और बात करते करते रवि की गोद में ही सो जाती है। अब आगे..... रवि ट्रेन में बैठे बैठे कविता को देख रहा था। नींद न आने के कारण वो ख्यालों में ही अपने बचपन में चला गया। दो बड़ी बहनें और  दो छोटी बहनें और सबसे छोटा भाई, यानी रवि कुछ छह बहन भाई थे। वैसे तो रवि पांचवे नंबर की संतान था लेकिन 2 बहनो की मृत्यु बचपन में हो गई थी। कुल मिलाकर अब बचे बहन भाइयों में रवि तीसरे नंबर पर था। सबसे बड़ी बहन की शादी तो पता नहीं कब हो गई थी। लेकिन उससे छोटी बहन की शादी कुछ ही महीनों पहले हुई थी। इसलिए छठी क्लास से ही उसको घर का ज्यादातर काम इसलिए करना पड़ता था क्योंकि मम्मी बीमार रहती थीं। बहन और भाई सुबह स्कूल जाते थे तो उनके लिए नाश्ता और लंच बनाना करना पड़ता था। उसके बाद सबके लिए लंच बनाना ये अक्सर करना पड़ता ही था। वैसे ये काम इतने बुरे भी नहीं कि लड़के इनसे दूर भागते फिरें। इससे रवि को खाना अच्छा खाना बनाना आ गया था। उसके बाद स्कूल का काम करना क्योंकि स्कूल दोपहर की शिफ्ट का

बहिरा हुआ खुदाय......

कल रात हनुमान जी उड़ते उड़ते अल्लाह के घर गए। वहां पहुंच कर भक्त शिरोमणि ने उनको प्रणाम किया,  अल्लाह भी उनके लिए खड़े हो कर प्रणाम का प्रेम पूर्वक प्रतिउत्तर दिया और बोले आओ बैठो और आज इस ओर कैसे आ गए पवनपुत्र।  बस आपका शुक्रिया अदा करने आ गया, आपके कारण ही आजकल मेरे भक्त जोर जोर से पूजा अर्चना करने लग गए हैं। कलयुग में ये सतयुगी वातावरण आपके कारण ही आ पाया। मेरे कारण?? मैं तो पूजा का ही विरोधी हूं, मूर्ति पूजा बुत परस्ती का प्रचार मैं क्यों करूंगा। आप तो जानते ही हो महाभक्त हनुमान। इस बार तो ये आपका ही प्रताप है। आपके कारण ही तो आजकल भक्त पांच बार हनुमान चालीसा का पाठ कर रहे हैं वो भी लाउड स्पीकर पर। मतलब मेरे पंथ वालों की तरह आपके मार्ग वाले भी ये समझने लगे हम लोग बहरें हैं। मतलब अब हम दोनो साथ में हल्ला सुनेंगे। लोग मन में हजार पाप छुपा कर ऊपर से हमे चिल्ला चिल्ला कर कहेंगे हम ही सच्चे भक्त, जो चुप है वो झूठे है, जो चिल्लाए वो सच्चे। खुदा ने मुस्कुराते हुए कहा। अब मुझे भी आसानी होगी पता करने में कौन सच्चा भक्त कौन झूठा। हनुमान जी भी मुस्कुराते हुए बोले। तभी अजान को कानफाड

ये जीवन है (भाग 16-18)

अब तक के भाग में अपने पढ़ा। आशा की वो परछाई अपनी कहानी सुनाती है। उसने सोनम पर हुए अत्याचार और नेहा, अजय, मोहन के बारे में भी बताया कि उनके साथ हुई घटनाओं में उनका कोई हाथ था ही नहीं, वो सब पूर्वनिर्धारित था। अब आगे.... सालों तक हम यही मिट्टी में दबे रहे लेकिन, कुछ दिनों पहले  पता नहीं कैसे वो गुड़िया बाहर आ गई और नेहा ने उस गुड़िया को ले लिया। वो बहुत प्यारी बच्ची थी। उसको पता नहीं क्यों ये गुड़िया बहुत पसंद थी। वो दोस्तों से भी दूर होने लगी। मुझे उसमे सोनल का अक्स दिखाई देने लगा था। यहां के सारे बच्चे मुझे बहुत पसंद आने लगे थे। मैं उनको खेलते देखती थी लेकिन नेहा पता नहीं क्यों अब अपने दोस्तों को छोड़ इसी गुड़िया में लगी रहती थी। लेकिन एक दिन मुझे आभास हुआ की उसका एक्सीडेंट होने वाला है, इसी लिए हमने उस दिन राहुल को वो सब दिखाया जिससे अगर हो सके तो नेहा को बचाया जा सके। लेकिन वो नहीं हो पाया। हमने राहुल को अजय और मोहन के बारे में भी दिखा दिया था। लेकिन अजय को भी नहीं बचाया जा सका। अब जब सबको ये पता है तो शायद मोहन को आप लोग बचा लोगे। लेकिन इन सबमें हमने कुछ किया ही नहीं। मैंने तो बस इन

ईश्वर पर सवाल

हम लोग मिथ्या आशावाद के शिकार हैं। देवियां आएंगी बचाने या भगवान आएगा। कोई नही आता किसी को बचाने, ये सब इस हाथ ले उस हाथ दे वाले नियम से चलता है। ये दुनिया ही स्वर्ग या नरक है। जब हम खुद इसको नर्क बनाते हैं तो किस हक से उम्मीद रखते कि स्वर्ग के सुख मिलें। ये आशा ही मिथ्या आशावाद है। जब किसी के साथ कुछ गलत हो रहा होता हम सोचते कि हमारा क्या, लेकिन अपने समय शिकायत करते कोई आया ही नहीं बचाने। जब हम सरकार चुन रहे होते तो जाति, धर्म, पड़ोसी देख कर राजा को चुनते, पैसे लेकर चुनते, दारू की बोतल लेकर चुनते, भले वो बलात्कारी हो या हत्यारा हम उसको वोट देते और उम्मीद करते कोई हत्या नहीं होगी बलात्कार नहीं होंगे, देवियां आएंगी बचाने, क्यों आएगा कोई? जब बेटियां होती तो हम दुखी होते, उनको मार भी डालते, उसको दबा कर रखते, हमेशा बोलते की तू दोयम दर्जे की है, वो भी बेटों के ही सामने और उम्मीद करते की वो भविष्य में अच्छा इंसान बनेगा, औरतों को इज्जत देगा, बहन मतलब अपने साथ साथ दूसरो की बहन की रक्षा करेगा। कितना अच्छा विचार है न? आशावादी रहने की कोई परेशानी नही, रहिए। सोचिए देवियां आएंगी या भगवान आयेंगे। लेक

ये जीवन है (भाग 13-15)

अब तक के भाग में अपने पढ़ा कि शांति जी बेटे राहुल के हाल के बारे में रवि को बताती है राहुल अपना सपना बताता है उसके बाद दवाइयों और काउंसिलिंग से उसकी हालत सुधरती है लेकिन दो महीने बाद अजय की मौत बड़ी अजीब परिस्थिति लगभग राहुल के सपने की तरह जाती है। सब लोग दहशत में डूब जाते हैं। अब आगे.... राहुल ने किसी से भी बात करना बंद कर दिया था। डॉक्टर ने बताया कि उसे फिर से गहरा सदमा लगा है। बार-बार लगे सदमे ने उसको इस हाल में पहुंचा दिया है कि अब अगर कोई और बात हुई तो शायद वो अपना मानसिक संतुलन पूरी तरह से ही न खो दे। उन्होंने ये भी बताया कि अब उसका इलाज करना और मुश्किल होगा क्योंकि अब वो ये नहीं मान पायेगा की उसका सपना बस सपना था। मोहन को लेकर उसका मन और ज्यादा डर गया है। अजय के साथ जो भी हुआ वो इसकी आंखों के सामने ही हुआ। जो हुआ वो तो किसी भी आम इंसान को भी सदमे में पहुंचाने के लिए काफी था और राहुल जो पहले से ही इसी तरह की बुरी यादों से घिरा हुआ है उसके सामने ही बुरी यादों का सच बनकर सामने आ जाना कितना दर्दकारक होगा। इस वजह से वो बात नहीं कर पा रहा है। अब दवाइयों के साथ साथ ये भी दुआ करनी होगी क

ये जीवन है (भाग 10-12)

अब तक के भाग में अपने पढ़ा कि रवि घर के पास ही रहने वाली शांति जी से उनके बेटे के बारे में पूछता है। वो अपनी कहानी में बताती हैं कि नेहा को डॉल मिलती है और वो अपने दोस्तों से दूर हो जाती है। अब आगे.... वो डॉल बड़ी अजीब सी थी। जब से वो डॉल आयी थी नेहा बदल सी गई थी वो बिल्कुल अकेले अकेले रहने लगी, सबसे अलग। राहुल से भी दूर सी हो गई थी। घर भी आती तो अकेले रहती। उसका चहकना, चुलबुलापन, हंसना सब जैसे कहीं खो गया था। बस वो उस डॉल से खेलती वो भी अकेले में, किसी को हाथ भी न लगाने देती थी। सबने उसको कहा कि इसको छोडनकर अपने दोस्तों के साथ खेलो, लेकिन जैसे इन बातों का उसपर असर नहीं हो रहा था या वो ये बात सुन ही नहीं रही थी। राहुल ने कितनी बार नेहा को समझाया लेकिन वो उससे लड़कर भाग जाती। उसकी आंखें अचानक से अजीब सी लाल हो जाती थीं। राहुल भी बहुत परेशान हो गया। आखिर कोई दोस्त एकदम से ऐसे करे तो बच्चे तो उदास हो ही जाते हैं। बच्चों के पूरी दुनिया आखिर माँ बाप और दोस्त ही तो होते हैं और नेहा तो उसकी सबसे प्यारी दोस्त थी। उसी की क्यों वो सबकी दुलारी थी। बाकी बच्चे भी परेशान थे लेकिन राहुल का मन तो नेहा के

नारी शक्ति

कैद में रखकर मुझे न, ऐसे तो भगवान बनाओ, हक जो मेरे दे मुझी को, ऐसे न अहसान जताओ, दर्द जो मैंने सहे हैं, सहने की बस शक्ति मुझमे, जान कर निर्बल मुझे न, अपनी शक्ति से डराओ। खुद दिया मैंने जो तुमको, प्रेम का अधिकार वो था कोमल थे मन भाव मेरे, प्रेम का आधार वो था, तुम व्यर्थ ही दान मेरा, दमन का स्वीकार समझे, चरणों में परमेश्वर खुद, मेरा तो संहार वो था। तुच्छ है शक्ति प्रदर्शन, तुच्छता से बाज आओ। जान कर निर्बल मुझे न, अपनी शक्ति से डराओ। शिव ब्रह्मा हों या विष्णु, सब मेरी ही राह धरते, मेरा ही एक नाम लेकर, राम के थे शर चलते, मुझसे ही तो सारी शक्ति वो सुदर्शन पा रहा था, मेरी ही आंचल में सारे, शक्ति के थे धाम पलते, व्यर्थ मिटा देने की मुझको, इच्छा न मन में सजाओ जान कर निर्बल मुझे न, अपनी शक्ति से डराओ। कैद में रखकर मुझे न, ऐसे तो भगवान बनाओ, हक जो मेरे दे मुझी को, ऐसे न अहसान जताओ।

ये जीवन है पार्ट (7-9)

अब तक के भाग में अपने पढ़ा कि रवि पत्नी कविता और बेटे मोनू को लेकर बहुत सालों बाद गाँव आता है। वहां मोनू रात में जुगनू और सितारों से भरा आसमान देख कर उसमें खो जाता है। जोरदार आवाज होने पर कविता रवि के गले लग गई और अब आगे..... 'काश ऐसे ही मेरी बाहों में समाये रहो। बिजलियां गिरती रहे और मुझमे तू सिमटी रहे।' रवि ने बोला। 'चलो हटो जरा सा डर क्या गई तुम तो सपनों में खो गए।' कविता ने दूर होते हुए कहा। 'तुम तो मेरी हो ही इसमें दूर क्यों हटना। बिजली तुझे रोज गिरना चाहिए। उधर तू गिरी और इधर ये बिजली हमपर गिरी। अभी थोड़ी देर पहले तो हम याद आ रहे थे और अब हमसे ही .....' रवि में मुँह बनाते हुए बोला। 'चलो जाओ मैं नही डरती किसी से।' रवि की बात काटते हुए कविता बोली। 'अच्छा जी।' रवि ने कहा। तभी फिर से जोरदार आवाज हुई, और कविता फिर से रवि के गले लग गई।  'कोई किसी से नहीं डरता लेकिन बात बात पर दुबक कर गले लग जाता है।' रवि ने फिर कहा। 'जाओ जाओ उड़ा लो मजाक। ये बारिश भी ऐसे हो रही है जैसे आज मार्च में ही सावन आ गया हो। लगता है मुझे डराने के लिए ही आ