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Showing posts from October, 2019

बलिप्रथा और मांसाहार

किसी के घर मे कोई बीमार पर गया या फिर ऐसा कुछ हुआ तो तो तुरंत मन्नत मांग लेते हैं।और बाद में जब बके मन मुताबिक काम हो जाता है तो उन्हें लगता है हम कबूल थे इसलिए ये काम पूरा हुआ।और जाकर बलि दे देते हैं। किसी का कोई अपना खो गया तांत्रिक ने बोला बलि दो तो मिल जाएगा। लेकिन ये सब सिर्फ अंधविश्वास है। ये सिर्फ इसलिए बोला जाता है कि वो लोग बाद में उस बलि जीव से पार्टी करते हैं। आज के दिन कोई भी तांत्रिक हो सब शराब, नशे के आदी होते है। तो बकरा मिल गया तो हो गई पार्टी।  मेरे हिसाब से जो मेरा मन कहता है कि बलि प्रथा प्राचीन समय से चली आ रही है। विगत में मानव जंगल मे रहता था और विकास के चरण में था। वो शिकार करता था। उसने सूर्य इत्यादि की पूजा शुरू कर दी थी  वो शिकार भी करता था और खेती भी शुरू की। धीरे धीरे खेती बढ़ने लगी शिकार कम हुआ तो मानव ने शिकार के लिए नियत समय तय किया होगा की जब खेती कम होगी तब शिकार करेंगे। इसलिए देखिए दोनो नवराते दोनो मुख्य फसल रवी और खरीफ के लगभग मध्य में पड़ते है उसके बाद ही खेती शुरू होती है।  मेरे उसी समय शिकार करके या पकड़ कर पशु लाये जाते होंगे। कोई ज्यादा शिकार करता ह

ब्रेकिंग न्यूज़ और पत्रकार

कैसी बारूदी हवा चली कि बुझते,  आजादी के सब दीप महान, आज कलुष सा सबका चेहरा, सबने ही लूटा देश महान। अगर कोई सच मे देश के न्यूज़ चैनल विशेषकर शाम को देखता है तो सबकी नज़रों में आज आजादी के नेता भी बंट गए है। पटेल को बड़ा दिखाने के लिए नेहरू को छोटा किया जा रहा है। गांधी की काट के लिए सावरकर को सामने लाया जा रहा है। मैं समझ नही पा रहा कि कैसे सिर्फ मूर्ति बना देने से पटेल बड़े हो जाएंगे? वो वैसे ही बड़े है, सरदार सरोवर बांध सबसे बड़ा है उससे बिजली भी बनेगी दूसरे काम भी होंगे। उसका उदघाटन किसने किया? कुछ ऐसा करना जिससे देश का भला ही जरूरी है या कोई मूर्ति बनवाना। कोई भी तथ्य नही सिर्फ एंकर की बस बातें। न्यूज़ पेपर में खबरें सरकार के विज्ञापन की तरह प्रकाशित होती हैं। सरकार की प्रशंशा पहले पेज पर बड़े खबर और उसकी गलतियां अंदर के पेज पर छुपा कर। क्या सच मे आज पत्रकारिता हो रही है या सिर्फ चमचागिरी हो रही है? पता नही चल पा रहा। सिर्फ चैनल वाले अपने trp के चक्कर में सिर्फ वही खबर दिखाते है जिससे कि जनता एक वोट बैंक में बदलने लगे। मीडिया अगर लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है तो उसका एकमात्र कर्म सरकार की निष्प

G गॉड

एक बार नारद जी भगवान विष्णु की शरण मे गए नारायण, नारायण प्रभु जैसा कि आपने गीता में कहा था कि ईश्वर सर्वव्यापी है। सर्वत्र है। सर्वज्ञ है। सर्वशक्तिमान है। हज़ारो आंखे है जिसके। हज़ारो हाथ है जिसके। हज़ारो मस्तिष्क है। अजर है अमर है देश समाज की सीमाओं के परे है। जन्म मृत्यु से परे है अज्ञानता जिसका कुछ नही बिगाड़ सकती। जिसको जाना भी नही जा सकता। जिसको बांधा नही जा सकता। सब जिसको समझते है कि मैं जानता हूँ लेकिन कोई नही जानता। जिसको सब समझते है मैं नही जानता वही जानता है। जी गुणों से भरा है। जो निर्गुण भी है। जो साकार है। जो निराकार भी है। जिसके हज़ारो रूप है, उसको कोई देख नही सकता। लेकिन वो सबमें व्याप्त है। प्रभु आपने कहा था कि आप सबको उसके भाव अनुसार मिलते हो "जाकि रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखहीं टिन तैसी" तो क्या आप उसी प्रकार कलयुग में क्या मानव के साथ आप नही होंगे? मानव कलयुग से अकेला कैसे लड़ पायेगा? अरे नारद इतने सवाल। मुझे मालूम है मानव मात्र की भलाई के लिए तुम सदा चिंतित रहते हो यही ये बताता है कि तुम कितने सहृदय हो। भगवान ने नारद जी को रोकते हुए

रॉन्ग नंबर भाग 4 से 6 (सम्पुर्ण कहानी)

जैसा आपने अब तक पढ़ा कि कैसे रमेश की दोस्ती मीनू से एक "रॉन्ग नंबर" के कारण हो जाती है। जिसके बारे मे उसका दोस्त सतेन्द्र सब जानता है। रमेश से दोस्ती टूटने के कुछ दिनो बाद मीनू सतेन्द्र को ही प्रेम निवेदन कर देती है।  अब आगे। सतेन्द्र आज उस दोराहे पर आ गया था जिसके बारे मे उसने कभी सोचा भी नही था। अगर मीनू को हाँ बोल देता है तो रमेश क्या सोचेगा, उसकी दोस्ती खतम ना हो जाये। अगर न बोल दे तो मीनू को दिल की बिमारी की वजह से उसे कुछ हो गया तो? फिर उसने अपनी चीन वाली दोस्त से भी बात की जो उसे मन ही मन प्यार करती थी लेकिन उनकी शादी होना ना मुमकिन थी। उसने भी सतेन्द्र को समझाया कि जिस लड़की ने पैसो की वजह से रमेश का साथ छोड़ दिया उसकी सच्चाई का क्या भरोसा। तुम उसकी मदद कर रहे हो लेकिन क्या वो तुम्हरा साथ तुम्हारे खराब टाईम मे देगी। तुम सोच लो तुमको क्या करना है लेकिन मुझे भूल न जाना कभी। लेकिन कहते है न कि समय इन्सान की बुद्धि पर एक ऐसा आवरण डाल देता है कि इन्सान उसके जाल मे फँसता ही चला जाता है। नियती ने तय कर दिया था सतेन्द्र का भाग्य। सतेन्द्र ने फैसला किया चूंकि रमेश तो मीनू क

रॉन्ग नंबर भाग 1 से 3 (सम्पुर्ण कहानी)

आज मैने पहली कहानी लिखनी शुरु की। मेरे एक मित्र जो इसी कहानी के पात्र है ने मुझे ये सुअवसर प्रदान किया की मै पहली कहानी लिख सकूँ। उनका आभार। आप सब मित्रों से अनुरोध है की मेरा मार्गदर्शन करें, गल्तियों के लिये मुझे माफ करें, और मुझे बताये जिससे मे इस विधा मे कुछ सीख ले कर आगे बढ़ पाऊँ। आज ने आधुनिक युग में प्यार बिना देखे हो जाता है ये सही है, क्योंकि शायद हम इतने सोशल हो गए है कि आज पास कोई दोस्त हो न हो लेकिन सोशल मीडिया पर हज़ारो लोग दोस्त है। और प्यार प्यार न होकर खेल जैसा हो गया है। ये बात 70% ही सही हो लेकिन सही है। वैसे भी ये काम हमेशा से होता रहा है अपने मतलब के लिए प्यार और फिर उसे छोड़ देना। ये प्यार क्या है एक खिलौना है, टूट जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है ट्रिन ट्रिन मोबाइल पर लगातार जा रही घंटी के बाद किसी लड़की ने फ़ोन उठाया। अपने दोस्त को किये फ़ोन पर लड़की की आवाज सुन कर रमेश चौक गया था। रमेश -- हल्लौ..हल्लौ.. कौन बोल रहा है। उधर से आवाज आई-- आप बताईये आप कौन बोल रहे हो? कॉल अपने किया है। उधर से आई मीठी आवाज मे रमेश ऐसा खो गया जैसे की रेगिस्तान की मरुभूमि पर सरिता क

हंस लेने दो

दर्द छुपा लेंगे शायद, हंस लेते है, हंस लेने दो। है तोड़ यही बस दुनिया की, गम पीकर बस हंस लेने दो। सब बात करेंगे मंजिल की, कोई साथ न देगा लेकिन, जब ऊधरेंगी गम की परतें, कोई हाथ न देगा लेकिन, जग नोच न ले, ये पुष्प से स्वप्न, परतों पर परत कस लेने दो। बस दर्द छुपा लेंगे शायद, हंस लेते है, हंस लेने दो। सब दुनिया तुमसे बेहतर, अहसास यही दे जाते, नीचे गिरते को सब मिलकर, फिर ठोकर एक लगाते, है आज पड़ा पत्थर मुझको, रूप नया रच लेने दो। दर्द छुपा लेंगे शायद, हंस लेते है, हंस लेने दो। बेरंग स्वप्न की दुनिया तो, कोई रंग ये जीवन क्यों चाहे? सब चाह लुटे तो चाह नई, नव स्वप्न सजाना क्यों चाहे? फिर गीत नए, अरमान नए, प्रतिमान नए, रच लेने दो। बस दर्द छुपा लेंगे शायद, हंस लेते है, हंस लेने दो।