तुम जब हौले से मुस्काये


आभा हुई चंद्र की फीकी, झूठ हुए अफ़साने सब,
तुम जब हौले से मुस्काये, टूट गए पैमानें सब।।
ये रंगत जब पर्दे में थी, सारी बहारें फीकी सी थी,
काजल-बिंदिया-लाली हाय, मारे गए दीवानें सब।।

उन उजड़े-बिखड़े बालों ने, उड़-उड़ कर उत्पात मचाया,
इस नीरस-सूखे मौसम में, उन्मादी तूफान उठाया,
चेतन-जड़ सब नाच रहे है, मन मे खुशियां ढाक रहे है,
मांग रहे मस्ती की तुझसे, भीख यहां मयखाने सब।
तुम जब हौले से मुस्काये, टूट गए पैमानें सब।।

सुबह-सुनहरी पहली किरणे, जब फूलों से टकराती है,
ओस सुसज्जित पुष्पों की शोभा, और मनोहर हो जाती है,
त्यों मन को तुम जीत रहे हो, कर मुझको भयभीत रहे हो,
ऐसा रोग लगा मन का कि, दुश्मन भये जमाने सब।
तुम जब हौले से मुस्काये, टूट गए पैमानें सब।।

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