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जीवन मे जब जो होना है

जीवन मे जब जो होना है,  उसकी सब सीमाएं निश्चित, उस निश्चित परिधि से आगे,  मानव कब बढ़ पाया बोलो, कर्म भी निश्चित भाग्य सुनिश्चित,  जीवन की हर राह सुनिश्चित, जो इच्छित मन में सदियों से, प्रतिमा कब गढ़ पाया बोलो। और सुनो उसपर ये भ्रम भी, जीवन बस कर्मों के बल है, आज मिला जो भी है हमको, वो जन्मों जन्मों का फल है। पर कर्मों का लेख लिखा है। निश्चित सारा खेल लिखा है। हैं दुष्कर जीवन दोराहे, किस पथ जाना शेष लिखा है। नियति से कितना भी चाहे, मानव कब लड़ पाया बोलो। जो इच्छित मन में सदियों से, प्रतिमा कब गढ़ पाया बोलो। उन्मादी नादों को लेकर,  जीत के सब दावों को लेकर, उतर पड़े जीवन के रण में, आशा के भावों को लेकर। पर मानव इतिहास सुनहरा। नव पथ का आकाश सुनहरा। जब होगा जो भी देखेंगे, मानव मन अहसास सुनहरा। विधिना के दुर्गम जो पर्वत,  मानव कब चढ़ पाया बोलो। जो इच्छित मन में सदियों से, प्रतिमा कब गढ़ पाया बोलो। बहुत हुआ जीवन का निष्ठुर, आंख मिचौली का ये खेला, मिले कहीं पर अनजाने दो मिला कहीं वीराना मेला। हे ईश्वर तुम कथ्य हो अंतिम, इस सृष्टि का दृश्य हो अंतिम, प्राणी में बसते मन बनकर, भाग्य कर्म का सत्य हो अंति