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Showing posts from 2023

P287 न सफर में दिल को सकून था

न सफर में दिल को सुकून था,  न तो मंजिलों पर करार है,  तेरे इश्क का, तेरे इश्क का, तेरे इश्क का ये खुमार है। ये सुनो घटाओं की अनकही, मेरे दिल में उतरी है रात भर, मेरे साथ होकर भी दूर क्यों, तेरा प्यार कैसा ये प्यार है न सफर में दिल को सुकून था,  न तो मंजिलों पर करार है। सुनो सिलसिला ये बना कभी, तुझे देखा मैंने था रात भर, मेरी जिंदगी की नसीब से, ठनी कैसी चिर ये रार है। न सफर में दिल को सुकून था,  न तो मंजिलों पर करार है। कभी रात-दिन में फर्क न था, तेरा मिलना मुझसे अजब ही था। तू बता तो दिल के करार में, पड़ी कैसी अब ये दरार है न सफर में दिल को सुकून था,  न तो मंजिलों पर करार है। कोई बात है तो बता तो दे, किसी राज का तू पता तो दे, कुछ किया नहीं तूं गया बदल, बिन तेरे ये सूना दयार है। न सफर में दिल को सुकून था,  न तो मंजिलों पर करार है। अब सवाल है मेरी जिंदगी, अब सवाल है मेरी बंदगी, अब सवाल सांसों की डोर ये अब सवाल दिल में हजार है। न सफर में दिल को सुकून था,  न तो मंजिलों पर करार है।

तुमको मिल जाऊंगा p 288

प्रेम का, सिलसिला, तुम करो, जो कभी, याद कर,ना मुझे, तुमको मिल, जाऊंगा, गीत गाने लगे, मन तेरा, बाबरा, मोड़ पर, इश्क के, तुमको मिल, जाऊंगा, आज रंग, लो सखी, तन को जग, रंग में, प्रेम को, भूल कर, जग के हर, ढंग में, पर कभी, टूट कर, मन दुखे, जो तेरा, याद करना मुझे, तुमको मिल, जाऊंगा। दिल को आने लगे, जब कभी, याद सी, दिल को होने लगे, चाह फरियाद की। आंख बहने लगे, वजह कुछ, भी न हो, याद करना मुझे, तुमको मिल, जाऊंगा। लो गई, रात ये, रात लंबी चली रात के, साथ हर, बात लंबी चली, आस दिल, में कभी, जो जगे, हम मिलें, याद करना मुझे, तुमको मिल, जाऊंगा। क्या हुआ, थम गई, दिल की सारी सदा क्या हुआ, जम गई, आज बहती घटा, दिल को कहनी कभी, मन की कुछ, बात हो, याद करना मुझे, तुमको मिल, जाऊंगा।

जो मेरा नहीं उसी ख्वाब पर p286

जो मेरा नहीं उसी ख़्वाब पर, मैं था ख्वाब सारे सजा रहा, तेरी चाहतों का ले सिलसिला, मैं था राह अपनी बना रहा। कोई गीत कहता तो क्या भला, मेरे इश्क़ में कुछ नया नहीं तुझे भूल जाने की थी जिद्द लगी मैं तो खुद को ही था मिटा रहा। मेरे ख्वाब सारे गुनाह अब, तेरे इश्क में न पनाह अब तेरी एक निगाह की आस पर, मैं तो जिंदगी था लुटा रहा। चलो फिर से कोई घाव दो, चलो फिर ये बाहों का हार दो, मेरे चाहतों के महल में मैं, तेरी नफरतें को बसा  रहा। सुना होगा कोई नया सफर, तेरे इश्क का ये तो है असर, मैं तो खुद ही थमती सांसें ले, मेरी मय्यतें को सजा रहा। तुझे अब भी मुझपर यकीन नहीं, तुझे कैसे इसका प्रमाण दूं, मुझे तुझपर रब सा यकीन है, ये ही बात कब से बता रहा।

हँसते रहो मुस्कुराते रहो p285

तुम बस हँसते रहो मुस्कुराते रहो,  यूँ ही हँस हँस कर हमको सताते रहो।  हम तो परवाने हैं, तुझपर मर जाएंगे,  खुद ही जलकर हमें भी जलाते रहो। तुमसे उल्फत मुझे रोज कहता रहूँ,  तेरे सितमों को हँस कर के सहता रहूँ,  तुम निगाहों से बस रोज चूमो मुझे,  न-न कहकर, ये नजरें झुकाते रहो। मुझसे उत्फल है तुमको भी कर लो यकीन,  आके बांहों में मुझको तो भर लो अभी । मेरी उल्फत में तुम भी हो सोते नहीं,  ये हकीकत भले तुम छुपाते रहो। हो महफिल में गुमसुम क्यों बैठे हुए,  क्यू हो तन्हा मेरा साथ होते हुए। मेरी बाहो में आकर के छुप जाओ बस,  मुझसे नजरे न यूँ ही चुराते रहो।

चीरहरण p284

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥ ईश्वर को उन्हीं के इन वचनों का स्मरण करवाती मेरी रचना, इसमें ईश्वर का आह्वाहन तो है ही साथ ही लोकतंत्र के ईश्वर का भी आह्वान है... राजनीतिक सत्ताओं को जब चीर हरण भा जाता है, जब राजा कह मैं अंधा, निज लालच से भर जाता है। जब जनता अंधी हो जाए, राजभक्ति में भूले देश, हे चक्रधारी! तू चुप होकर, किससे ऐसे डर जाता है? लगता मिथ कथाओं का, अंबार है रामायण गीता, लगता मिथ कथाओं ने, शिव का वो नेत्र कहा तीजा, लगता वो राम भी सोया है, लगता हनुमान भी खोया है, जो धर्म-धर्म ही कहता था, कलि ने उसको भी धोया है, या सत्ताओं के प्यासे हो, ये सब अंधे बन बैठे हैं, सब देव हैं जो, त्रिदेव हैं जो, जाकर कलि से छुप बैठे हैं कोई आवाज नहीं आती, कोई न राह दिखाता है, हे चक्रधारी! तू चुप होकर, किससे ऐसे डर जाता है? जनता से मत को दान में ले, नक्कारे राजा बन बैठे रंग बदल कर जो आए, सियार ही दादा बन बैठे, महीनों तक चुप रह जाना, आखिर कैसे हो पाया है, या खुद के

दिल बेचारा 283

सुन फूलों की सरगोशियाँ, मेरा दिल बेचारा बहक रहा, तेरे हुस्न से, मेरे इश्क से, ये जमाना सारा दहक रहा। कोई राज कब था तेरा मेरा, न तो दिल में कोई सवाल था, हुई कोशिशें तो हजार पर, मेरा घर तुझ से महक रहा। किसी ख्वाब सा तू मिला मुझे, बड़ी दिलनाशी सी थी रात वो, मुझे गम न हो किसी बात का, तेरा गम छुपा तू चहक रहा। मुझे क्या गरज मैं दुआ करूँ, मेरी आरजू न बची कोई, मुझे अब शमां की न चाह है, मेरा इश्क खुद ही दहक रहा। तुझे इश्क़ करने की चाह थी, जमाना क्या ये समझ गया, इसी बेबसी के ख्याल पर, तेरे साथ से दिल बहक रहा।

कभी दूर से जब आती है 282

कभी दूर से जब आती है, पानी की आवाज मचलती, तुमसे जब-जब टकराती हैं, पानी की एक धार मचलती, खुशबू-खुशबू हो जाती है, सारे जग की सारी बातें, दिल की सारी धड़कन देखो, तुम पर है हर बार मचलती। इश्क तो बस पानी के जैसे, बह जाने का नाम है मानो, प्रियतम की नजरों से हरपल, सज जाने का काम है मानो, कुछ कहने की बात नहीं ये, चुप रहने की जिद के जैसी, जिस पर मरते उससे ही न, कह पाने की बात है मानो, पर दिल की इस चाह को कैसे, होठों पर हम आने ना दें, दिल की सारी धड़कन देखो, तुम पर है हर बार मचलती। हो जाएगा जब तुमसे ये, चाहत का इकरार सुनो न, मिल जाएगा जब इस दिल को, तेरे दिल का साथ सुनो न, हो जायेंगी बाहें जब ये, वरमाला के फूलों जैसी, तब होगा एक अलग-अलग सा प्रेम का फिर इतिहास सुनो न, पर तब तक मानो ये जीवन, कांटो की एक सेज है मुझको, दिल की सारी धड़कन देखो, तुमपर है हर बार मचलती। बैठ आज फिर पहरों-पहरोंं, चुप-चुप सी जो बात करें वो, तुमसे मुझको सपनो का जो,

नारी

"अपराजिता" संग्रह में शामिल लेखकों को हार्दिक बधाई। आप सभी के सहयोग से ये संग्रह प्रकाशित हो पा रहा है इसके लिए सभी लेखकों को धन्यवाद। संपादक मोनिका सिंह "मोह", सह संपादक मीना सिंह "मीन", चेतना लाबास, और प्रियंका गहलौत:"प्रिया कुमार" को भी संग्रह को मूर्त रूप देने के लिए शुभकामनाएं। जब इस पुस्तक के लिए कुछ लिखने का समय आया तो मेरा कुछ लिखने का विचार बिल्कुल नहीं था। मैं अक्सर ऐसे समय पर कुछ नहीं लिखता जब किसी विषय पर लिखने का मन न हो। लेकिन एक घटना के बाद खुद को लिखने से रोक नहीं पाया... हम कितना भी प्रचार करें, कि हम अधुनिक हो गए हैं, मानवीय इतिहास और विकसित देश होने के मार्ग पर तेजी से भाग रहे है, लेकिन ये एक ऐसा झूठ है जिसपर हम अन्धविश्वास करके बैठे हैं। नारीवाद का उदय इसी मिथ्या का एक रूप है। ठीक वैसे ही जैसे पुरुषवाद। असल में ये दोनों ही झूठ हैं और अपने आप को दूसरे से ऊपर रखने की मुहिम का हिस्सा हैं। मेरा मनना है कि सभ्यता, जीवन या सृष्टि जो भी कह लीजिए, के निर्माण और क्रियाशील होने में नारी और पुरुष समान रूप से भागीदार है न कोई बड़ा है न छो

रात देखा तुम्हे 281

पूर्णिमा चाँद सा, रात देखा तुम्हें, प्रेम के बाग सा, रात देखा तुम्हें, रात देखा तुम्हें, रात रानी सी तुम, अनछुई आस सा रात देखा तुम्हें। देखा तुमको लगा, झुरझुरी सी हुई, चलते चलते यूँ हीं, बेबसी सी हुई, ये नजर प्रेम में झुक गई तो मगर, इन निगाहों को कुछ, बेखुदी सी हुई। आँख बहने लगी, दिल भी गीला हुआ, बहकी बरसात सा रात देखा तुम्हें। हाथ में हो मोहब्बत की रेखा सी तुम, चांदनी रात की चित्रलेखा सी तुम,  हो रवानी तुम्हीं प्रेम के राह की, मेरे जीवन की हो स्वर्णरेखा सी तुम। तुमसे कैसे कहें तबसे क्या हाल है, मन के अहसास सा रात देखा तुम्हें। मुझको बांधो मुझे, अपना करते रहो, प्रेम है तो न आहें, यूं भरते रहो, जिंदगी की है, छोटी डगर ये प्रिय, तन्हा तन्हा न इसपर यूं चलते रहो। तेरा बंधन तो कोई शिकायत नहीं प्रेम के पाश सा रात देखा तुम्हें। पाँव थक जाएं तो, मैं सहारा बनूँ मन के मझधार का मैं किनारा बनूँ, तेरे काँटों को पलकें, ये चुनने लगें, तेरी हर रात का, चांद तारा बनूँ, इतनी नाजुक हो कैसे संभालू तुम्हें, अनछुए प्यार सा रात देखा तुम्हें। NM

मिले नहीं तुम 279

मिले नहीं तुम इसी एक गम में, ये मन की राधा भटक रही है, कहा है तुमने तुम्हीं हो कण कण, तुम्हीं पर चाहत अटक रही है। तुम्हारी राधा के आँसुओं का, असर है कितना तुम्हें पता है, उसी की चाहत तुम्हारी शक्ति, उसी से सृष्टि का सिलसिला है, अगर वो रो दी बचेगा कुछ न, ये बात सबको खटक रही है। मिले नहीं तुम इसी एक गम में, ये मन की राधा भटक रही है। जो छोड़ देने की तुमने सोची, नहीं कभी फिर पधारे गोकुल, ओ कन्हा माता की आस सिमटी, हुए हैं यमुना के प्राण व्याकुल, कोई तो तोड़े, फिर आज मटकी गोपियाँ सारी मटक रही हैं। मिले नहीं तुम इसी एक गम में, ये मन की राधा भटक रही है। सुनो तो राधा के प्राण प्यारे, बिना तुम्हारे है सूना गोकुल, कोई नही जो खिला दे इनको, ये बाग सारे बने हैं मरुथल, ये चाँद पूनम का बुझ गया है, ये रात तारे झटक रही है। मिले नहीं तुम इसी एक गम में, ये मन की राधा भटक रही है। कभी कहा था मिलोगे फिर तुम, जीवन का जब पहर ढलेगा, हमारी चाहत का इस धरा पर, श्रृंगार अंतिम वही खिलेगा, हैं प्राण अटके हुए हमारे, नजर तुम्हीं पर सिमट रही है। मिले नहीं तुम इसी एक गम में, ये मन की राधा भटक रही है।

किसी निगाह को 280

किसी निगाह को देखा भी, चाहा भी बताया भी नहीं, कोई खालिश भी नहीं, साथ अपना साया भी नहीं। हाँ जमाने में ये ही चर्चा, कि दीवाना हूँ तेरा, बात ये ओर, कभी खुद को बताया भी नहीं। अब भी चाहे तो, मेरी हस्ती ही हिला दे वो एक, बस मेरी चाह पर सर, उसने हिलाया भी नहीं। हाँ जा, तू भी चली जा, कब है रोका मैंने, जिंदगी रूठी है, मौत का साया भी नहीं। बस मुक्कदर के भरोसे से ही होगी ये खत्म, उम्र भर साथ चले ऐसा कोई पाया भी नहीं।

P277 कौन है आई

फाल्गुन की मादकता पर जैसे, अल्हरता सावन की छाई, पतझड़ में बागों का खिलना, कौन जो सावन बन कर आई। किसने सबका मन भरमाया, किसने बदली रीत जगत की, मन शंकित शायद ये भ्रम है, उतर स्वर्ग से कौन है आई। कौन है वो किसने फैलाया, अजब नशा सा पूरे जग पर, अमर प्रेम की नव परिभाषा, सुंदरतम लिख दी है नभ पर, गजब हुए हालात हैं मन के, ले ली सपनों ने अंगराई। मन शंकित शायद ये भ्रम है उतर स्वर्ग से कौन है आई। मंच पर आभासी दुनिया के, मरुस्थली प्रपात का दिखना, शाम ढले छत पर मद्धिम सा, तेरा और कभी चांद का चढ़ना, इतने सारे भ्रम की दुनिया, प्रेम तुम्हारा एक सच्चाई। मन शंकित शायद ये भ्रम है उतर स्वर्ग से कौन है आई। सुदरतम रचना के जैसी, भावोत्तम कथना के जैसी, निश्छलता प्रकृति की पूरण, मादकता मदनी के जैसी, कैसे संभव एक तुम में ही, भर दी सृष्टि की तरुनाई। मन शंकित शायद ये भ्रम है उतर स्वर्ग से कौन है आई। मन से पिघल गया है सारा, जो संताप भरा जग ने था, मिटती सारी पीड़ा मन की, मिटता ताप जो मन में था, ऐसी शीतल इन केशों की, बदली है जीवन पर छाई मन शंकित शायद ये भ्रम है उतर स्वर्ग से कौन है आई।

P278 कुछ नया सा हुआ

कुछ नया सा हुआ इश्क में रात भर, प्यार से दिल मेरा भींगता ही रहा, तुम बहुत दूर थे, पर तेरा दिल मुझे, अपनी बाहों में बस खींचता ही रहा। थे बहाने बहुत तुम ही आए नहीं, मेरे सपनों को पर रोक पाए नहीं, तेरी यादों में बस दिल मेरा बेखबर, सदियां बीती मगर रीतता हो रहा। तुम बहुत दूर थे, पर तेरा दिल मुझे, अपनी बाहों में बस खींचता ही रहा। तुमसे बेहतर मेरे इश्क का रहनुमा, न मिला और न कोई मिलेगा कभी, कैसे हो ये भला स्वप्न मैं तोड़ दूं , दिन जो निकला नयन मींचता ही रहा तुम बहुत दूर थे, पर तेरा दिल मुझे, अपनी बाहों में बस खींचता ही रहा। पास जब थे, मेरे तब भी क्या पास थे, खोए खोए तुम्हारे सब अहसास थे तुम तो मुंह फेर कर बस सताते रहे, मैं तुम्हें बाहों में खींचता ही रहा। तुम तो मुंह फेर कर बस सताते रहे, मैं तुम्हें बाहों में खींचता ही रहा।