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Showing posts from 2020

घाट यमुना के फिर आओ

न जुदाई का ही शिकवा, न तो कोई चाह मितवा, बस यही एक आरजू है, घाट यमुना के फिर आओ। मन की सारी आह विस्मृत, तुझमे सारी चाह विस्मृत, है विरह की आग व्यापक, घाट यमुना के फिर आओ। दीप कितने जल उठे हैं, नयनों में भर जल उठें हैं, श्याम जब से तुम गए, मिलन के पल खल उठें हैं, कोरी आशा ये नही है, हाँ निराशा भी नही है, देव तुम, प्रबरह्म तुमसा, कोई दाता भी नहीं है। तान दो फिर प्रीत की तुम, श्याम बंसी फिर बजाओ, है विरह की आग व्यापक, घाट यमुना के फिर आओ। कृष्ण बने हो श्याम बनो फिर, ओ कान्हा घनश्याम बनो फिर, हो कर्मो के न्यायधीश पर, महारास का धाम बनो फिर, प्रेम बिना आधार नहीं कुछ, राधिका बिन श्याम नहीं कुछ, मुरलीधर घनश्याम न होगे, प्रेम बिना तो ज्ञान नहीं कुछ, अहम कुचलने ज्ञान का फिर, श्याम गोवर्धन उठाओ, है विरह की आग व्यापक, घाट यमुना के फिर आओ। विरह की इस वेदना पर, मुझको कोई शोक नहीं है, आत्मा में तूं बसा एक, तन की कोई रोक नहीं है, पर है मन का वेग चंचल, तुझको अपने पास चाहे, काश फिर तू कान्हा आये, माखन मिश्री फिर चुराये, हाथ लेकर हाथ अपने, नंदनवन में फिर घुमाओ, है विरह की आग व्यापक, घाट यमुना के फिर आओ।

बहुत सताया तुमने बीस

नया सवेरा, नया उल्लास, नव उम्मीद लाया इक्कीस, भूले से भी लौट न आना, बहुत सताया तुमने बीस। तुमने सारे स्वप्न सुनहरे, एक ही पल में चूर किये, जितने भी थे आस के दीपक, तुमने सब बेनूर किये, कितने भूखे, कितने टूटे, मीलों पैरों पर बोझ लिए, कितनी माओं के बच्चे हंसते, उनसे तूने दूर किये, न तो संगी और न साथी, बच्चों के मन की ये टीस। भूले से भी लौट न आना, बहुत सताया तुमने बीस। तुम फिर उसको न दोहराना, तुम लेकर उस राह न जाना, तुमसे सबकी आस है जिंदा, तुम न देकर धोखा जाना, अबकी सारी खुशियाँ होंगी, जन्म दिवस पर बतियाँ होंगी, नए नए जो स्वप्न सजाए, तुम उनको फिर तोड़ न जाना, हो ऐसा उन्मांद खुशी का, स्वर्ग भी जाये हमसे खींझ, नया सवेरा, नया उल्लास, नव उम्मीद लाया इक्कीस। नया सवेरा, नया उल्लास, नव उम्मीद लाया इक्कीस, भूले से भी लौट न आना, बहुत सताया तुमने बीस।

सुबह सुबह जो छू लेते हो...

सुबह सुबह जो छू लेते हो, तुम इस तन की डाली को, प्रेम भरा आलिंगन करता, ज्यों भंवरा फुलवारी को। नयन ये बरबस झुक जाते हैं, लब लब पर आ रुक जाते हैं, लहरा उठता है मन का सागर, पा गालों पर लाली को। स्वर्ग हुई है जीवन बगिया, पावन मन का कोना-कोना, तेरा होना मुझको भाया, तुम ही अब जीवन का गहना, आस यही कि भूल के खुद को, मन में तेरे छुप जाऊं, प्रीतम मेरे थाम लो आकर, मन की तुम लाचारी को, सुबह सुबह जो छू लेते हो, तुम इस तन की डाली को, प्रेम भरा आलिंगन करता, ज्यों भंवरा फुलवारी को, टूट गई सब लाज की गाठें, सदियों से थीं प्यासी रातें, मिलन के इस आवेश में भूली, करनी तुमसे कितनी बातें, राज सभी खुलते जीवन के, राग नए बजते हैं मन के, तुम ही कह दो थाम लूं कैसे, इस यौवन मतवाली को। सुबह सुबह जो छू लेते हो, तुम इस तन की डाली को, प्रेम भरा आलिंगन करता, ज्यों भंवरा फुलवारी को। प्रथम मिलन मधुमास की रातें, इतनी जीवन की सौगातें, तुम को पाया अब पाना क्या, सब पूरी मन की फरियादें, सब मधुमय है जीवन लय है, अमर हमारा ये परिणय है, तुमसे मेरा तन मन रोशन, भूल ही बैठी दीवाली को। सुबह सुबह जो छू लेते हो, तुम इस तन की डाली को, प

फेसबुक से दूर रहो

"फेसबुक चलाने वाली सभी माताओं और बहनों को। हमारा एक सुझाव है। आज फेसबुक पर कुछ ऎसे लोग मौजूद हैं। जिनका मकसद माताओं और बहनों को फ्रेंड बना कर उन्हें शोसित करना है। अतः आप सभी बहनों से मेरा हाथ जोड़कर निवेदन है। अपनी फ्रेंड लिस्ट सीमित रखें। या फिर किसी भी फ्रेंड के गलत कमेंट देखकर उन्हें तुरंत अपनी फ्रेंड लिस्ट से तुरंत ही ब्लॉक कर दें। किसी से भी किसी प्रकार की बहस ना करें। इस पोस्ट के माध्यम से हमारा सिर्फ एक ही मकसद है। कि हमारी सारी माताएं एवं बहने सुरक्षित रहें।" फेसबुक पर एक पोस्ट पढ़ी जो ऊपर दी गई है, जिसको पढ़े लिखे लोग शेयर करते है कि फ्रेंड्स न बनाओ, बात न करो, महिलाएं शेयर करतीं है पढ़ कर लगता है वो डरा रहीं हैं, औरत होने की सज़ा देने को उतारू हैं। हमेशा औरतों को बोला जाता है डरो, डरो डर कर रहो, घर से बाहर न निकलो, घूंघट करो, बात न करो, कुछ गलत हो तो छुपाओ, कोई गलत करे तो भी तुम्हारी गलती है। तुम औरत हो, तुम टुच्ची हो, तुम्हारी अस्तित्व की सीमा पुरुष है। तुम सिर्फ उसके सेवा के लिए हो, उसके लिये खाना बनाओ, पानी दो, कपड़े धोने का काम करो, परिवार सम्भालो, बच्चे

तुम्हारा चेहरा हैं चांद जैसा

तुम्हारा चेहरा हैं चांद जैसा, तुम्हारी जुल्फें घटा बनी है। दीवाने कट कट के गिर रहे हैं, तुम्हारी नजरें कज़ा बनी है। न्याय भला अब करेगा कैसे, इंसाफ का जो है देवता भी। उसकी नज़रों में तू ही तू एक, दिल की हसरत जवां बनी है। कहीं किसी दिन निकल न जाना, कोई कन्हैया मन हार बैठे, ये घाट यमुना के बहके-बहके, सुरा तुम्हीं से हवा बनी है। कोई नज़र में बसा हुआ है, मगर जहां को दिखाऊँ कैसे, कि कौन लेकर गया है चैना, ये साँसे किसकी सदा बनी है। हैं खेल दिल के बड़े ही निष्ठुर, जो चाहा उसको ही पाना मुश्किल, कोई बचाए हमें हमीं से, अब खुद की चाहत सजा बनी है। निगाह भर के न देख पाया, लो बीती अंतिम पहर मिलन की,   भला मैं कैसे ये चांद छू लूं, मेरी ये उलझन ख़ता बनी है।

न राधा सा प्रेम है कान्हा

न राधा सा प्रेम है कान्हा,  न मीरा सी मुझमें भक्ति। न उद्धव सा ज्ञान मैं जानूं,  बस एक जानू मैं आसक्ति। न अनुरागी, न वैरागी,  मन का मारा पाप का भागी। हे पतितों के पाप विनाशक,  हमको दो थोड़ी सी भक्ति। पुरुषों में तुम ही पुरुषोत्तम,  दीपों में भी सूर्य हो तुम हीं। पर्वत में तुम ही हिमालय,  नारी में माँ शक्ति हो तुम हीं। ध्वनि में तुम ओम हो केशव,  ज्ञान में विणापाणी तुम हीं। प्रेम में तुम राधा हो मोहन,  भक्ति में बजरंगी तुम हीं। रचनामयी तुम ब्रह्म विधाता,  नीलकंठ महाकाल हो तुम हीं। तुम भजनों में मीरा के पद,  नाम में सियापति राम हो तुम हीं। पुस्तक में गीता, रामायण,  वेदों का एक सार हो तुम हीं। जल में अमृत जल गंगा का,  मन के सब सुविचार हो तुम हीं। हे मनमोहन, हे गिरधारी,  हे जीवों के पालनहारी, हे नंदलाला, हे गोपाला,  मुरली मनोहर, तारणहारी, न उच्चारण, न कोई कारण,  न मन्त्रो की अभिव्यक्ति, हे पतितों के पाप विनाशक,  हमको दो थोड़ी सी भक्ति। न साधु सा धैर्य है मन में,  न वीरों का तेज है तन में, न प्रकृति सा परहितकारी,  न दीपक सा ध्येय जन्म में, न भजना, न तजना जानूँ,  पूज्य विधि न तप ही मानूँ, सब जी

कौन तुम?

महादेवी वर्मा जी की कविता "कौन तुम मेरे हृदय में " पढ़ने के बाद अचानक ये लाइनें लिख दी। फिर हफ़्तों तक रचना अपने पास रखी कि कहीं ये कॉपी तो नहीं हो गई। फिर ये सोच कर पोस्ट की कि उनकी कॉपी करना मेरे जैसे के लिए संभव ही नहीं। महादेवी जी को शत शत नमन। कौन, तुम जो, मन में मेरे, बन घटाएं, छा रहे हो। कौन तुम जो मुझको मेरी,  राह से भटका रहे हो। ऐसा लगता है मुझे फिर,  छोड़ तुम दोगे कहीं पर। इन अदाओं से मुझे क्यों,  ऐसे तुम भरमा रहे हो। कौन तुम जो मन में मेरे,  प्रेम का रस घोलते हो। कोयल कूँके बागों में ज्यों,  ऐसे ही तुम डोलते हो। क्षण-भंगुर इस जहान को,  स्वप्न सा महका रहे हो। प्रेम अमर, संगीत अमर है, गीत अमर ये गा रहे हो। कौन तुम जो मुझको मेरी,  राह से भटका रहे हो......। पल-प्रतिपल, क्षण-प्रतिक्षण,  दिल से बस ये आह निकले। साथ तेरा हो जो साथी,  जिंदगी की राह निकले। तुम ही जाने दिल को मेरे,  कैसे क्या समझ रहे हो। दिल में गहरे तीर से तुम,  बस उतरते जा रहे हो। कौन तुम जो मुझको मेरी,  राह से भटका रहे हो......। याद मुझको है अभी तक,  तेरा मेरा लघु मिलन वो। प्यासे दिल की शुष्क धरा पर, सावन की

तुम पारस मैं पाथर (e)

तुम पारस मैं पाथर कान्हा, तुम अमृत मैं विष हूँ घाना, ज्योति पुंज तुम, तम मैं पापी, दया का तेरे हूँ अभिलाषी। अधर्म धर्म मैं कुछ न जानूं, तुझको बस एक अपना मानूं, क्षमामूर्ति तुम, मैं अपराधी, दया का तेरे हूँ अधिकारी सहस्त्र नाम धारी तुम पालक, तुच्छ अहंकारी मैं बालक। हे! देवों के देव विधाता, मैं पतित, कुछ ज्ञान दो दाता। न गीता में तुम हो कान्हा, न वेदों में तुमको पाना। बंसी बजाते मुरली धर को, पा लूँ बस भोले गिरिधर को। तुम तो हो बस दया के सागर, प्रेम से भर देते हो गागर। मन ये शरण तुम्हारी चाहे, बनना प्रेम पुजारी चाहे। जन्म मरण से मुक्ति क्योंकर, मुझसे कहो मैं कान्हा चाहूं, बार बार तुमसे मिलने की, आस लिए घरती पर आऊं। न तप और न पूज्य विधाएं, कहता जग तुझको यूं पाएँ, मैं तो बस एक प्रेम ही जानू, चाहे तू आये न आये। शब्द कोई भी, गीत तुम्हीं हो, राग हो कुछ, संगीत तुम्ही हो, तुम हो प्रेम तुम्हीं अविनाशी, तुम्हीं सुदमाओ के साथी। अब तक जीवन व्यर्थ गवांया, माया को ईश्वर सा पाया। अब तो दया की आस जगी है, श्याम तुम्हारी प्यास जगी है। यमुना के मनो

जो तुम रहते...

हाल हमारे दिल का, देखो तो क्या हो जाता, जो तुम रहते जीवन में, मेरा प्यार सफल हो जाता। मन के भीतर और बाहर, एक रात सर्द थम जाती, जब तुम आती यूं लगता, हो धूप गुनगुनी आती। सब नीरवता धुल जाती जग नवल नवल हो जाता। जो तुम रहते जीवन में, मेरा प्यार सफल हो जाता। एक प्रेम की गंगा बहती, जो अविरल और अविनाशी, है अमर यही सदियों से, हो वृंदावन या काशी, जो जीवन में तुम आते सब धवल धवल हो जाता। जो तुम रहते जीवन में, मेरा प्यार सफल हो जाता। कई बार कहा था तुमको, न सोच की जग क्या कहेगा, खुद अपने मन की सुध लो, तेरे गम ये जग न सहेगा, ये बात समझ तुम लेते, सब कपट विफल हो जाता। जो तुम रहते जीवन में, मेरा प्यार सफल हो जाता। अब सत्य हुआ ही जानो, एक अनजाना जो भय था, है वक़्त जो ऐसा आया, शायद आना ये तय था। पर हाथ तुम्हारा होता, तम पार विकल हो जाता, जो तुम रहते जीवन में, मेरा प्यार सफल हो जाता। अब कौन करेगा मन में नव आशाओं की खेती, हर रात दिवाली थी जब, तुम साथ जब मेरे होती तुम बिन ये सावन सूखा, है नीरस जग हो जाता। जो तुम रहते जीवन में, मेरा प्यार सफल हो जाता।

एक खत- अनजाने भाई के नाम

मेरे प्यारे भाई, मुझे तुम्हारी कितनी जरूरत थी, कितनी जरूरत है ये शब्दों में आ जाये, ये संभव ही नही। तुम नही जानते कि एक बहन के दिल के अरमान क्या होते हैं। काश तुम मेरे छोटे भाई होते तो हमेशा तुमसे लड़ती लेकिन बहुत प्यार भी करती। तुम होते तो हर साल इस दिन मेरी आंखों से ये अरमान पानी बनकर नही निकलते। पूरे घर मे खूब हंगामा होता। किसी से लड़ना मेरा ऐसा अधिकार होता जिसको दुनिया की कोई ताकत नही छीन पाती। काश तुम मेरे बड़े भाई होते तो बहुत लाडली होती, खूब नखरे करती, खूब फायदा उठाती तुम्हारा, अपनी गलती पर तुम्हारा नाम लेकर बच जाती। पड़ौस में जब दोनों भाई बहन लड़ते हैं और दोनों मम्मी पापा से डांट खाते हैं तो तुम्हारी बहुत याद आती है। लेकिन, सोच कर क्या फायदा। तुम नहीं हो, तो नहीं हो। शायद मेरी आंखें हर साल इस दिन भीगने के लिए ही बनी है। अब क्या हो सकता है। जो है वो बदल नही सकता न। हे मुरलीधर, तुमने क्या समझा तुमने भाई नहीं दिया तो मैं हार जाऊंगी। याद है न वो राखी का दिन जिस दिन रोते हुए देखकर पता नही क्यों तुमको ही राखी बांध दी थी। अब तुम बचकर दिखाओ मुझसे। अब मुझे छोड़कर कहाँ जाओगे तुम, आखिर तुमको

मेरा दिन तुम्हारी रात ~नीलू

कहना है तुमसे बहुत कुछ,  लेकिन क्या करूँ, जब मेरा दिन होता है, तुम्हारी रात होती है। दिल मे बहुत सी बातें हैं, सोचती हूँ पल भर साथ बैठूँ, पर क्या करूँ, जब मेरा दिन होता है तुम्हारी रात होती है। सोचती हूँ तुमसे, घण्टों बातें करती रहूं, पर कब तुम्हारे पास मेरी, बातों के लिए टाइम होता है, अकेले खुद से बातें कर लेती हूँ, क्योंकि, तुम्हारे पास मेरे लिए वक़्त ही कहाँ है, क्योंकि, जब मेरा दिन होता है तुम्हारी रात होती है। सोचती हूँ बिताऊं छुट्टी वाला, पूरा दिन तुम्हारे साथ, मगर वो दिन भी तो तुम्हारी रात होती है। लिखना चाहती हूं बहुत कुछ, पर क्या करूँ, तुमसे मेरा लिखा भी पढ़ा नही जाता , शायद किसी और का लिखा भाने लगा है, क्योंकि, जब मेरा दिन होता है तुम्हारी रात होती है। सोचती हूँ, छोड़ दूं तुम्हारा साथ, पर मेरे सिवाय कोई संभाल भी तो नही सकता तुम्हें, दिल रोता है बहुत, अकेले में दिल शोर करता है, तुम्हीं से बात करने को, दिल को समझा लेती हूँ कि अभी तो, मेरा दिन है, और तुम्हारी रात है नीलू

कृष्ण कन्हैया

कृष्ण कन्हैया, मुरली बजैया, ओ गोपियन के रास रसैया, ओ मनमोहन, कान्हा प्यारे, पीड़ बड़ी हरो कष्ट हमारे। युग बीते पर तुम न आये, गीता में थे वचन सुनाए। मैं आऊं जब पाप बढ़ेगा, दानवता का ताप चढ़ेगा। मानवता संताप करेगी, विपदा जब भक्तो पर पड़ेगी। क्या अब भी कुछ कमी है बोलो, रोती सृष्टि आंखें खोलो। कब से आंखें तरस रहीं हैं, प्राणों की ज्योति सिमट रही है। आ भी जाओ दर्श दिखाओ, पाप हरो हमे सत्य दिखाओ। बहुत बढ़े प्रभु पाप हमारे, पीड़ बड़ी हरो कष्ट हमारे। पीड़ बड़ी हरो कष्ट हमारे। ~ नीलू

दिल की कलम से: #2 प्रेमचंद

तुमसे मिलकर

तुमसे मिलकर कुछ ऐसा, आज लगा फिर दिल को, हर बार ही ठोकर खाना, एक काम मोहब्बत का है। कोई तोड़ गया दिल उसकी, यादों में नीर बहाना, हर बार ही मन बहलाना, एक काम मोहब्बत का है जो झूठ लिए फिरते हैं, ऐतवार वो क्या समझेंगे, व्यापार है जिनकी फ़ितरत, प्यार वो क्या समझेंगे, जो चाह भरी थी मन मे, एक गीत बना गाया था, हैं तोड़ गए जीवन का, आधार वो क्या समझेंगे। पर प्रीत भी कैसे कह दे, वो निष्ठुर ही हैं माना, आंखों से छुप-छुप बहना, एक काम मोहब्बत का है। तुमसे मिलकर कुछ ऐसा, आज लगा फिर दिल को, हर बार ही ठोकर खाना, एक काम मोहब्बत का है हाँ जान गए क्यों तुमको, थी छूने की बेताबी, तुम तन के अनुरागी थे, मैं मन की थी अनुरागी, वो प्रीत ही क्या प्रियतम के, जो मन को ठेस लगाए, हो चाह जिसे बस तन की, वो मन को कैसे पाएं पर प्रीत को तुमने समझा, एक खेल ही है जीवन का, सपनो संग ही बह जाना, एक काम मोहब्बत का है। तुमसे मिलकर कुछ ऐसा, आज लगा फिर दिल को, हर बार ही ठोकर खाना, एक काम मोहब्बत का है।

दिल की कलम से: #1सफर

अगर कोई नया सफर शुरू करें और कुछ लोग उसमे आपको बुरा बोलें तो कोई चिंता की बात नही। क्योंकि आप जब कुछ करो तो 3 तरह के लोगो से सामना होता है एक वो होते है जो आपके साथ चलेंगे, आपको सहयोग देंगे और आपको आपकी मंजिल तक पहुंचने में सहयोग देंगे। दूसरे वो जो आपकी तांग खीचेंगे, आपको बुरा कहेंगे, आपकी अच्छी बातों को कमजोरी समझेंगे, आपकी निंदा करते रहेंगे लेकिन वो आपकी बुराइयां आपके सामने लाते रहेंगे, आपको आपकी कमजोरियां बताते रहेंगे। तीसरे तरह के लोगों 2 रूप है, एक बिना बात आपकी प्रसंशा करेंगे आपकी हर बात की चाहे वो गलत हो या सही, या आपकी उल्टी सीधी बुराइयां करेंगे जिनका आपसे कोई मतलब हो या न हो। ये वैसे ही होते है जैसे आजकल के सभी राजनीतिक पार्टियों के अंधभक्त टाइप लोग जो हर बात में आपको बड़ा महान दिखएँगे। और दूसरे वो जो बिना बात बुराई करेंगे हर बात को एक ही नज़र से देखेंगे कि आपको कैसे नीचा दिखाया जाए।  पहले तरह के लोग मित्र होते है ये कॄष्ण की तरह होते है जो आपको हर आपदा से हर परेशानी से बचा ले जाते है।  निंदक न्यारे राखिए... कबीर जी ने दूसरे तरह के लोगो के लिए कहा है। ये ही लोग हर महान आदमी के प

उमंग

तपती धरती, बारिश का इंतजार आह, आ गई फिर पुरवाई,  सावन की हौली सी रिमझिम, मस्ती सी जग पर है छाई। तन मन नाचे, छाये हैं घन, बिन बात ही देखो गाये ये मन, हर ओर हुआ कुछ ऐसा कि, खुद प्रकृति ने ली है अंगराई। आह, आ गई फिर पुरवाई। अब तो गीत नए पनपेंगे, फिर से होगी नई कहानी, वो दिख जाए तो खिल जाये, मुरझाई सी मेरी जवानी, है सब अरमा बहके शायद, मिट जाएगी अब ये जुदाई, सावन की हौली सी रिमझिम, मस्ती सी जग पर है छाई। आह, आ गई पुरवाई। बरसों बरसे, झूम के बदरा, मन का कोर रहा है सूखा, तपती धरती सा झुलसा मन, वृक्ष प्रेम का रहा है ठूँठा।  शायद अबकी सावन के संग, हो जाएगी प्रेम बुआई। सावन की हौली सी रिमझिम, मस्ती सी जग पर है छाई। आह, आ गई फिर पुरवाई। लगते हैं कुछ नए नए से, सावन भादौ हैं अनजाने, यौवन का ये असर है शायद, अबकी होंगे नए फ़साने, मेघों से दो बूंद गिरी और, तन, मन ने ली मादक अंगराई सावन की हौली सी रिमझिम, मस्ती सी जग पर है छाई। आह, आ गई  फिर पुरवाई। आ भी जाये तो कैसे मन, प्रियतम की पहचान करेगा, सखियों के संग बाग में पूरे, कैसे सब अरमान करेगा तन्हा बैठूँ वो आ जाये, भूल ही जाऊं सारी ख़ुदाई, सावन की हौली सी

हे मानव

कलयुग का ये समय कठिन है, मानव दानव से न भिन्न है। है घनघोर तिमिर सा छाया, दानवता ने शीश उठाया। अब हर ओर गुरु क्रंदन है, जो पापी उसका वंदन है। हे माधव! तुम तो कहते हो, घात न तुम जन पर सहते हो। हे राघव! क्यों भूल गए प्रण, हर हाल में हो शरणागत रक्षण? क्या शिव-शक्ति रूठ गई है? वाणी गीता की झूठ गई है? क्या अब वो अवतरण न होगा? क्या पापों का क्षरण न होगा? क्या अधर्म अब जीत सकेगा? अमर धर्म का दीप बुझेगा। क्या नारी की लाज लूटेगी, निंद्रा केशव की न खुलेगी? क्या भक्तो पर जुल्म ढहेंगे, शिव के न त्रिनेत्र खुलेंगे? जब राजा होंगे व्यभिचारी, ब्रह्मदंड की क्या लाचारी? नियम नए क्यों बने यहां हैं, त्रिशूल, चक्र, ब्रह्म छुपे कहाँ हैं? हे नरसिंह प्रह्लाद हितकारी! हिरण्यकश्यपु का दम्भ है भारी। पंचजन्य ललकार करो फिर, पिनांकी टंकार करो फिर। परशुराम फिर परशु उठाओ, हनुमान फिर पाप जलाओ। हे पुरुषोत्तम! टूट रही नित, मर्यादा के पाठ पढ़ाओ। हे कृष्ण! शिशुपाल बहुत हैं, सुदर्शन के दर्श कराओ। नीलकंठ विषपान करो फिर, जग को अमृत दान करो फिर। हे शक्ति! कुछ दान करो बल, अत्याचारी हो निशदिन निर्बल। वीणा से वो राग बजाओ, ज्ञान भर

तुम ही तुम

ये तुम्हारा रूप अद्भुत मन को लुभाएगा प्रिये, तुमसे मिलकर कोई मन को कैसे भायेगा प्रिये। नयन जड़वत हो गए, सरिता से चंचल जो थे, तुमको पाकर और कुछ मन, कैसे चाहेगा प्रिये। ज्ञान की बातों से कैसे, मैं तुम्हारा ध्यान कर लूं, कान्हा कैसे विश्व तुम्हारा, रूप दो नयनो मे भर लूँ, कैसे कर लूं घोर तप मैं, जो तुम्हारे ही लिए हो, कैसे मुरली भूल जाऊं, चक्र का क्यों गान कर लूं। हे मेरे श्याम सलोने, हे मुरलीधर, पद्मनाभ सुनो, तुमसे मुझको प्रेम का भी, ये मधुर अभिमान न दो, मैं का तम मन से मिटे मन, तुझको पायेगा प्रिये, तुमको पाकर और कुछ मन, कैसे चाहेगा प्रिये। सच कहा तुम बिन कठिन होगा ये जीवन का सफर सच कहा तुम बिन सजेगी न कभी यमुना की डगर, पर अगर देखो जरा तुम श्याम अपने ज्ञान से, तुमसे ये है सृष्टि सारी, तुमसे ही सब चर अचर, यशोदानंदन, हे गोविन्दम, हे माधव, गोपाल सुनो तुमसे मैं और मुझसे तुम, जो अलग करे वो ज्ञान न दो, प्रेम अगर जो न रहा, मेरा जीवन मिट जाएगा प्रिये, तुमको पाकर और कुछ मन, कैसे चाहेगा प्रिये। दीप का तो लक्ष्य बस एक, रोशनी का दान भर है, पथ कोई हो उसको तो बस रोशनी का मान भर है, प्रभु चरण, जीवन मरण ह

खौफ का नाम डोडेन (doden) अंतिम भाग 4

अभी तक अपने पढ़ा कि एक लैब में एक खतरनाक वायरस पर काम चल रहा है। उनके वायरस बनाने की तकनीक और उस वायरस के इस्तेमाल के लिए खुफिया मीटिंग चल रही है। हैपिंग आगे बताता है की अगर दुनिया ये मानने लगेगी की ये वायरस हमने फैलाया तो उससे बचने के लिए एक प्लान है जिसका क्रियान्वयन वक़्त के हिसाब से निश्चित होगा अब आगे देखते है कि क्या हुआ। तो आइए दोस्तों चलते है उसी मीटिंग में.... इस प्लान के तहत हम अपने कुछ छोटे शहरों में जिनमे आबादी की उम्र औसतन ज्यादा होगी में ये वायरस फैला देंगे। चूंकि इन शहरों में वैक्सीन यही लगी होगी इसलिए यहां वायरस ज्यादा तेज़ी से फैलेगा। इन शहरों का चुनाव इस वजह से किया जाएगा क्योंकि वहां की आबादी जल्दी ही नॉन प्रोडक्टिव आबादी में बदलेगी, ये आर्थिक सामाजिक किसी भी लिहाज से देश के लिए अच्छा नही है। ये सभी शहर विदेशी मीडिया के लिए खोल दिये जायेंगे ताकि वो भी यहां आकर अपनी आंखों से यहां के हालात देख लें। हमारी वैक्सीन और दवाई जो कि तैयार रहेगी से हम जितना हो सकेगा लोगों को बचाएंगे। लेकिन हमारा ये प्रयास रहेगा कि  हालात ऐसे हो जाये कि कोई भी हम पर अंगुली उठाने की बजा

शब्दों के सृजक

हे! नव उपमान, नए रूपक,  नव शब्दों के सृजक बोलो, काम देव के बाणों से भी,  कामुक शब्दों को खोलो। जो उपमान नहीं दोगे प्रीतम की, कैसे सुंदरता भायेगी, नित क्षीण होती ये सृष्टि,  कैसे सुंदर कहलाएगी। चाँद सितारों का फिर बोलो,  कौन अभिमान मिटाएगा, कौन प्रिया के मुख मंडल पर,  सौ-सौ चाँद लुटायेगा। कैसे सुबह की वो लाली,  होठों को दमकायेगी, कैसे कानो की वो बाली,  बिजली को धमकायेगी। कैसे सारी दीप्ति भुवन की,  उन नयनो से कम होंगी, कैसे इन मेघों की शक्ति,  उड़ती जुल्फों के दम होंगी। कैसे गीत सुनेगा कोई,  कोयल में, और निर्झर में,  कैसे संगीत सुनेगा कोई,  मेघों के क्रुद्ध गर्जन में। सारी मधुशालाओ के मधु से,  मन की प्यास न बुझ पाएगी, कैसे उन होठों को छूने से,  सारी तृष्णा मिट जाएंगी। कौन भला जो पीर का पर्वत,  पिघला कर गंगा कर देगा, कौन भला जो नयन नीर से,  सृष्टि में सागर भर देगा। कैसे कहो तो वनवासी एक,  मर्यादा पुरुषोत्तम होगा, कैसे कहो तो ज्ञान जो नीरस,  गीता सा उत्तम होगा। हो ब्रम्हा के मानस पुत्र तुम,  सृजन के तुम प्रणेता हो, अमर प्रेम के साधक तुम हो,  गीतों के रचियता हो। वाल्मीकि, तुलसी, काली,  तुम ह

शिला सा ये मन

है शिला सा ये मन, माना हमने प्रिये, लेख लिखने नया एक चले आइए,  प्रेम का सिलसिला जो हुआ ही नही, उसका आगाज है गौर फरमाइए। मेघ सी उड़ रही, है हवाओ में जो, इन बलाओं को, थोड़ा तो आराम दो, गर मोहब्बत प्रिये, मुझसे करते हो तुम, मेरी धड़कन को आओ जरा थाम लो बेसुरी हो रही, प्रीत की सरगमे, दिल को कोई नया गीत दे जाइये। प्रेम का सिलसिला जो हुआ ही नही, उसका आगाज है गौर फरमाइए। एक तेरी आरजू हमने की तो मगर, अपने मन पर मुझे एक हक़ दीजिये, तेरा फूलों सा तन, निर्मल गंगा सा मन, तुम हो मंजिल वही, रहगुजर दीजिये, मन तुम्हारा भी है, मन हमारा भी है, आग्रह प्रेम का बस, चले आइए। प्रेम का सिलसिला जो हुआ ही नही, उसका आगाज है गौर फरमाइए। कोई झंकार सा, है हृदय का गयन, नींद से बेखबर, हो गया अब शयन, न कोई आरजू, जैसे सब मिल गया,  कर लिया प्रीत ने, जब तुम्हारा चयन, मन के आंगन में स्वागत तुम्हारा प्रिये, स्वप्न में आइए, साथ खो जाइये। प्रेम का सिलसिला जो हुआ ही नही, उसका आगाज है गौर फरमाइए। तुम जो नाराज होंगे मुझपे सखे, मैं मना लूंगा तुमको यकीन तो करो, फूल का बिस्तरा, स्वप्न की ओढ़नी, मैं सजा दूं

खौफ का नाम डोडेन (doden) भाग 3

अभी तक अपने पढ़ा कि एक लैब में एक खतरनाक वायरस पर काम चल रहा है। उनके वायरस बनाने की तकनीक और उस वायरस के इस्तेमाल के लिए खुफिया मीटिंग चल रही है, अब आगे देखते है कि क्या हुआ। तो आइए दोस्तों चलते है उसी मीटिंग में.... इसके बाद हमारा अगला चरण शुरू होगा वो चरण हमे विश्व मे बहुत बड़ी छलांग देगा। हमारे जद में दुनिया के सभी बड़े देश होंगे। हैपिंग ने आगे बोलना शुरू किया। हमारी लैब पर बहुत से देशों की नज़र है इसलिए हमे ये भी दर्शाना है कि ये बीमारी किसी प्राकृतिक जगह से आई।  हमारे तटों पर एक दिन अचानक हज़ारो हज़ार मछलियां मरी पाई जाएंगी जिसका कारण पता नही होगा। वैज्ञानिक उसपर शोध करेंगे की क्या हुआ लेकिन उनको कोई कारण नज़र नही आएगा। इसकी खबर बहुत जोर शोर से प्रसारित की जाएगी वीडियो फ़ोटो, यहां तक कि विदेशी लोग भी जहां जा पाए ऐसी जगह भी ये सब होगा। ताकि इस खबर को विदेशी मीडिया में भी जोर शोर से स्थान प्राप्त हो। उसके कुछ ही दिनों बाद समुद्र के पास के जंगलों से कुछ जंगली जानवरों अजीब सी बीमारी की हालत में पकड़ कर लाये जाएंगे। और धीरे धीरे अनजानी बीमारी से वो मर जायेंगे। समुद्र में मछलियों का ऐसे पाया जा

खौफ का नाम डोडेन (doden) भाग 2

अभी तक अपने पढ़ा कि एक लैब में एक खतरनाक वायरस पर काम चल रहा है। उनके वायरस बनाने की तकनीक और उस वायरस के इस्तेमाल के लिए खुफिया मीटिंग चल रही है, अब आगे देखते है कि क्या हुआ। तो आइए दोस्तों चलते है उसी मीटिंग में.... ज्यादातर मामलों में प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस को पहचान लेती है इसलिए हमारा मकसद ऐसी स्थिति लाना है जिसमे लक्षण बहुत सामान्य हों और वायरस तब तक निष्क्रिय बना रहे जब तक उसकी संख्या बहुत ज्यादा मारक न हो जाये। ऐसे होने पर इसका फैलाव और शिकार बहुत ज्यादा बढ़ जाते है और यही हमारा मकसद है। डॉ चिंग ने आगे बताया। हमने इसका ऐसा नाम रखा है जो दहशत, खौफ का दूसरा नाम बनेगा। "डोडेन (Doden)" ये एक डेनिश शब्द है जिसका मतलब है मौत। किसी को शक न हो इसलिए सब काम ऐसे करना होगा जैसे सब नेचुरल तरीके से हुआ हो। ये वायरस किसी जानवर से इंसान में आया ये दिखेगा। हमने जिस वायरस की खोज की है उसको अधिकतम नेचुरल ही रहने देंगे बस ये कोशिश होगी की हम उसकी फैलने की क्षमता को बढ़ा सकें वैसे भी हमारा ये वायरस खुद ही बहुत ताकतवर है। ये एक बार फैलाना शुरू होगा तो इसको रोकना बहुत मुश्किल होगा। कई महीने

खौफ का नाम डोडेन (doden) भाग 1

工作进展如何?程医生一到就说。 工作将很快完成,相信我们,我们将处于领先地位。永志说。 导师的压力很大,我们必须在2019年底之前完成这个目标。程医生说。 是的,先生,一定会的。我们白天和黑夜都在做同样的事情。 听到在中国某城市的生物实验室中发生的这些事情,似乎正在制定一个宏伟的计划。 严格穿着军装穿着。科学家和博士几个月不能回家。似乎正在制定一个很大的计划。 अरे ये क्या ये तो चाइनीस भाषा मे टाइप हो गया, भले ये बात चीन के एक प्रयोगशाला में हो रही हो लेकिन मुझे लिखना तो हिंदी में ही है। सबसे पहले में ये बता दूं कि पूरी काल्पनिक कहानी है इसका किसी देश या भाषा या किसी अन्य चीज़ से कोई लेना देना नही यही। जगह का नाम किसी के लिए किसी पर्वग्रह को प्रदर्शित नही करता। चलिए शुरू से शुरू करते हैं। काम कैसा चल रहा है? डॉ चिंग आते ही बोला। जल्दी ही काम हो जाएगा, यकीन मानिए हम सबसे ऊपर होंगे। विंग ची ने कहा।  आकाओं का बहुत दबाब है 2019 के खात्मे से पहले हमे ये टारगेट पूरा करना है। डॉ चिंग ने कहा। जी सर बिल्कुल हो जाएगा। हम दिन रात यही काम कर रहे है। चीन में एक शहर में एक बायो प्रयोगशाला में होती ये बातें सुनकर लग रहा था कि कोई बड़ी योजना पर काम चल रहा है।  आर्मी जैसी दिखने वाली ड्रेस में सख्त पहरा। शायद ये आर्मी तो नही लेकिन किसी बड़े योजना में लगी टीम की इतनी सुरक्षा, वैज्ञान

गीत मिलन का

एक अजीज मित्र, जिनके हमसफर दूर कॅरोना के लॉकडाउन में फंस गए है, न वो आ सकते है न ये जा सकते हैं उनको समर्पित पंक्तियां। वो दिवस मिलन का आएगा,  रात भी उनके संग होगी, सब कह देंगी आंखें खुद ही, बात न लब से कुछ होगी। न तुम अहसास छुपाओगे, न वो जज्बात बताएंगे, सब कुछ खुद हो जाएगा, बस नीर नयन बहाएंगे, तुम उनके बिन कैसे तड़पे, वो हालातो से कैसे संभले, सब गम खुद ही बह बह कर, दिल का सब हाल बताएंगे। बस आज सखे ये थाम लो मन, उनके आंसू भी जान लो मन, तुम दुखी न हो, वो कहते नही, पर ऐसा नही वो सहते नही। सब मजबूरी कुछ हाथ नहीं, है भाग्य यही तुम साथ नहीं, पर प्रेम ने कब हारी है जंग तन दूर मगर मन, पास वहीं। ऐसे हालत न आये फिर, पल भर को दूर न जाएं फिर, एक बार मिलें साजन जो बस, बाहों में उम्र बिताएं फिर। ये मानो पल भर की दूरी, जीवन का पाठ पढ़ाएगी, हो प्रेम सुदृढ मन से मन का, तन का अहसास मिटाएगी। दुख के बदरा छट जाएंगे, सुख पूनम से चढ़ आएंगे, है अटल मिलन होगा अनुपम, नव गीत मिलन के गायेंगे।

तुमसे बेहतर

तुमसे बेहतर मुझको कोई,  आस भी हो, तो कैसे हो, बिना तुम्हारे दिल को कोई, प्यास भी हो, तो कैसे हो, कैसे हो कि तेरा मेरा,  मिलन जगत को भा जाए, तुम न हो और सारे जग का,  साथ भी हो, तो कैसे हो। गीत कोई मधुकर गाये तो,  मानो खिलने की तैयारी,  करके उपवन बाट जोहता,  कब पुष्पित हो फुलवारी। हर डाली है महक महक ज्यूँ,  प्रियतम को ही याद करे, आ भी जाओ, आ भी जाओ,  मृदुल, मधुर, मनुहार करे, बिना तुम्हारे इस जीवन की, शुरुआत भी हो, तो कैसे हो। तुम न हो और सारे जग का,  साथ भी हो, तो कैसे हो। तन्हा तन्हा, भोला भाला, खुशियों से अनजान था दिल, तुम न थे तो, तेरे बिना बस, कितना ये बेताब था दिल, जाम सभी फीके फीके से पीने में कुछ नशा न था तुमसे पहले शाम यही थी, दिल को कोई जंचा नही, बिना तुम्हारे, खुशियों की अब, बात भी हो, तो कैसे हो। तुम न हो और सारे जग का,  साथ भी हो, तो कैसे हो। दूर हटो कहकर कोई, कब हमको पास बुलाता था, रेशम सी बाहों में भरकर, कब हमको कोई सुलाता था, बिना कहे तुमने तो सारी, दुनिया की लीक पलट दी बस कुएं का प्यासे तक आना, तुमने रीत नई दी अब, बिना तुम्हारे प्रीत की नैया पार भी हो, तो कैसे हो। तुम न ह

तारों का मेला

मेहंदी लगाए, बिंदिया सजाए, हाथों में चूड़ी, कंगन, नज़रे झुकाए, घर में हुआ है मेरे तारों का मेला, आंगन में उतरी गोरी, घूंघट गिराए। तन का ये मंदिर, मन एक मूरत, जिसमे बसी है तेरी ही सूरत, आंगन ये  गोकुल, मन राधिका सा, कान्हा सी तुम और, मैं साधिका सा। मुझे एक बंसी सी, आवाज तो दो, जिसे गाये जीवन बस वो राग तो दो, मुझे कोई चाहत का अहसास न हो, मुझे बाद तेरे कोई प्यास न हो। हो सांसो की वीणा, हो अंगुली तुम्हारी, तेरा गीत धड़कन ये, गाए हमारी, मेरी प्यास समझो, ये अहसास समझो, मेरी आँख और मेरे अंदाज समझो। मुश्किल बहुत, तुमको ये सब बताना, सांसें तुम्हें तो चाहें, दिल में बसाना, मेरी आस, आहों की तुम ही सदा हो, तुम ही हो सजदा तुम ही खुदा हो। हाँ ये भी सच है तेरे लायक नही मैं, तूँ गीत वो है जिसका गायक नही मैं, मैं चाहता हूँ ये भी, कम कुछ कहाँ है, और बात है ये तेरी चाहत नही मैं। तुम ही कहो कैसे चाहत को अपनी, मैं रोक लूँ दिल की आहट को अपनी, तुम ही तो हो एक मंजिल हमारी, कैसे बिसराऊँ मैं इस राहत को अपनी। कैसे न तेरी ये यादों ने गाये, कैसे कहो मन, मेरा मान जाए। कैसे हो पूरे मन के सारे ये अरमान, देखो, जो देखे तु

मिलन की कहानी old

अपनी मोहब्बत की, है ये कहानी, पहली मिलन की वो संध्या सुहानी वो घूंघट मे तेरा, सुर्ख लाल चेहरा, शर्मो हया का था, हर ओर पहरा, वो घूंघट हटाकर, तुझे देखना बस, नजरो मे नजरे लिए बैठना बस, मोहबत मे तेरी मेरा डूब जाना, सांसों की गर्मी, तेरा पास आना,, लरजते हुए लब, तेरा हाथ थामे, दिल की बेताब धडकनो को सम्भाले, वो अह्सास पहला तुम्हारे लबो का, वो अंगुली का तेरी, छुअन से बहकना, उसी आवेश मे, दूर हटना तुम्हरा तेरा लडखडाना मेरा हडबड़ाना तुम्हारी कमर पकड़ लेना अदा सेते तेरा और मेरा कही खो जाना कहाँ से ये आई आवाज जगाने, मेरे ख्वाब का फिर से यूं ही टूट जाना। 

इन नैनो से

इन नैनो से नैन लगा कर, भूल ही जाऊं जग, कहता है, मन घायल इन दो नयनो से, तू पलको में हर पल रहता है रात, चांदनी, रजनीगंधा, दीप, पूर्णिमा, मावस भी तुम, इन जुल्फों का खेल है ये सब, जग को करती पागल भी तुम, तेरी एक मुस्कान पर प्रियसी, भूल ही जाऊं जग, कहता है, देख तुझे जग दीवाना होता, दोष मुझी पर एक रहता है। मन था पत्थर, पारस सी तुम, जीवन को चमकाने आये, शांत था ये मन, भावों के तुम, कई तूफान उठाने आये, मैं तो बस इस प्रेम में सब कुछ भूल ही जाऊं जग, कहता है, लूट लो मुझको, अपना कर लो, तुझमे ही तन मन रहता है। मयखाना भी शरमाता है, बहक बहक अक्सर जाता है, सबको कुछ भी होश कहाँ जब, जाम जाम से टकराता है, इन होठो पर होठ लगा कर, भूल ही जाऊं जग, कहता है, मन तो पागल है क्या सोचे, तू बस धड़कन में रहता है

हम मिलेंगे कभी

हम मिलेंगे कभी तुम यकीं तो करो, चांदनी सी हो तुम रौशनी तो करो, बिन तुम्हारे न रातें गुज़र पाएंगी, पास आऊं ज़रा आशिकी तो करो। मन के आंगन में कुछ यूं हुआ था पिये, तुमको देखा जमाना थमा था पिये, लो सजा लो मुझे, मेरे संसार को, है तुम्हारा हुआ दिल यकीं तो करो। थे बहुत दिल को कोई भी भाया नही, तुमसा दिल को किसी ने लुभाया नही, कब से जीवन था मेरा ये बेनूर सा, अपनी उल्फत से कुछ रौशनी तो करो। है मिलन की तुम्हें और हमें जुस्तजू, है मोहब्बत को बस एक तेरी आरजू, हसरतें जग रहीं, यूं तुम्हें देखकर, छू के मुझको खत्म बेकली तो करो। है कली सा बदन तुम भंवर बन सजन, फूल बन मैं खिलूँ कर दो ऐसा जतन, आज मेरी तरस पर, बरस जाओ तुम, पास आओ, न तुम दिल्लगी यूं करो। तुम तो वो जो जवानी में रंग भर गए, एक पल में ही जीवन हसीं कर गए, अब कोई खुशी हो या गम हो प्रिये, दूर जीवन की सारी कमी तो करो।

वो प्यार (e)

आज मुझको मेरी जिन्दगानी मिली, मेरे बचपन की छूटी कहानी मिली आज सपने वो फिर से जवां हो गए, मेरी खोई हुई फिर जवानी मिली। गीत कोई नया सा था बजने लगा, रंग फाल्गुन का फिर से था सजने लगा, जून की गर्मियों का ये मौसम कठिन, एक पल में ही सर्दी सा जमने लगा। उसके होठों में पल भर को चहकी हँसी, दिल पुराना समां फिर था गढ़ने लगा, देखने लग गया, भूल कर के जहां, जब्त आंखों में था, कतरा बहने लगा। पर मोहब्बत तो है इतनी मासूम सी, एक पल में ही जैसे था सब मिल गया, उससे नजरें मिलीं, मिल कर खुद झुक गईं, दिल को सांसो को फिर से रवानी मिली। आज सपने वो फिर से जवां हो गए, मेरी खोई हुई फिर जवानी मिली। उड़ती जुल्फों में थोड़ी सफेदी सी थी, चाल उसकी वही कुछ नशीली सी थी, उसको सब था मिला, बिन प्रथम प्रेम के दिल में छुपा कर रखी एक पहेली सी थी, थे बहुत भाव पर, दिल ये बेज़ार था एक जामाने से दिल मे छुपा प्यार था, सबकी बातें यही, क्या मिला क्या गया इस जमाने मे उल्फत का व्यापार था। आज तक है वही झुरझुरी झुरझुरी, छू लिया था बदन मरमरी मरमरी, खो गए थे नयन उन नयन में कहीं, फिर न महकी सी वो रातरानी मिली, उसके गालों पर उभरी थी लाली वही, उस

प्रतिध्वनि ईबुक

अपनी रचनाओं को किंडल ebook के रूप में और अपनी आवाज में कविताये कहानियां यूट्यूब पर पब्लिश करने के लिए हमसे जुड़ें। हम सब मिलकर ही आकाश की ऊंचाइयों को छू सकते है अकेले अकेले नही। हमारा मकसद है कि अन्य मंचो पर भी हमारी उपस्थिति दर्ज हो सके। उसके लिए हम निम्न तरीके से प्रयास करेंगे और अन्य साथियों का जो भी सुझाव होगा उसपर भी काम होगा। ये ईबुक की बात हो रही है बुक पब्लिश करना हर लेखक का सपना रहा है। पूर्व में ये काम पब्लिशर्स करते थे लेकिन उनके नियम बहुत अलग रहे। आप अगर फेमस हो, आपकी जान पहचान हो या बुक पब्लिश करने के पैसे लेकर आपकी बुक पब्लिश करेंगे।  हम और हमारे जैसे हज़ारो लोग इसकी वजह से पब्लिश नही करवा पाते। और सालों साल रचनाये डायरी में रखी रह जाती है और धीरे धीरे सब खत्म। लेकिन अब वर्तमान युग मे बुक का नया फॉर्मेट आया है ईबुक। जिसको पब्लिस करना आसान है और खर्चा न के बराबर है। ईबुक यानी इलेक्ट्रॉनिक बुक जिसको आप कैसे भी पढ़ सकटे है। मोबाइल, टेब, किंडल, कंप्यूटर या कहीं भी। अभी हम बात करेंगे किंडल की। किंडल एक अमेज़न की डिवाइस है जो देखने मे मोबाइल से बड़ी टेब की तरह होटी है ये सिर्फ रीडिं

कब से मन पर तुम छाए हो (e)

कब से मन पर तुम छाए हो, अब गीत मिलन के गा जाओ, कब से तेरी प्रीत का प्यासा हूँ, कुछ प्रेम सुधा बरसा जाओ। जबसे ये प्रीत मेरी जागी, अब दिल को कोई नहीं जंचता, तेरे होने की चाहत पर, अब कोई रंग नहीं फबता, कब तक दिल को यूं समझाऊं, तुम खुद आकर समझा जाओ। कब से मन पर तुम छाए हो, अब गीत मिलन के गा जाओ। महबूब हो मेरे या तुम बस, यूं ही कोई स्वांग रचाते हो, क्यों क्षण भर यूं आकर के तुम, जन्मों की प्यास बढ़ाते हो, क्या प्रीत में मेरी खोट कोई, गर है तो बस ठुकरा जाओ, कब से मन पर तुम छाए हो, अब गीत मिलन के गा जाओ। तुमको पाने का स्वार्थ नही, तुमको अर्पण की चाहत है, तुमसे कुछ भी पा लेना क्या, तुमको सब देना राहत है, तन मन अर्पण है तुमको ये, तुम आओ और अपना जाओ कब से मन पर तुम छाए हो, अब गीत मिलन के गा जाओ। ebook published  अभिव्यक्ति  सांझा काव्य संग्रह