असर ये कैसा इश्क़ का
असर ये कैसा इश्क़ का, जलने लगी बरसात, गीली गीली धूप हुई, ठंडी ठंडी आग। शीत दुपहरी जेठ की, जले पूस की रात, गीली गीली धूप हुई, ठंडी ठंडी आग। तुमसे जब हमको हुई, प्रीत तो बदले रंग, जीवन था ये अनमना, छाई नई उमंग। कैसे तुम रंगते प्रिये, स्वप्न धवल बेरंग, हो जाती है रोशनी, छुपती काली रात। असर ये कैसा इश्क़ का, पूर्ण सभी अहसास, गीली गीली धूप हुई, ठंडी ठंडी आग। कुछ भी हो बस एक तुम्हें, पा लेने की आस, आंखों से अब न बुझे, जीवन भर की प्यास। हुई सुनहरी जिंदगी, नाचा मन का मोर, आती जाती सांस ये करती तुमको याद, असर ये कैसा इश्क़ का, हरपल तुम ही पास, गीली गीली धूप हुई, ठंडी ठंडी आग। सारे जग का रहनुमा, नाचे जैसे काठ, सबको प्रियवर श्याम मिले, न बीते ये रात, सब हो जाये श्याममय, मन नाचे मस्त मलंग, गलियाँ सारी जी उठीं, नाचें यमुना घाट। असर ये कैसा इश्क़ का, रात हुई महारास, गीली गीली धूप हुई, ठंडी ठंडी आग। मन वैरागी सा हुआ, जग को बैठा भूल, तुम लौटे न युग गया, हुई है कैसी भूल, तरसे यमुना घाट सब, बंसी की आवाज, कान्हा तुमसे दूर सभी, फूल भी लगते शूल, मिलन में भी एक दर्द ये, छूटेगा फिर साथ गीली गीली धूप है, ठंडी ठंडी