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Showing posts from January, 2018

दिल की कलम से

अपनी कहानी, दिल की कलम से,  लिख मैं जो दूंगा, पढ़ न सकोगे। मेरी मोहब्बत की, तुम राजरानी,  लिख मैं जो दूंगा, पढ़ न सकोगे। किसने कहा कि, तुमको भुलाकर,  दुनियां नई हम, बसाने चले है, तेरे बिना कोई, हसरत नहीं है, कैसे कहें क्या, निभाने चले है। कैसे जुदाई ने, हमको रुलाया,  दुनिया ने क्या-क्या, सितम हमपर ठाया, वफ़ाएँ तुम्हारी, तेरा नाम लेकर, लिख मैं जो दूंगा, पढ़ न सकोगे। अपनी कहानी, दिल की कलम से,  लिख मैं जो दूंगा, पढ़ न सकोगे। है ये कैसा सफर, कुछ नहीं जानता मैं, न मंजिल न राहें, हूँ पहचानता मैं, मेरे हमसफर जो तेरा साथ न हो, ख़ुदाई, या रब को, नहीं मानता मैं। कि किसने चुराई, मेरी सांस मुझसे, कि किसने चुराई, मेरी प्यास मुझसे, जो तुझसे मिली, आखरी वो निशानी, लिख मैं जो दूंगा, पढ़ न सकोगे। अपनी कहानी, दिल की कलम से,  लिख मैं जो दूंगा, पढ़ न सकोगे। अमर प्रेम है हमने ऐसा सुना था, तुझे दिल ने पहली नज़र में चुना था, जो हमने सजाया वही बाग उजड़ा, कहाँ स्वप्न जो हमने मिलकर बुना था? किसने ढहाया है ये ताज दिल का, किसने उजाड़ा हसीन बाग दिल का, है किसने सजाई मोहब्बत की मैय्यत, लिख मैं जो दूंगा, पढ़ न सकोगे। अपनी कहानी

गणतंत्र

"हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की और एकता अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई० "मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी) को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं." ये वो पावन शब्द है जो भारत के संविधान के उस आदर्श को प्रस्तुत करते है जिसके अनुसार सिर्फ सिर्फ और सिर्फ भारत के लोगों ने सभी नियम, कानून, अधिकार, कर्तव्य, सब कुछ अपने लिए निर्धारित किये। ये संविधान किसी सत्ता, किसी शासक किसी पार्टी द्वारा देश मे लागू नही किया गया, ये स्वयं "हम भारत के लोग" द्वारा खुद पर लागू किया गया। यहाँ जनता के अलावा किसी और कि प्रधानता नही है।   लेकिन प्रस्तावना सिर्फ आदर्श स्थिति ह

कभी कभी बस करता है मन

कभी कभी बस करता है मन, मुझसे आंखें चार करो। नयनो का है, प्रणय निवेदन, नयनों से स्वीकार करो। हमने तुमको छुपकर देखा, राहों में रुक-रुक कर देखा, प्रेम रुग्ण अपने प्रेमी को, करते हो तुम बस अनदेखा, कभी कभी बस करता है मन, मुझसे बातें चार करो, नयनो का है, प्रणय निवेदन, नयनों से स्वीकार करो। इन स्वप्नों से इन नयनो तक, इन सांसों से इन प्राणों तक, इस वाणी से, इन कंठों तक, मन के विस्तृत अंत छोरों तक, कभी कभी करता है ये मन, सब पर तुम अधिकार करो। नयनो का है, प्रणय निवेदन, नयनों से स्वीकार करो। दुनियां के छल प्रपंचों ने, प्रेम में ये व्यवहार किया है, मन देना, मनचाहा पाना, नया प्रेम व्यापार किया है, कभी कभी बस करता है मन, मुझको अंगीकार करो, नयनो का है, प्रणय निवेदन, नयनों से स्वीकार करो। कब तक तुम यूं रार करोगे, प्रेम का तुम प्रतिकार करोगे, जीवन क्षणभंगुर ये जानो, व्यथ जीवन उपहार करोगे। कभी कभी बस करता है मन, छुप-छुप फिर इकरार करो। नयनो का है, प्रणय निवेदन, नयनों से स्वीकार करो।

जिंदगी क्या है, ताउम्र की तन्हाई है

चाँद तारे सब उतर आये हैं जमीं पर,  जैसे, ऊषा की लाली जमीं पर आई है, या खिला है इन्द्रधनुष ढ़लती सी शाम में, चारो तरफ ये कैसी, बेखुद खुमारी छाई है, सोच रहा हूं उनसे कहूँ, या चुप रहूं मैं, चुरा गये हैं वो दिल मेरा कैसे कहूँ मैं, नाम पता मालूम नही, एक मुस्कान है पहचान उनकी, बस उनकी यादें हैं और चारो तरफ तन्हाई है, उनसे शिकायत भी की, मिले वो हमसे जब, कब से इंतजार था, और आप आयें हैं अब, लगने लगा था तुम न आओगे फिर कभी, तेरे आने से अरमानों ने जिन्दगी पाई है, फिर मुलाकातें बढ़ी, दिल मिलते रहे, फूल खिलते रहे, कह न पाये हम, लव उनके भी खामोश रहे, मजबूर दिल ने किया तो कहना ही पड़ा हाल-ए-दिल उनसे, ऐसा लगा सारी दुनियां, मेरी बाहों में सिमट आई है। वक्त गुजरा, वादे हुए, कुछ कसमें खाई मैने उसने, ख्बावों की हसींन दुनिया, दिल में बसाई मैने उसने, हूई दुनियां हसींन थी, रंगीन जिन्दगी थी हुई, पर अजीब किस्मत खुदा ने मोहब्बत की बनाई है। बिछड़ गए हम उनसे मजबूरियों के नाम पर, आज खड़े हैं हम, एक ऐसे मुकाम पर, पल-पल तिल-तिल, घुट कर जी रहे हैं, मौत ने भी न आने की, शायद कसम खाई है। ये किस्सा नही सच्ची दास्तान है मो

चिड़ियां-रानी

चिड़ियां-रानी चिड़ियां-रानी, रोज कहाँ से आती हो। चीं-चीं-चीं करके, कितना शोर मचाती हो। पास मैं जब आता हूँ तेरे, तुम झट से उड़ जाती हो, चीं-चीं-चीं करके, कितना मुझे सताती हो। करो बात ओ चिड़ियां रानी, मुझको संग खिलाओ न, बार-बार यूं उड़-उड़-उड़ के, मुझको रोज सताओ न, चिड़ियां-रानी सबसे छुपकर, रोज कहाँ खो जाती हो? चीं-चीं-चीं करके, मुझको रोज रुलाती हो। चिड़ियां रानी क्या तुम मुझको, अपना दोस्त बनाओगी, पंख फैला कर आसमान में, उड़ना मुझे सिखाओगी, चिड़ियां रानी इतना ऊपर, तुम कैसे उड़ जाती हो? चीं-चीं-चीं करके, सपने नए दिखती हो। मेरी चिड़ियां-प्यारी चिड़ियां, कितने दोस्त तुम्हारे हैं। हरे, गुलाबी, नीले, पीले, रंग बिरंगे सारे हैं। इतने सारे सुंदर-सुंदर, रंग मुझको दिखलाती हो, आसमान में सबको लेकर, फुर्र-फुर्र तुम उड़ जाती हो।