राजनितिक मर्यादा
मुझे नही लगता कि यह सही है कि जेल से सब बुराई सीख कर निकलते हों और दिल्ली में भाजपा की CM candidate रही किरण बेदी जी भी इससे सहमत नही होनी चाहिए थी, मालूम नही अब शायद हों भी. क्योंकि आस्थाओं के साथ शायद विचार और सिद्धांत भी बदल सकते है, अन्यथा उनका पुरजोर विचार जेल को सजा के केन्द्र नही सुधार गृह बनाने के रहे हैं. मेरा कोई लालू जी के प्रति झुकाव ना कभी था न ही होगा. लेकिन सिर्फ विरोध के लिए सभी को एक साथ रखना किसी को भी शोभा नहीं देता कि सभी जेल जाने वाले बुराई ही सीखते हैं. क्या ये बात गांधी, भगत सिंह, सुखदेव इत्यादी हजारों देश भक्तों पर भी लागू हैं और आपातकाल में जेल गए भाजपा और सहयोगी दलों के नेताओं अटल जी, आडवानी जी पर भी. अच्छा इन सब को छोड़ दें तो क्या सभी पार्टींयों मे अभी के नेताओं पर तो लागू होगा ही जो जेल यात्रा कर चुके हैं. सिर्फ भाषण को चटपटा बनाने के लिये बहुत सी बातें कही जाती हैं या कहे "जुमला" कहे जाते है लेकिन प्रधानमंत्री जी को यह याद रखना सबसे जरूरी हो जाता है कि वह अब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नही हैं कि अपने भाषण को चटपटा बनाने के लिये कुछ भी बोल दे