Posts

Showing posts from December, 2019

ख़ता

तुम्हारी खुशबु बहका न दें मैं, कहीं कोई फिर खता न कर लूँ करीब जो इतने तुम आ गई हो, कही मैं तुमसे वफ़ा न कर लूं। खुद पर तो यकीन है मुझको, मगर दिल पर यकीन हो कैसे, तुम्हारी नज़रों में प्यार इतना, दुनिया को ही खफा न कर लूं। बहुत उदासी सी छा गई है, कहा है तुमने अब जाना होगा, चले गए जो तुम मेरे दिलबर, सांसो को मैं जुदा न कर लूं। नशीली आंखों में डूबा डूबा, करार दिल को बहुत है लेकिन, जुदाई तुमसे मिली जो मुझको, दुनिया को ही फना न कर दूं।

कैसे?

मैं जमाने को मेरा इश्क दिखाऊं कैसे जो हैं दुश्मन मैं उसे मीत बनाऊं कैसे। वो गया टूट मेरी चाहत का  सितारा देखो, मन के आकाश में फिर उसको सजाऊँ कैसे। फिर न आऊंगा तेरे दर पर, कसम है मुझको, बस बता दे तेरी गलियों से मैं जाऊं कैसे। और भी हैं तो सितम मुझपर ही ढा लो आकर, मुझको लत सी है तेरी, आदत ये भुलाऊं कैसे। रोज बह जाता हूँ खुशबू में घटाओं में तेरी, रोज आता है ये सैलाब, मैं बच जाऊँ कैसे। 09 दिसंबर, 2019 मैं जमाने को मेरा इश्क दिखाऊंगा कभी  जो है दुश्मन उन्हें दोस्त बनाऊंगा कभी  था गया टूट मेरी चाहत का सितारा एक दिन मन के आकाश में फिर उसको सजाऊंगा कभी  छोड़ जाता हूं तेरी खातिर तेरा दर मान मगर,  यहीं पर लौट मैं मेरा घर भी बनाऊंगा कभी। ओ सितमगर तेरा हर वार मुझे कबूल है पर, तेरी आदत को दिल से मैं भुलाऊंगा कभी । तोड़ दूंगा तेरी जुल्फों की इन जंजीरों को, कैद से तेरी खुद को मैं छुड़ाऊंगा कभी।