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Showing posts from February, 2022

ये जीवन है (भाग 1-3)

दोस्तों ये एक सत्य घटना पर आधारित कहानी है, जिसमे एक लड़के रवि और उसके जीवन में आये उतार चढ़ाव की कहानी है। ये कहानी बहुत से लोगों की हो सकती है, हमारी हो सकती आपकी हो सकती है। मेरा प्रयास है जीवन के संघर्ष को आपके सामने प्रस्तुत कर सकूं। आशा है कि आप लोगों को कहानी पसंद आएगी। रवि काफी सालों बाद अपने गाँव आया था। लंबे सफर के बाद यहां पहुंचे थे और जरा सा रिलेक्स हो रहे थे। कविता बहुत थक गई थी, लेकिन मोनू को आराम कहाँ। वैसे भी 5-6 साल के बच्चे नई जगह जाकर सोते नही हैं और जगह इतनी खुली खुली हो तो क्या कहने। थोड़ी देर बाद कविता समान व्यवस्थित कर ही रहे थी कि बाहर से मोनू के चिल्लाने की आवाज आई। कविता और रवि भागते हुए बाहर आये, देखा तो एक लड़का उससे बात करने की कोशिश कर रहा था। अजीब सी हरकतें पूरा चेहरे पर अजीब सा, मोनू शायद उसे अचानक देखकर बहुत डर गया था। कविता ने भाग कर उसे एक तरफ किया और मोनू को लेकर आ गई। लड़का उदास हो गया, शायद उसे बुरा लगा और लगभग पैर पटकते हुए वो वहां से भागने लगा। रवि ने उसे रोकना चाहा लेकिन वो मुंह बना कर भागता चला गया। उसके पीछे एक अधेड़ उम्र की महिला भी आ रही रवि ने उस

या तो इश्क़ का ये सरूर था

या तो इश्क़ का ये सरूर था, या तो हुस्न का ये गरूर था, वो गया बची है खलिश सी क्यों तेरे दिल में कुछ तो जरूर था। हाँ ये उल्फतों की दुकान एक, सुना प्यार भी यहां बिक रहा, बड़ी दूर तक ये गई खबर, यहां प्यार जिस्मों में दिख रहा, अब तो ढूंढती है नज़र महल, कभी प्यार में ये फिजूल था। वो गया बची है खलिश सी क्यों तेरे दिल में कुछ तो जरूर था। नया राग था जो बजा यहां, नया एक फसाना गढ़ा गया, नए चांद तारों की छांव में, वही इश्क़ फिर से पढ़ा गया, तू चली, थमी, फिर चली जहां, तेरी हर अदा में शुऊ'र था। वो गया बची है खलिश सी क्यों तेरे दिल में कुछ तो जरूर था। कुछ तो खत हैं सूखे गुलाब से, कोई याद जिसमे अटक गई, ये नई नई जो हैं महफिलें, कोई चाह बीती भटक गई, नए गीत बुनने की चाह थी, नई मंजिलों का फितूर था। वो गया बची है खलिश सी क्यों तेरे दिल में कुछ तो जरूर था।

तुम समझते नहीं

तुम समझते नहीं दिल की क्या आरजू, कैसे कितना कहे इश्क की जुस्तजू, तुम क्यों दिल पर मेरे हाथ रखते नहीं। क्यों मोहब्बत ये मेरी समझते नहीं, जान जलती है मेरी तुम्हारे लिए, आह भरती जवानी तुम्हारे लिए, बस तुम्हारे लिए सांस का सिलसिला, तुम क्यों बाहों में मेरी अटकते नहीं? तेरी जुल्फों का नभ पर अंधेरा हुआ, चांद छुपने लगा चांद दिखने लगा, मैंने दिल की ये धड़कन संभाली बहुत, तुम क्यों धड़कन में मेरी सिमटते नहीं? जो तारीफ होगी तो शरमाओगी, जो भी देखेगा उसके ही मन भाओगी, हुस्न का ही है बस तेरा छाया नशा तुम क्यों गलियों में दिल के भटकते नहीं। कुछ तो ऐसा भी हो जिसमें मैं तुम न हों, कुछ न तेरा मेरा, बस हम हम ही हों, गीत हों जो मेरे, तेरी आवाज हो, ये अहम दूर हम तुम क्यों रखते नहीं।