एक बाण पुष्प फिर मारो
एक बाण पुष्प फिर मारो, जो शिव को मारा तुमने, है प्रेम का सूखा जग में, कुछ अमृत रस बरसाओ, कितनी दूरी है उनसे, कितनी व्याकुल हैं सांसे, जन्मों की अगन है जैसे, निज नेह सुधा बरसाओ। है प्रेम जो सच्चा मेरा, तुमको पाना ही होगा, जो नयनो ने रच डाली, मुक्तक गाना ही होगा, ये माना जग की दूरी, है बीच में अपने आई, जब प्रीत बुलाएगी तो, तुमको आना ही होगा ये मान लो अब तो साजन, न हमको यूं तरसाओ, जन्मों की अगन है जैसे, निज नेह सुधा बरसाओ। सूख गई सृष्टि की, सब रसमय जो नदियाँ थीं, ठूँठ हुई हैं सारी, मधुमास में जो अमियाँ थीं, कौन जो तुमसे बेहतर, समझे इस मन की हालत, शुष्क हुई बह-बह कर, जो नयनो की नमियाँ थीं, सुनो मीत नहीं तो मेरे, शत्रु बनकर आ जाओ, जन्मों की अगन है जैसे, निज नेह सुधा बरसाओ। ओ साजन ये भी सुन लो, पहचान हो मेरी तुम ही, साँसों में आती-जाती, जीवन का नाम हो तुम ही, कुछ होने को हो जाये, पर सत्य यही मेरा है, काम तुम्हीं हो साजन, और धाम प्रेम का तुम ही, अब भूल के सारे जग को, आ बाहों में सो जाओ, जन्मों की अगन है जैसे, निज नेह सुधा बरसाओ।