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ओलंपिक में शर्मसार देश

दु:खित समाचार कि नरसिंह पर 4 साल का बैन, भारत की एक और पदक की आस टूटी। मगर ये आस उसी दिन टूट गई जब सरकार, मीडिया और नाडा ने एक तरफ होकर उनको खेलने की परमीशन दी। जबकि डोपिंग घटना के बाद सरकार की कोशिश उनकी जगह किसी और को भेजने की होनी चाहिए थी। मेरा ये कतई मतलब नहीं कि नरसिंह ने कुछ गलत किया लेकिन मेरा मानना है कि नाडा के बाद जब उसपर वाडा में सुनवाई होनी ही थी तो उनके वहां से क्लीयर होने के चांस 50% से ज्यादा नहीं थे, तो क्यों हमने 50% चांस पर गेम खेला क्यू नहीं सबस्ट्यूट की कोशिश की। ये किसी खिलाड़ी की बात नही देश के सम्मान की बात है। यह फैसला नाडा के फैसले की भी धज्जियां उड़ाता है। और यह भी बताता है कि भारत में नाडा कैसे और किस दबाब में फैसला लेती है। अगर कोई संस्था दबाब में गलत फैसला लेती है तो यह देश को शर्मसार करने के लिए काफी है। जबकि नाडा को वाडा से ज्यादा कठोर होना चाहिए ताकि हमेशा वाडा उसके फैसले को सकारात्मक रूप में बदले। कितना अच्छा होता कि नाडा बैन लगाता और वाडा उसे हटा देता। इससे हमारा सर ऊंचा होता की हमारे मानदंड कितने ऊंचे है। वाडा के फैसले से साफ है कि हमने जो दलीलें ना