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Showing posts from 2016

विकास और प्रकृति

कितने राजाओं के वैभव, कितने रंकों की झौपड़ियां धूल हुईं, कितने विकास की फुलझिड़यां, देख शमशान का मूल हुईं। क्यों-कर खेल रहा सृष्टि से, मानव का अधिकार नहीं है, सबसे अद्भुत रचना ब्रम्हा की, लेकिन तू भगवान नहीं हैं। यदा यदा हि धर्मस्य में, श्रीकृष्ण यही बतलाते हैं, जो बाधक बनते सृष्टि कर्म में, तो खुद वो उसे मिटाते हैं। हर तरफ क्रंदन मानव का, देख मेरा मन बहुत ही रोता, कैसा विकास किया हमने, ऐसा कहर है हमपर टूटा। जरा सी पलकों के हिलने से, देख तेरा क्या हाल हुआ है। सुन ध्वनि ये, बिचलित है पर, क्रोधित नहीं महाकाल हुआ है। मानवता का भविष्य सुरक्षित, प्रकृति से कर, बैर नही हैं, कर विकास प्रकृति के संग, वरना तेरी खैर नहीं हैं। --नेपाल भूकंप की पृष्टभूमि पर लिखी गई--

जिंदगी ऐसी मेरी जाने, गुजरती क्यों है?

रंज जिंदगी ऐसी मेरी जाने,  गुजरती क्यों है, तू अभी तक मेरी साँसों में उतरती क्यों है। अब भी है रंज मेरे दिल को,  तेरे खोने का, मेरे हालात पर ये दुनियां यू हंसती क्यों है। अब भी छा जाती है तू, यादों के तूफां की तरह, तुझको जाना है तो जा, जाके पलटती क्यों है। खत सभी तेरे जला डाले थे, उसी पल, लेकिन तेरी यादों की शमा, दिल में मेरे, जलती क्यों है। क्या हुआ है इस शहर को, ए मालिक मेरे, शाम सुऩसान सी, सहमी सी गुजरती क्यों है। सर ये अब भी, मैं झुकाता हूं तेरे दर पर आकर, अब मेरी रात तन्हा-तन्हा सी गुजरती क्यूं है।

मेरी हर साँस पर पहरा

मेरी हर साँस पर पहरा, मेरी हर आस पर पहरा। भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा। मैं क्या पहनूं, क्या न पहनूं, मैं क्या बोलूं क्या ना बोलूं, मैं कब हँस दूँ, हँसू कैसे, मैं क्या सोचूं, क्या न सोचूं, मेरी हर चाह पर पहरा, यहां हर आह पर पहरा। भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।। खाने पर, और पीने पर, मेरे चलने पर और रूकने पर, जगने पर और सोने पर, मेरे कुछ कर गुजरने पर, यहां एहसास पर पहरा, लगा क्यों ख्वाब पर पहरा। भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।। भला ये कैसी दुनियां है, जहां हर गलती मेरी है, नहीं उन नजरों पर बंधन, कहां कुछ हस्ती मेरी है, मेरी हर प्यास पर पहरा, मेरे ज़ज्बात पर पहरा। भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।। मेरी हर एक कहानी पर, बचपन पर जवानी पर, मुझे ही दोष देना है, उसे अपनी हैवानी पर, मै हूँ नन्ही, मगर मिलता, मुझे हर घाव है गहरा। भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।। मेरी हर साँस पर पहरा, मेरी हर आस पर पहरा। भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।

तू क्यू हैरान है क्यू परेशान है

सफर तू क्यू हैरान है क्यू परेशान है, जिन्दगी के सफर की ये पहचान है तू जो बीती उसी को बस सच मानता है, सच तो आगे भी है, तू बस अनजान है। क्या हुआ जो, तेरा दिल ये टूट गया, क्या हुआ जो, तेरा ख्बाव टूट गया सब कुछ मिलता नही ये भी सच्चाई है, वो तेरा न था जो तुझसे छूट गया। सबकी हसरत यहाँ तो अधूरी है बस, कहाँ सम्पूर्ण कोई इन्सान है... खुद ही सहने हैं गम के थपेरे सभी, कोई दुख में तेरा साथ देगा नही, खुद ही जाना तुझे पार मझधार के, थाम ले कोई, ये अक्सर होगा नहीं, जो तेरे साथ है, वो भी हो कि न हो, बस बदलना ही, वक़्त की पहचान है..... ये भी माना अंधेरा घना छा गया वो जो छूटा तुझे याद फिर आ गया, अच्छी यादों को दिल में बसा कर रखो, फेंक दो जो तुम्हारी हसीं खा गया, तेरे आगे है कल का सबेरा नया, तेरा चलना ही मानव, तेरी शान है.....

है तेरे नहीं बस की.....

1.  तुम मुझको भुला दोगे ये भी एक हकीकत है,  दिल तोड़ के जाना भी, है ढंग मोहब्बत का, हम लाख रहें तन्हा, तन्हाई में भी तुम हो, तेरा छोड़ के जाना भी, है रंग मोहब्बत का। तुम ही थे कभी आये, शरमाकर बाहों में., थे साथ चले तुम ही, ले हाथों को हाथों में उस शाम सिंदूरी पर, अब छाई उदासी है तुम कैसे भुला दोगे, वो संग मोहब्बत का। क्या होगा बिना तेरे, अंदाजा नहीं कुछ भी, यादें ही दिल में हैं अब ज्यादा नही कुछ भी,  इनको भी मिटाने को, सौ तीर चलाते हो, लगता है दिखा दोगे, हर रंग मोहब्बत का। सब हार के बैठा हूँ, तुम जीत गए सब कुछ, क्या क्या न किया लेकिन, है हाथ न आया कुछ, कहते हैं कि उल्फत ये, एक जंग ही होती है, मुझको भी सिखा दोगे, हर ढंग मोहब्बत का। 2. मेरे ख्बावों ख्यालों में, रंग बन तुम छाये हो, बंद आँख करू जब भी, तुम ही तुम आये हो, साँसों मे मेरे खुश्बू, अब तक वो तुम्हारी हैं, मैं कैसे मिटा दूं वो, अहसास मोहब्बत का। शब पर भी उदासी है, सांसों पर उदासी है, बिन तेरे सनम छाई, उपवन पर उदासी है, तुम क्रूर बहुत हो ये, लब से तो हैं कह देते, पर दिल ही समझता है, जज्बात मोहब्बत का। ये कैसी मोहब्बत थी, जिसको तुम

रंगत तेरी सूरत तेरी, कितनी भी अनमोल सही

रंगत तेरी सूरत तेरी, कितनी भी अनमोल सही, मेरे इश्क के आगे लेकिन, इसका कोई मोल नहीं। जब तक न छुआ हो भँवरें ने, फूलों पर है रंगत कब आई? परवाना हो कुर्बान न जब तक, शमा का कुछ मोल नहीं। जो भी कुछ था तेरा मेरा, उसको अपना कर लें आ, जीवन के इस इन्द्रधनुष में, रंग सुनहरे भर लें आ। जग से क्या लेना देना जब, मन से सब मंजूर हमें, मिटा के सब दिवार "मैं" की, प्रेम अमर ये कर लें आ। रूप का तेरे, जग में मेरे, इश्क बिना कोई मोल नहीं सब कुछ बिकता जग में लेकिन, बस मिलता बेमोल यही। रंगत तेरी सूरत तेरी, कितनी भी अनमोल सही। मेरे इश्क के आगे लेकिन, इसका कोई मोल नहीं। जीवन है अनमोल प्रिये ये, रूस्वा तन्हा (तन्हा-तन्हा) क्या जीना, सब कुछ मिटा कर ही तो, रंगत लाती है हिना। युग युग से जग ने दोहरायी, प्रेम कथा दिवानों की, साथ में हो जब जाम नयन के, मधुशाला जाकर क्या पीना। ...तो आऔ प्रिये खत्म करें ये, झगड़ा तेरा मेरा का.... चाहे जमीं हो चाहे गगन हो, इनका ही बस जलवा है तेरी सीरत मेरी उल्फत, सबसे है अनमोल यही, सादगी तेरी सबसे बड़ी है लेकिन, नेमत दुनियाँ में। इसके आगे जग झूठा 

ठान लो तो जीत है

जिन्दगी की बस यही तो, एक सरल सी रीत है, मान लो तो हार है और ठान लो तो जीत है।। कदमों में है, क्या समंदर, क्या शिखर, क्या आसमा, तेरी हद से कुछ नहीं, बाहर मेरे मन मीत है तू क्यूं हिम्मत हार बैठा, है भले दुष्वार ये, हर तरफ मुश्किल बड़ी, है कहां इनकार ये, जिन्दगी है नाम इसका, ये तो बदले हर घड़ी, कुछ मुकद्दर से नही, बस कर्म से साकार ये। हो भले ही प्यास उच्चतम, शुष्क सब संगीत है मान लो तो हार है और ठान लो तो जीत है।। खो गई मंजिल भले ही, वक़्त के इस धार मे , है नही मिलता सभी को, ये जहां उपहार में, जिसने उठ कर तोड़ डाले, है सभी बन्धन सफर के, उसके कदमो में झुके सब, जीत छुपी हर हार में। छा गया घनघोर तम पर, हाथ में एक दीप है, मान लो तो हार है और ठान लो तो जीत है।। कैसे छूटे राह वो जो, मंजिलो पर जा रही, मंजिलो से बस हवाए, महकी-बहकी आ रही, हो भले ही दूर लेकिन, रुक मै जाऊँ भी तो कैसे, मुझको पा लो बस यही, कह मंजिले बुला रही, सारा जग हो जाये रुस्वा, या टूटी सारी प्रीत है, मान लो तो हार है और ठान लो तो जीत है।।

दिल का ठिकाना याद है

यादें तेरी बाहों में मे रा , दिल का ठिकाना याद है, तू भले भूली, मुझे, गुजरा जमाना याद है। हमने खायी थी कसम ये, साथ जन्मो-जन्म का है, तू जिसे भूली, मुझे हर, वो फसाना, याद है। कौन कहता है जमाना ये, याद कुछ रखता नहीं, जग को तो अब तक हुआ जो, हर दिवाना याद है। तू भले माने न माने, प्यार तू समझी नही, तेरे दिल पर अब भी चलता, मेरे दिल का राज है। दिल न भूला आज तक वो, तुझसे मिलने का मजा़, तेरे दिल में भी अभी तक,  जगह मेरी कुछ खास है। तू भले समझे न समझे, दिल तेरा सब जानता है, गूंजती दिल में तेरे सुन, मेरी ही आवाज़ है। आज भी आया नहीं, इकरार वाला ख़त तेरा, घर मेरा उजड़ा हुआ बस, ये जहां आबाद है। किससे कहता दिल की बातें, मैं छुपाता ही गया, तू ही जब समझा नहीं, जग से क्या फिर आस है। कल मिले तो शर्म से खुद, झुक गई आँखें तेरी, तेरी नजरों को अभी तक, प्यार का अहसास है।

हँसती नजर

नजर हँसते हुए, फूलों में तू ही आ रही है। तेरी खुशबू ही, बागों को, यूं महका रही है। काफ़िर ना मुझे समझो, जहांन वालो यूं ही तुम, है मय़खाना, वो नजरों से, मुझे बहका रही है। वो सावन का खिला गुलशन, है महकाती हवाएं उसी की जुल्फों में बंधक ये बिजली ये घटायें, वही मस्ती में जुल्फें बस घनी, बिखरा रही है, है मय़खाना, वो नजरों से, मुझे बहका रही है। खुला आंचल यूं,  सरसों ने हो ली अंगराई. उसी की इक हँसी से, मस्ती फाल्गुन में है छाई, वही है जो, हमेशा दिल को, मेरे भा रही है, है मय़खाना, वो नजरों से, मुझे बहका रही है। नजर कातिल, असर कातिल, है बहका हर दीवाना, उसी की  छाँह, पड़ने से खिला, दिल का विराना, वही एक बस छटा बन कर, जगत पर छा रही है, है मयखाना, वो नजरों से , मुझे बहका रही है। ©"vishu"

मरता लोकतंत्र

यह नया भारत है, हमारा नया प्यारा भारत। जो लोग सहिष्णुता पर लम्बे लम्बे भाषण भोक रहे थे कहां हैं वो जो सहिष्णुता को हिन्दू मुस्लिम से जोड़कर देख रहे थे, कहां है वो जिनको सहिष्णुता कम होने वाले बयान देशद्रोह लग रहे थे। क्या लोकतंत्र में सरकार से सवाल करना देशद्रोह है। हम क्यों समाज को टुकड़ों में बाँटने में जुटे हैं, हम ये क्यों नहीं समझ रहे की किसी का भी किसी भी नेता का किसी धर्म को समर्थन देना सिर्फ उसकी अपनी स्वार्थ सिद्धि है; वो न किसी धर्म का हितैषी है, न समाज का, न ही देश का हितैषी। उसको सिर्फ अपनी कुर्सी से मतलब है। इसलिए आओ लोकतंत्र बचाओ, समाज बचाओ, घर बचाओ, खुद को बचाओ, और सबसे जरूरी देश बचाओ। नेताओं द्वारा झूठे भाषण देकर भूल जाना एक प्राचीन चलन है लेकिन इसमे नया अध्याय ये जुड़ा है कि अब साफ साफ बोल दो ये किसने बोला, यह तो सिर्फ भाषण को चटपटा करने के लिए बोला गया, अरे भाई चटपटा खाना होगा तो गली के बाहर के गोलगप्पे बाले से पैसे देकर खा लेंगे, चटपटा सुनना होगा तो फिल्मो, नाटको, सोशल साईट की कमी नही है। तुम देश चलाने के लिए वोट मांगने आये हो, कोई सामान बेचने नही, तुमसे ये उम्मीद न

ओलंपिक में शर्मसार देश

दु:खित समाचार कि नरसिंह पर 4 साल का बैन, भारत की एक और पदक की आस टूटी। मगर ये आस उसी दिन टूट गई जब सरकार, मीडिया और नाडा ने एक तरफ होकर उनको खेलने की परमीशन दी। जबकि डोपिंग घटना के बाद सरकार की कोशिश उनकी जगह किसी और को भेजने की होनी चाहिए थी। मेरा ये कतई मतलब नहीं कि नरसिंह ने कुछ गलत किया लेकिन मेरा मानना है कि नाडा के बाद जब उसपर वाडा में सुनवाई होनी ही थी तो उनके वहां से क्लीयर होने के चांस 50% से ज्यादा नहीं थे, तो क्यों हमने 50% चांस पर गेम खेला क्यू नहीं सबस्ट्यूट की कोशिश की। ये किसी खिलाड़ी की बात नही देश के सम्मान की बात है। यह फैसला नाडा के फैसले की भी धज्जियां उड़ाता है। और यह भी बताता है कि भारत में नाडा कैसे और किस दबाब में फैसला लेती है। अगर कोई संस्था दबाब में गलत फैसला लेती है तो यह देश को शर्मसार करने के लिए काफी है। जबकि नाडा को वाडा से ज्यादा कठोर होना चाहिए ताकि हमेशा वाडा उसके फैसले को सकारात्मक रूप में बदले। कितना अच्छा होता कि नाडा बैन लगाता और वाडा उसे हटा देता। इससे हमारा सर ऊंचा होता की हमारे मानदंड कितने ऊंचे है। वाडा के फैसले से साफ है कि हमने जो दलीलें ना

आओ राजनीति से देश को बचायें...

आज देश में राजनिति का स्तर दिन प्रतिदिन बहुत तेजी से गिर रहा है। देश के लोगों के बीच मनभेद पैदा किया जा रहा है। आज देश में दो ही तरह के लोग है एक तथाकथित रूप से देशभक्त हैं। जो 32% वोट के साथ देश के 68% लोगों को देशद्रोही साबित करने में जुटे हैं वो भी सिर्फ इस आधार पर क्योकि वो वैचारिक रूप से उनके समर्थक नहीं।, दूसरे वो सब जो उनके खिलाफ हैं, अगर राज्यवार देखा जाये तो महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, कश्मीर देशभक्त राज्य हैं इसी प्रकार दिल्ली, बिहार, बंगाल सबसे बड़ा देशद्रोही राज्यों में हैं। इन सभी को पाकिस्तान जाना चाहिए। भारत हमेशा से वैचारिक विभिन्नता वाला देश रहा है लेकिन कभी एक मत वाले ने दूसरों को देशद्रोही नहीं कहा। ऐसा होना निश्चित रूप से बहुत भयावह स्थिति की और संकेत देता है जो सामाजिक सहिष्णुता के कम होने पर बहुत विकराल रूप ले सकती है। हम उस स्थिति को क्यों ला रहे हैं, कौन है इसके पीछे? यह विशुद्ध रूप से राजनितिक फायदे को सौदा रहा है, सत्ता में  चाहे कोई भी हो उसने लोगों के सामाजिक, धार्मिक सौहार्द को दांव पर लगाकर हमेशा अपना मकसद पूरा किया है। क्योंकि 4 साल के सत

भारत और नदियों की दुर्दशा

निर्मल गंगा एक ऐसा स्वप्न है जिसके लिए भागीरथ जैसा तप जरूरी है और आज कोई कितना भी इनकार करे लेकिन सब "गंगा मईया" सिर्फ राजनितिक स्वार्थ के लिए ही बोलते हैं, मेरा यह कथन किसी पार्टी या किसी सरकार के पक्ष या विपक्ष में नहीं है। मैली नदियां स्वार्थ सिद्धि की ऐसी कामधेनू बन गई है कि जिसे कभी कोई स्वच्छ नहीं करना चाहेगा क्योंकि कोई सोने का अंडा देने वाले मुर्गी की बिरयानी नही बनाई जाती। सत्य मानिये तो आज तक नदियों की सफाई के नाम पर जितना अपार धन खर्च क्या गया है उसमे संपूर्ण गंगा को 2-4 बार दुबारा खुदवाया जा सकता था। कोई ये कहे कि सिर्फ 2 वर्ष में गंगा-यमुना या कोई नदी साफ होगी तो वर्तमान में यह असंभव है , अभी तो रिपोर्ट आने में ही सालों लगते हैं। उसके लिए इच्छा शक्ति चाहिए, वोट का मोह त्यागना होगा, कुर्सी का मोह छोड़ कर निर्णय लेने होंगे। जो हिम्मत न पिछली सरकारों में थी न इस सरकार में दिखती है। जैसे ही किसी भी नदी को साफ की बात आती है सब संस्थाऐं नदियों की गंदगी के मुद्दे को धार्मिक रंग देने लगती है ताकि लोग इसको लेकर उदासीन हो जाए। इसके लिए सब का पहला वाक्य है कि नदियों मे