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Showing posts from June, 2019

जुदाई का गम

तेरी जुदाई का गम, अब सहा नही जाता, जिंदगी तेरे बिना, अब रहा नही जाता। मौत आती नही, जिंदगी खफा सी है, तेरे न आने पर ये, चाँद भी नही भाता। शिकायत करूँ मोहब्बत में, मजबूर हूँ लेकिन, भरी है महफ़िल तुझे, बेवफा कहा नही जाता। तेरा आना नही मुमकिन, मेरा जाना भी नही, मगर मैं यादें मोहब्बत की, भुला नही पाता। तू जो आता भी है, आता है जलाने मुझको, मेरे हालत पर रहम, तुझको जरा नही आता। फरवरी, 2000

मेरा बचपन (e)

रंग-रंगीला, भोला-भाला, कितना प्यारा-प्यारा बचपन। खो न जाए बस डर रहता, मेरा प्यारा-प्यारा बचपन। कितने सारे खेल-खिलोने, कितनी सारी मेल-लड़ाई, कभी-कभी घर मे हंगामा, कभी हुई है खूब पिटाई। इतनी मीठी-मीठी यादों से, लगता न्यारा-न्यारा बचपन। खो न जाए बस डर रहता, मेरा प्यारा-प्यारा बचपन। ख़ूब खेलते घर आंगन में, और टूटते घर के बर्तन, शोर-शराबा खूब मचाते, छुटकी, मुन्ने को करते तंग। मां की गोद मे सर रख कर के, गुजरा प्यारा-प्यारा बचपन। खो न जाए बस डर रहता, मेरा प्यारा-प्यारा बचपन। कुछ तो है जो छूट रहा है, दिल मे कुछ-कुछ टूट रहा है, शोर-शराबा, खेल-खिलोने, मुझसे कोई लूट रहा है, वक़्त जरा तूँ सांस तो ले, थम तो जरा ओ आते यौवन। खो न जाए बस डर रहता, मेरा प्यारा प्यारा बचपन। ebook publish   अभिव्यक्ति  सांझा काव्य संग्रह 27 जून, 2019 साहित्य अंकुर नोएडा, 16 जुलाई, 2019 के अंक में प्रकाशित

ऐसे न आया करो

तुम चाँद सा ये चेहरा लेकर, छत पर ऐसे न आया करो। दिल से तुम न खेला करो, तुम सबको न भरमाया करो। जो छू लो तो आ जाएगी, ठूठों पर भी कोमल कोपल। जो हंस दो तो छा जाएगी, बेरंगी पर, रंगीली रौनक। चलती हो दिल बिछ जाता है, यूँ आँचल न लहराया करो। दिल से तुम न खेला करो, तुम सबको न भरमाया करो। जब इश्क़ हुआ तो न जाने, कैसे कैसे जज्बात बहे। तुमने जीवन झंझोड़ दिया, तूफान कई एक साथ सहे। दिल काली घटा से डर जाता, तुम जुल्फे न बिखराया करो। दिल से तुम न खेला करो, तुम सबको न भरमाया करो। है आग का ये दरिया लेकिन, मैं पार उतरना न चाहूं, डूबा हूं डूबा ही रहूं, मझधार उबरना न चाहूं, मुझको आंखों में रहने दो, तुम पलके ये न झुकाया करो। दिल से तुम न खेला करो, तुम सबको न भरमाया करो। 22 जून, 2019

हौसला

सब वक़्त के हाथों बस, हैं कठपुतली ये माना, तुम साथ तो चलते मेरे, थे शूल बहुत ये जाना, दो पल की अँधेरी आई, हम भटक गए लेकिन तुम, ये हाथ पकड़ ले जाते, जो राह सही, जहां जाना। टूटा है थपेड़ो से तन, लड़ता है, रो रो कर मन, था उस पल तुमने छोड़ा जब दुश्मन था ये जामाना। मुझको कोई रोष नही है, तेरा भी दोष नही है, हम ही नादान न समझे, क्या अपना है क्या बेगाना। माना कि देर लगेगी, बरसो अंधेर लगेगी, सीख जो तुमने दी है, उसको नही भुलाना। हूँ तन्हा पर चलना है, न मंजिल से टलना है, पा कर रहना है एक दिन, जो कुछ चाहा था पाना। 21 जून, 2019

जैसा बोया वैसा पाओ

किसी को यकीन हो कि ये केंद्रीय और राज्य सरकार मासूमो की मौत के प्रति जरा भी संवेदनशील है तो खबर पढ़ लीजिये कि मंत्री नेता कारों के काफिले में अस्पताल आ रहे है और माननीय मुख्यमंत्री हवाई जहाज में बैठ कर अपनी दिव्य दृष्टि से पीड़ितों का हाल जानेंगे। हमें और इनको चुनने वाले सब वोटरों को डूब मरना चाहिए। और इनको वोट देने वाले किसी के घर मे अगर कोई ऐसा हो रहा है तो माफ कीजिये मुझे कोई सहानुभूति नही ऐसे लोगो से। जो हुआ अच्छा हुआ, क्योंकि 70 साल से अनपढ़ चुन रहे हो हिन्दू मुस्लिम, जात पात के नाम पर और चाहते हो हॉस्पिटल। बनेगा बाबा, जरूर बनेगा, यकीन न हो तो सुनो, 2014 घोषणा हुई फिर 2015 में हुई, फिर उसी हॉस्पिटल की घोषणा 2019 में हुई। फिर 2020 में होगी फिर 2024 में शिलान्यास होगा, फिर 2025 में भूमि पूजन, फिर 5 साल में बनेगा, फिर 2029 में इलेक्शन से पहले उद्धघाटन, फिर 2034 में इलेक्शन से पहले डॉ की नियुक्ति होगी। तब तक बच्चो की मौत पर, बच्चो क्या इंसानियत की मौत पर तमाशा होंगा, tv पर TRP के हिसाब से न्यूज़ दिखाई जाएगी। मंत्री मौत से हुई मीटिंग में मैच का स्कोर पूछेंगे, सब मस्त चलेगा। नेता हवाई सर्वे

हसरत

तेरी हसरत पर ही खुद को मिटा देने की कसम, हमने खाई है तुझे अपना बना लेने की कसम। कुछ और अगर हों तो सितम कीजिये मुझपर, हर सितम तेरा पलकों पर उठा लेने की कसम। हमने खाई है तुझे अपना बना लेने की कसम। ए शमा तुझपर परवाने हैं फिदा न जाने कितने, तेरी ही आग में खुद को तपाने की कसम, हमने खाई है तुझे अपना बना लेने की कसम तेरी कसम कि तुझे अपना बना लेंगे एक दिन, एक हंसी पर तेरी दुनियां लुटा देने की कसम, हमने खाई है तुझे अपना बना लेने की कसम मई, 1998

कसम

अपनी हसरत पर ही, मुझको रुलाने की कसम, दिल ने खाई है मुझे खाक बनाने की कसम। कुछ और अगर हो तो सितम कीजिये मुझपर, खुद को तेरे ही हाथों से मिटाने की कसम, दिल ने खाई है मुझे खाक बनाने की कसम। जिंदगी तुझसे जुदा होकार जीना कैसा, तेरे बगैर ही खुद को जिलाने की कसम दिल ने खाई है मुझे खाक बनाने की कसम। हाल पूछा सभी से, मुझसे मुंह फेर लिया, हमें है हाल-ए-दिल किसी को न बताने की कसम, दिल ने खाई है मुझे खाक बनाने की कसम। तेरी कसमो की जंजीर में बंधा सा ये दिल, तेरी कसमो पर खुद को लुटाने की कसम। दिल ने खाई है मुझे खाक बनाने की कसम। सारी खुशियां मुबारक हो जहां भर की तुझे, तेरे दर पर फिर न लौट आने की कसम, दिल ने खाई है मुझे खाक बनाने की कसम। अप्रेल, 1998

नज़रें

तेरी नज़रें ये खेलती है, मेरे दिल से, मुझसे मिलती ही, शरमा के झुक जाती हैं, मैं जो देखूं तो ये देखतीं हैं औरों को, जो न देखूं तो मुझे देखने लगे जाती हैं। न तो वादा है, न कसमे, न बंधन है कोई, प्यार ये तेरा मेरा कैसा है न जाने सनम, तू जो खुश है, तो मैं भी बहुत खुश हूं यूं ही, चैन ये दिल को मेरे कैसा है, न जाने सनम, तुम जो ख्वाबो में भी मिलती हो, मिलते ही मगर, क्यों तेरी नज़रें शरमा कर के झुक जाती हैं। तेरी नज़रें ये खेलती है, मेरे दिल से। मार्च, 1997

आरजू

चूम लूँ तुझको, दिल मे बसा कर रखूं। आ मेरे पास तुझे, अपना बना कर रखूं। चाहता है ये जहाँ, तुझको जुदा कर दे मुझसे, आ मेरे पास तुझे, दिल मे छुपा कर रखूं। दिल मे जज्बात सभी, तुझसे है अब मेरे, मेरे दिन रात सभी, तुझसे है अब मेरे, तुझको पूजूँ, ख़ुदा, तुझको बना कर रखूं। आ मेरे पास तुझे, अपना बना कर रखूं। अब तो हर साज से, आवाज तेरी आती है, मैं हूँ तेरा, तूँ मेरी, धड़कन भी यही गाती है, बाहों में भर लूँ तुझे, दिल से लगा कर रखूं। आ मेरे पास तुझे, अपना बना कर रखूं। मुझसे जो मिल न सको, मुझको मिटा दो आकर, बिगड़ी किस्मत ये मोहब्बत की, बना दो आकर, कांटा लग जाये न, दिल अपना बिछा कर रखूं। आ मेरे पास तुझे, अपना बना कर रखूं। जून 1999

स्कोर क्या हुआ?

जून की भयंकर गर्मी जीवन को कितना मुश्किल कर देती है ये जानना हो तो भारत मे पहाड़ो को छोड़ कही भी आ जाइये। बिहार से गुजरात तक, पंजाब से कर्नाटक तक। पानी की कमी, लू और न जाने क्या क्या। और इसमे ही खबर आई बिहार में बच्चे मर रहे हैं। चमकी बुखार से। सभी अधिकारियों की नींद हराम हो गई। वित्त मंत्रलय ने हिसाब लगाया कि पिछले सालों में स्वास्थ्य मंत्रालय ने 100 करोड़ खर्च किये इस पर क्या हुआ। खबर लीक हो गई 100 करोड़ खर्च हुए। सब स्वेत पत्र लेकर मंत्री जी के पास हाज़िर हुए, डिटेल दी गई। सचिव: सर सबसे पहले 8 डॉक्टर आपकी अगुआई में यानी कुल तीस लोग यूरोप गए थे पंद्रह दिन के लिए। रिसर्च करने। उसमे खर्च हुए 3 करोड़ 88 लाख। मंत्री: 8 डॉक्टर, और  मैं 9 हुए न, बाकी 21 कौन? सर आपकी एक्सटेंडेड फैमली भी साथ थी न। ओह्ह अच्छा याद आया जब खूब मजा किया सबने। डॉक्टरो से रिपोर्ट आई कि नही क्या रिसर्च हुआ? सर आई, लिखा है समय कम मिलने के कारण रिसर्च अधूरा रह गया क्योंकि सिर्फ एक ही मीटिंग हो पाई वहां के डॉक्टरो से। बस एक मीटिंग 15 दिन में? मंत्री ने चौक कर पूछा। हाँ सर। बाकी दिन तो आपके साथ

विरह

तुम गीत कोई कह देते, मेरे स्वपनों में आकर, तो प्रेम मेरा और ये, योग सफल हो जाता। तुम झूठ ही कहते लेकिन, मुझको वरदान सा होता, तेरे मेरे मिलने का ये, संयोग सफल हो जाता। कितनी बीती रातों से, है नींद नही आंखों में, तेरी खुशबू अब तक है, मेरी थमती सांसो में, कल खत फिर तेरे देखे, फिर भीग गए वो सारे। दिल इतना रोया है कि, बह जाए सागर सारे। सूखी कलियों से आती, अब तक खुशबू है तेरी, तू सीने से लग जाती, दुनिया सज जाती मेरी, तू साथ जो होता मेरे, संताप विफल हो जाता। गुजर रही विरह में, मिलन सकल हो जाता। है धूप बहुत, छाया क्या, जीवन का ताप हरेगी, तेरी जुल्फों की यादें फिर, मन को बेताब करेगी। कोई साथ नही तन्हा अब, है दूर बहुत ही जाना। है रूठ गए साथी सब, कोई मंजिल है न ठिकाना। बिन तेरे इस दुनिया का, मैं क्या अरमान करूँगा। तू सारी खुशियां पाये, बस ये पैगाम कहूंगा हर हाल में हम जी लेते, पी जहर अमर हो जाता। गुजर रही विरह में, मिलन सकल हो जाता।

आओ फिर "जस्टिस फ़ॉर ..…...." मुहिम चलाये

एक और बच्चे की हत्या, फिर से वही कहानी, फिर से मोमबत्ती रैली। होना तो चाहिए कि सख्त सजा मिले लेकिन जब हम रेपिस्ट को, गुंडों को चुन कर मंत्री बनवा देते है, तो उनसे ये उम्मीद की सजा मिलेगी मन को भरमाना है। जब कोई खुद गुंडा हो अपराधी हो तो उनको बचाएगा ही। बस निकलते है मोमबत्ती लेकर। चलो मुहिम चलाते है जस्टिस फ़ॉर ..... नाम कुछ भी लिख लो क्या फर्क पड़ता है, इसलिए मैंने ...... लगा दिए। इससे पहले कितने मासूमो के रेपिस्ट को सजा हुई, जो अब होगी। और हां दिल पर हाथ रख कर कौन कौन ये कह सकता है कि वोट देते हुए उसने हिन्दू मुस्लिम, जाति, धर्म, पैसे, को देखकर वोट नही दिया? विधायक या संसद या पार्षद को उसके चरित्र को देख कर वोट दिया उसके काम को देखकर वोट दिया? यकीन मानिए हम सब दो दिन चिल्लायेंगे, बस फिर चुप, क्या हुआ आसिफा वाली मुहिम का? अरे नही यार वो तो मुस्लिम थी उसकी बात नही करते क्योंकि ये हिंदुस्तान है और मुस्लिम की बात करना देशद्रोह। तो मुजफ्फरपुर के  shelter home case को याद करिए, क्या हुआ, जिन्होंने दोषियों को बचाया, जो मंत्री थे, उनकी पार्टी चुनाव जीत गई है। तो यकीन मानिए कोई फर्क नही पड़ता सम

भुलाने की हद

तुमने भुलाने की, हद भी लज़ा दी, हम क्या मुड़े तूने, महफ़िल सजा दी। कितनी ही मंजिल, हम साथ तेरे तुम जो थके, छांव बनकर खड़े थे। नए रास्ते, और, नई मंजिलों ने बाहें फैला कर, हमको सदा दी। तुमने भुलाने की, हद भी लज़ा दी, हम बस मुड़े तूने, महफ़िल सजा दी। मेरी इस कहानी सी न, कोई हो कहानी, दुआ कभी रूठे न, कोई जिंदगानी, कितना ही टूटा, गया कितना लूटा, तेरी आरजू ने, क्या क्या सज़ा दी। तुमने भुलाने की, हद भी लज़ा दी, हम बस मुड़े तूने, महफ़िल सजा दी। सबने कहा था, मोहब्बत है धोखा, ख्यालो में खोने से, सबने था रोका, दिल ने तो समझा, है झूठी कहानी, मिल ही गई है, सजा इस खता की, तुमने भुलाने की, हद भी लज़ा दी, हम बस मुड़े तूने, महफ़िल सजा दी।