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तुम्हारे दिल में छोटा सा घर

तुम्हारा संगमरमर सा बदन मैं चूम लूं आओ, तुम्हें बांहों में लेकर के जरा मैं झूम लूं आओ, तुम्हीं तुम एक समाई हो, तुम्हें देखा है जबसे,  तुम्हारे दिल में छोटा सा, घर मैं ढूंढ लूं आओ। ये लंबी रात बहकी सी, तुम्हारा ही असर होगा, तुम्हारे जुल्फों में उलझा वो चंदा बेसबर होगा, ये देखो दिल है बेकाबू, ये अरमा भी नहीं थमते, तुम्हें दिल से लगा कर मैं, जरा सा झूम लूं आओ। तुम्हारा संगमरमर सा बदन मैं चूम लूं आओ, तुम्हें बांहों में लेकर के जरा मैं झूम लूं आओ। जुदाई का कोई सपना भी, आए न कभी मुझको, तुम्हारे बिन कोई अपना, भाए न कभी मुझको, तुम्हारी खुशबू से महके ये सांसें जन्मों-जन्मों तक तुम्हारा हाथ हाथों में, मैं लेकर चूम लूं आओ। तुम्हारा संगमरमर सा बदन मैं चूम लूं आओ, तुम्हें बांहों में लेकर के जरा मैं झूम लूं आओ। सफर कोई भी मंजिल का, बिना तेरे नहीं करना, इन होठों से जो पी ली अब, नशा कोई नही करना, ये मयखाने क्या जानेंगे, छिपा असली नशा किसमे, नशीली आंखों से पीकर इन्हीं में घूम लूं आओ। तुम्हारा संगमरमर सा बदन मैं चूम लूं आओ, तुम्हें बांहों में लेकर के जरा मैं झूम लूं आओ। कहीं ये नजरें न कह दें, कोई अफसान