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Showing posts from February, 2018

मन उद्वेलित कर देते हो

मन उद्वेलित कर देते हो, भर स्वप्नों में रंग देते हो, कुछ ऐसी आभा है तुममे, सब सम्मोहित कर देते हो, कुछ शब्दों में, बांध लिया है, सारा सागर साध लिया है, कितना सुंदर, कितना मनोरम, भावों को आकार दिया है, तुम सुंदर, मानोभावों जैसे गीत मनोहर कह देते हो, कैसे तुम गीतों में अपने, स्वप्नों से रंग भर देते हो, कैसे मैं कुछ कहूँ अब तुमको, जुगनू हम सूरज के आगे, तुम अपने सुंदर शब्दों से, निशब्द हमेशा कर देते हो।। महान गीतकार नीरज जी को समर्पित

इन आँखों की मस्ती में है

इन आँखों की मस्ती में है, दोनों जहां की जीवन रेखा, इन होठों की लाली, लेकर, शाम ढले आलम है मय का। कौन कहे क्या, बीत रही है, दीवानों की इस महफ़िल मे मेरा दिल जो कहना चाहे, बात वही सबके है दिल मे, गूंज गई है एक आह सी, लुटा कोश सांसो की लय का इन होठों की लाली, लेकर, शाम ढले आलम है मय का। हुआ चंद्र भी आज है लज्जित, रात पूर्णिमा है तो क्या है। तुझसे नजरें ना मिल जाये, इसी लिये जा चांद छुपा है, मेघराज  ने आज बजाया, बिगुल निरंतर तेरी ही जय का। इन होठों की लाली, लेकर, शाम ढले आलम है मय का। रूप ने कर सबको दीवाना, प्रेम अगन ऐसी भड़काई, बन परवाना झूम रहे सब, जल जाने की होड़ लगाई, जीवन तेरे नाम लिखा सब, नाश हुआ मरने के भय का, इन होठों की लाली, लेकर, शाम ढले आलम है मय का। ढल जायेगी कल ये जवानी, प्रीत मगर गुलजार रहेगी, पतझड़ आये या कोई आँधी, दिल मे बस आबाद रहेगी, साथ तुम्हरा मिल जाये बस फिर, फर्क मिटे, पराजय और जय का इन होठों की लाली, लेकर, शाम ढले आलम है मय का।

बस मोहब्बत करके तन्हा

बस मोहब्बत करके तन्हा, दिल भी है, और हम भी हैं। तू शमां जैसी, पतंगा दिल भी है, और हम भी है। इश्क़ करता जो न था तो, दिल मे कोई गम न था, मरघट सी थी एक उदासी, उमंग न थी, कोई रंग न था, दिल लगा कर हो गई, हर उदासी दूर सी थी। तू गई बस, अब तो तन्हा, दिल भी है, और हम भी है। तू शमां जैसी, पतंगा दिल भी है, और हम भी है। बस कहीं पर खो गए है, इश्क़ के जो दीप थे, आज कण-कण ढूंढ़ता हूं, स्वप्नों के जो सीप थे, हर तरफ बस एक रंग, तुमसे जुदा होकर हुआ है फाल्गुन में भी बेरंग, सा ये, दिल भी है, और हम भी है। तू शमां जैसी, पतंगा दिल भी है, और हम भी है। तुम मिले तो ये लगा कि, स्वपन को अधार मिला है, देर से ही हो मिला पर, स्वप्न ये साकार मिला है, पर कहानी मे कुछ ऐसे नियती ने गम को लिखा है, अब तो बस बेमौत जिन्दा, दिल भी है, और हम भी है। तू शमां जैसी, पतंगा दिल भी है, और हम भी है।

अच्छा वक्त सबका साथ।

जब तक कि हम खड़े थे, सब साथ चल रहे थे, गिरने लगे है जब से, सब साथ छोड़ते है, मेरे सामने वो जैसे, दुनियाँ को थे बनाते, वैसे ही अब मेरे जज्बात छेड़ते हैं। कैसे कहूँ की हमको, कोई साथ चाहिए बस, डूबते को तिनके की, वो बात चाहिए बस, जमाना क्या कहेगा, मुझको यही सुनाकर, किसी और ने बुलाया, बोला फिर मुस्कुरा के, बहकाते थे ज्यों सबको, धीमे से मुस्कुराकर, वैसे ही अब मेरे जज्बात छेड़ते हैं। वो भूलते की उनकी, हर बात का पता है, कैसे छुड़ाते पीछा, इस राज का पता है, हमसे वो सीधा कहते, अब साथ न चलेंगे, अब हो गए परेशां, तेरी राह न चलेंगे, बातें जो सभी से, करते थे मुँह बनाकर, वैसे ही अब मेरे जज्बात छेड़ते हैं।