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Showing posts from November, 2021

दिल मेरा तोड़ कर

दिल मेरा तोड़ कर जाने की तो आदत है तुझे, गैर को दिल से लगाने की तो आदत है तुझे। एक कही बात को सीने से लगाकर बरसों, राई से पर्वत बनाने की तो आदत है तुझे। कितनी हलचल है छतों पर मुहल्ले भर की, दिन ढले छत पर आने की तो आदत है तुझे। हर तरफ टूटे हैं, बिखरे हैं हज़ारों मोती, झटक कर जुल्फें सुखाने की तो आदत है तुझे। मै नए ख्वाब सजाऊँ तो सजाऊँ कितने, मेरा हर ख्वाब चुराने की तो आदत है तुझे। उम्र भर सुनता रहूं, हो नशीली सी ग़ज़ल तुम तो, दिल मे ये प्यास जगाने की तो आदत है तुझे। नज़र के जाम भी हैं होठों के हैं मयखाने भी, जग को बेबात लुभाने की तो आदत है तुम्हें। खो गईं खुशियां मेरी गम के तारानो में कहीं। मेरा गीत गम में डुबाने की तो आदत है तुझे। फिर नई सुबह, नया दिन, नई है शाम मगर, रात भर मुझको रुलाने की तो आदत है तुझे।

है तमन्ना आज तुमसे

है तमन्ना आज तुमसे, दिल की सारी बात कह दें, क्या इस दिल की आरजू, कैसी थी बरसात कह दें। कैसी झड़ियां लगी हुई हैं सावन बिन आंगन मेरे, तुम कहो तो आज दिल के, हम सभी जज्बात कह दें। तुमसे होना प्रीत मुझको, ये पुण्य कर्मों का रंग था तुमसे मिलना और बहकना, तेरी जुल्फों का ही फन था, आज सतरंगी हुई हैं, मरघट सी जो थी उदासी, हिलते होठों से ही फूटा, जीवन मे मेरे गयन था, हो रही हैं मन में हलचल, आज सब हालात कह दें है तमन्ना आज तुमसे, दिल की सारी बात कह दें, क्या इस दिल की आरजू, कैसी थी बरसात कह दें। हां सुनो, है सच यही बस, तुममें सारे गीत बसते, हां सुनो, संगीत मन के, तुममें ही हैं मीत बसते, सच यही कि तुमसे पहले हर डगर सुनसान सी थी, तुममें ही है हार सारी तुममें ही हैं जीत बसते सारे दिन अब साथ मे हों, जागें सारी रात कह दें, है तमन्ना आज तुमसे, दिल की सारी बात कह दें, क्या इस दिल की आरजू, कैसी थी बरसात कह दें।

भीख और लीज की आजादी

क्या कहा सन सैंतालिस की, वो आजादी भीख थी, क्या कहा मरकर मिली जो, वो आजादी लीज थी। लग रहा कि विष वमन करते हुए कुछ नाग हैं, लग रहा राजाओं के कुछ, पाले हुए ये घाघ हैं। लाख हो कटुता किसी से लाख ही मतभेद हों, पर कहो न जिसको सुनकर भारत माँ को खेद हो। ये हुआ तो वीरों का जो शीश अमर झुक जाएगा ये हुआ तो कौन भगत की पुण्य कथायें गायेगा। कौन बोस को खून देगा, कौन बिस्मिल फिर उठेगा, स्वर्ग में बैठे शहीदों का अमर फिर शीश झुकेगा। ओ कपूतों ज्ञान रख लो, अमर तिरंगा गान रख लो, दे गए खुद मर के हैं जो, उस विजय का मान रख लो।

तुम आ मिलना कान्हा

जीवन का अनुरागी स्वर जब, घुट घुट कर बहना चाहे, जीवन का अंतिम अवसर, कोई दीप नही जलना चाहे, घूमिल हों जब सब इच्छाएं, गीत जगत के बेसुर हों,  ओ कान्हा तुम आ मिलना, जब कोई नहीं मिलना चाहे। जब इस आभासी दुनिया में, भावशून्य सब हो जाए, जब ईश्वर का नाम कठिन, होठों पर मेरे थम जाए, दीप वो अंतिम प्रज्वलित हो, जब धूप धूम्र का ज्वार उठे, जब जीवन के अंतिम क्षण में, गूंज के सब चीत्कार उठे, मीत जो सच्चा बैठ निकट, कह झूठ ये मन छलना चाहे, ओ कान्हा तुम आ मिलना, जब कोई नहीं मिलना चाहे। जब अंतिम गीतों की अंतिम, पंक्ति का उच्चारण हो, जब सत्य झूठ और इस जीवन के, पापों का निर्धारण हो, जब जीवन सुर सारे बिखरें, एक अलौकिक झंकार उठे, मृत्यु सखी से अंतिम मिलन का, साँसों में जब ज्वार उठे, जब महामाया का मोह मुझे, सद्कर्म विमुख करना चाहे, ओ कान्हा तुम आ मिलना, जब कोई नहीं मिलना चाहे। जीवन में जो मिल न सका वो, शायद जीवन बाद मिलेगा, कर्मों का सब लेखा जोखा, मुझको यकीन हर हाल मिलेगा, पाप की जितनी बोई फसलें, पुण्य के जितने बीज गिरे, फलित वो होंगे ही आखिर, जीवन भर जो हैं कर्म किये, भोग लूँ सारे पाप के फल, जब पुण्य उदित होना