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Showing posts from August, 2020

कौन तुम?

महादेवी वर्मा जी की कविता "कौन तुम मेरे हृदय में " पढ़ने के बाद अचानक ये लाइनें लिख दी। फिर हफ़्तों तक रचना अपने पास रखी कि कहीं ये कॉपी तो नहीं हो गई। फिर ये सोच कर पोस्ट की कि उनकी कॉपी करना मेरे जैसे के लिए संभव ही नहीं। महादेवी जी को शत शत नमन। कौन, तुम जो, मन में मेरे, बन घटाएं, छा रहे हो। कौन तुम जो मुझको मेरी,  राह से भटका रहे हो। ऐसा लगता है मुझे फिर,  छोड़ तुम दोगे कहीं पर। इन अदाओं से मुझे क्यों,  ऐसे तुम भरमा रहे हो। कौन तुम जो मन में मेरे,  प्रेम का रस घोलते हो। कोयल कूँके बागों में ज्यों,  ऐसे ही तुम डोलते हो। क्षण-भंगुर इस जहान को,  स्वप्न सा महका रहे हो। प्रेम अमर, संगीत अमर है, गीत अमर ये गा रहे हो। कौन तुम जो मुझको मेरी,  राह से भटका रहे हो......। पल-प्रतिपल, क्षण-प्रतिक्षण,  दिल से बस ये आह निकले। साथ तेरा हो जो साथी,  जिंदगी की राह निकले। तुम ही जाने दिल को मेरे,  कैसे क्या समझ रहे हो। दिल में गहरे तीर से तुम,  बस उतरते जा रहे हो। कौन तुम जो मुझको मेरी,  राह से भटका रहे हो......। याद मुझको है अभी तक,  तेरा मेरा लघु मिलन वो। प्यासे दिल की शुष्क धरा पर, सावन की

तुम पारस मैं पाथर (e)

तुम पारस मैं पाथर कान्हा, तुम अमृत मैं विष हूँ घाना, ज्योति पुंज तुम, तम मैं पापी, दया का तेरे हूँ अभिलाषी। अधर्म धर्म मैं कुछ न जानूं, तुझको बस एक अपना मानूं, क्षमामूर्ति तुम, मैं अपराधी, दया का तेरे हूँ अधिकारी सहस्त्र नाम धारी तुम पालक, तुच्छ अहंकारी मैं बालक। हे! देवों के देव विधाता, मैं पतित, कुछ ज्ञान दो दाता। न गीता में तुम हो कान्हा, न वेदों में तुमको पाना। बंसी बजाते मुरली धर को, पा लूँ बस भोले गिरिधर को। तुम तो हो बस दया के सागर, प्रेम से भर देते हो गागर। मन ये शरण तुम्हारी चाहे, बनना प्रेम पुजारी चाहे। जन्म मरण से मुक्ति क्योंकर, मुझसे कहो मैं कान्हा चाहूं, बार बार तुमसे मिलने की, आस लिए घरती पर आऊं। न तप और न पूज्य विधाएं, कहता जग तुझको यूं पाएँ, मैं तो बस एक प्रेम ही जानू, चाहे तू आये न आये। शब्द कोई भी, गीत तुम्हीं हो, राग हो कुछ, संगीत तुम्ही हो, तुम हो प्रेम तुम्हीं अविनाशी, तुम्हीं सुदमाओ के साथी। अब तक जीवन व्यर्थ गवांया, माया को ईश्वर सा पाया। अब तो दया की आस जगी है, श्याम तुम्हारी प्यास जगी है। यमुना के मनो

जो तुम रहते...

हाल हमारे दिल का, देखो तो क्या हो जाता, जो तुम रहते जीवन में, मेरा प्यार सफल हो जाता। मन के भीतर और बाहर, एक रात सर्द थम जाती, जब तुम आती यूं लगता, हो धूप गुनगुनी आती। सब नीरवता धुल जाती जग नवल नवल हो जाता। जो तुम रहते जीवन में, मेरा प्यार सफल हो जाता। एक प्रेम की गंगा बहती, जो अविरल और अविनाशी, है अमर यही सदियों से, हो वृंदावन या काशी, जो जीवन में तुम आते सब धवल धवल हो जाता। जो तुम रहते जीवन में, मेरा प्यार सफल हो जाता। कई बार कहा था तुमको, न सोच की जग क्या कहेगा, खुद अपने मन की सुध लो, तेरे गम ये जग न सहेगा, ये बात समझ तुम लेते, सब कपट विफल हो जाता। जो तुम रहते जीवन में, मेरा प्यार सफल हो जाता। अब सत्य हुआ ही जानो, एक अनजाना जो भय था, है वक़्त जो ऐसा आया, शायद आना ये तय था। पर हाथ तुम्हारा होता, तम पार विकल हो जाता, जो तुम रहते जीवन में, मेरा प्यार सफल हो जाता। अब कौन करेगा मन में नव आशाओं की खेती, हर रात दिवाली थी जब, तुम साथ जब मेरे होती तुम बिन ये सावन सूखा, है नीरस जग हो जाता। जो तुम रहते जीवन में, मेरा प्यार सफल हो जाता।

एक खत- अनजाने भाई के नाम

मेरे प्यारे भाई, मुझे तुम्हारी कितनी जरूरत थी, कितनी जरूरत है ये शब्दों में आ जाये, ये संभव ही नही। तुम नही जानते कि एक बहन के दिल के अरमान क्या होते हैं। काश तुम मेरे छोटे भाई होते तो हमेशा तुमसे लड़ती लेकिन बहुत प्यार भी करती। तुम होते तो हर साल इस दिन मेरी आंखों से ये अरमान पानी बनकर नही निकलते। पूरे घर मे खूब हंगामा होता। किसी से लड़ना मेरा ऐसा अधिकार होता जिसको दुनिया की कोई ताकत नही छीन पाती। काश तुम मेरे बड़े भाई होते तो बहुत लाडली होती, खूब नखरे करती, खूब फायदा उठाती तुम्हारा, अपनी गलती पर तुम्हारा नाम लेकर बच जाती। पड़ौस में जब दोनों भाई बहन लड़ते हैं और दोनों मम्मी पापा से डांट खाते हैं तो तुम्हारी बहुत याद आती है। लेकिन, सोच कर क्या फायदा। तुम नहीं हो, तो नहीं हो। शायद मेरी आंखें हर साल इस दिन भीगने के लिए ही बनी है। अब क्या हो सकता है। जो है वो बदल नही सकता न। हे मुरलीधर, तुमने क्या समझा तुमने भाई नहीं दिया तो मैं हार जाऊंगी। याद है न वो राखी का दिन जिस दिन रोते हुए देखकर पता नही क्यों तुमको ही राखी बांध दी थी। अब तुम बचकर दिखाओ मुझसे। अब मुझे छोड़कर कहाँ जाओगे तुम, आखिर तुमको

मेरा दिन तुम्हारी रात ~नीलू

कहना है तुमसे बहुत कुछ,  लेकिन क्या करूँ, जब मेरा दिन होता है, तुम्हारी रात होती है। दिल मे बहुत सी बातें हैं, सोचती हूँ पल भर साथ बैठूँ, पर क्या करूँ, जब मेरा दिन होता है तुम्हारी रात होती है। सोचती हूँ तुमसे, घण्टों बातें करती रहूं, पर कब तुम्हारे पास मेरी, बातों के लिए टाइम होता है, अकेले खुद से बातें कर लेती हूँ, क्योंकि, तुम्हारे पास मेरे लिए वक़्त ही कहाँ है, क्योंकि, जब मेरा दिन होता है तुम्हारी रात होती है। सोचती हूँ बिताऊं छुट्टी वाला, पूरा दिन तुम्हारे साथ, मगर वो दिन भी तो तुम्हारी रात होती है। लिखना चाहती हूं बहुत कुछ, पर क्या करूँ, तुमसे मेरा लिखा भी पढ़ा नही जाता , शायद किसी और का लिखा भाने लगा है, क्योंकि, जब मेरा दिन होता है तुम्हारी रात होती है। सोचती हूँ, छोड़ दूं तुम्हारा साथ, पर मेरे सिवाय कोई संभाल भी तो नही सकता तुम्हें, दिल रोता है बहुत, अकेले में दिल शोर करता है, तुम्हीं से बात करने को, दिल को समझा लेती हूँ कि अभी तो, मेरा दिन है, और तुम्हारी रात है नीलू

कृष्ण कन्हैया

कृष्ण कन्हैया, मुरली बजैया, ओ गोपियन के रास रसैया, ओ मनमोहन, कान्हा प्यारे, पीड़ बड़ी हरो कष्ट हमारे। युग बीते पर तुम न आये, गीता में थे वचन सुनाए। मैं आऊं जब पाप बढ़ेगा, दानवता का ताप चढ़ेगा। मानवता संताप करेगी, विपदा जब भक्तो पर पड़ेगी। क्या अब भी कुछ कमी है बोलो, रोती सृष्टि आंखें खोलो। कब से आंखें तरस रहीं हैं, प्राणों की ज्योति सिमट रही है। आ भी जाओ दर्श दिखाओ, पाप हरो हमे सत्य दिखाओ। बहुत बढ़े प्रभु पाप हमारे, पीड़ बड़ी हरो कष्ट हमारे। पीड़ बड़ी हरो कष्ट हमारे। ~ नीलू