भक्ति
हैं कृष्ण ही संसार का प्रथम और अंतिम ज्ञान, जिसने इनको पा लिया, सृष्टि मिली तमाम। शिव ही है इस सृष्टि का, अंतिम शक्ति धाम, शिव द्रोही को न मिलें, शक्ति, कृष्ण या राम। शिव भी उस दुर्भाग्य का, कर न सकें उद्धार, जो राम से विमुख हुआ, डूबा वो मझधार। जीवन की इस नाव का, राम नाम पतवार, जिसने राम भुला दिया, कौन हो खैवनहार। शिव जो मानो दीप है, राम हैं पुण्य प्रकाश, एक दूजे से पूर्ण हैं , ज्यों धरती आकाश। बहुत गए कहने वाले, उनसे सकल संसार, रावण, हिरण्यकश्यप गया, बल जिनका अपार, करो तपस्या लाख या, घूम लो चारो धाम, सम फल चाहो नित्य भजो, रघुपति सीताराम।