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Showing posts from June, 2021

भक्ति

हैं कृष्ण ही संसार का प्रथम और अंतिम ज्ञान, जिसने इनको पा लिया, सृष्टि मिली तमाम। शिव ही है इस सृष्टि का, अंतिम शक्ति धाम, शिव द्रोही को न मिलें, शक्ति, कृष्ण या राम। शिव भी उस दुर्भाग्य का, कर न सकें उद्धार, जो राम से विमुख हुआ, डूबा वो मझधार। जीवन की इस नाव का, राम नाम पतवार, जिसने राम भुला दिया, कौन हो खैवनहार। शिव जो मानो दीप है, राम हैं पुण्य प्रकाश, एक दूजे से पूर्ण हैं , ज्यों धरती आकाश। बहुत गए कहने वाले, उनसे सकल संसार, रावण, हिरण्यकश्यप गया, बल जिनका अपार, करो तपस्या लाख या, घूम लो चारो धाम, सम फल चाहो नित्य भजो, रघुपति सीताराम।

हर ओर उदासी सी है

हर ओर उदासी सी है, तबियत भी बासी सी है। तुझे ढूंढ ढूंढ थक कर के, ये रात भी जाती सी है। कैसे समझाएं दिल को, कितना भरमाये दिल को, तुम दूर गए यूं लगता, ज्यूँ मौत भी आती सी है। घुटते अरमान विकल हैं, मधु के सब जाम विफल हैं, जो किंचित न विचलित हों, यादों के घाम प्रबल हैं, तुमसे मिलने को सदियों, हम जन्मों दौड़े आयें, हर हाल मिलोगी तुम ही, मन में अरमान अटल हैं। फिर भी एक दुख की छाया, मन को बहकाती सी है, तुम दूर गए यूं लगता, ज्यूँ मौत भी आती सी है। हर ओर उदासी सी है, तबियत भी बासी सी है। तुझे ढूंढ ढूंढ थक कर के, ये रात भी जाती सी है। जो गढ़ते थे बरसों से, वो मूरत जीवित पाई, मचल गया जिसपर दिल, वो सूरत तुमने पाई, मन में जब तेरी झांकी, जग का समझाना फांकी,  हर रात स्वप्न में तुम ही, हो अप्सरा बन आईं, पर मिलन हमारा दुष्कर, दुनिया समझाती सी है तुम दूर गए यूं लगता, ज्यूँ मौत भी आती सी है। हर ओर उदासी सी है, तबियत भी बासी सी है। तुझे ढूंढ ढूंढ थक कर के, ये रात भी जाती सी है। है दूर बहुत मंजिल पर, सबको जाना ही होगा, जो नियति ने लिख भेजा, उसको पाना ही होगा, हाँ कर्म बदल सकता सब, दुनिय

इश्क़ में डूबा था दिल

कुछ इश्क़ में डूबा था दिल, कुछ तुमने था बहकाया, हैं नींद से बोझल आंखें, मैं बरसों सो न पाया, जो गीत बहे आंखों से, वो गीत मैं कैसे गाऊँ, जो दर्द दफन सीने में, दुनियां से कह न पाया। तुमने मजबूर किया है, जीवन से दूर किया है, हम प्रेम में घुट घुट जीते, तुमने भरपूर जिया है, सारी खुशियों का सौदा, प्रेम से ही कर डाला, तुम अच्छे सौदागर थे, सौदा ये खूब किया है, हाँ ये भी सच जीवन का, है पाठ पढ़ाया सच्चा, प्रेम पर चढ़ तुम निकले, मैं प्रेम से बढ़ न पाया। हैं नींद से बोझल आंखें, मैं बरसों सो न पाया। जो गीत बहे आंखों से, वो गीत मैं कैसे गाऊँ, जो दर्द दफन सीने में, दुनियां से कह न पाया। हम प्रेम को समझे जीवन, तुम प्रेम को चांदी सोना, बस तोड़ दिया तुमने दिल, था जैसे एक खिलौना, कहो प्रेम का कैसे कोई, नव गीत गढ़ेगा फिर से, दो पल का हँसना बन जाये, जीवन भर का रोना, देखो पल भर में टूटे, जो स्वप्न सजाए हमने, दिल मे चुभते नश्तर से, नव स्वप्न मैं बो न पाया। हैं नींद से बोझल आंखें, मैं बरसों सो न पाया। जो गीत बहे आंखों से, वो गीत मैं कैसे गाऊँ, जो दर्द दफन सीने में, दुनियां से कह न पाया। खिल जाएंगी बागों में, फिर फू