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Showing posts from February, 2023

P277 कौन है आई

फाल्गुन की मादकता पर जैसे, अल्हरता सावन की छाई, पतझड़ में बागों का खिलना, कौन जो सावन बन कर आई। किसने सबका मन भरमाया, किसने बदली रीत जगत की, मन शंकित शायद ये भ्रम है, उतर स्वर्ग से कौन है आई। कौन है वो किसने फैलाया, अजब नशा सा पूरे जग पर, अमर प्रेम की नव परिभाषा, सुंदरतम लिख दी है नभ पर, गजब हुए हालात हैं मन के, ले ली सपनों ने अंगराई। मन शंकित शायद ये भ्रम है उतर स्वर्ग से कौन है आई। मंच पर आभासी दुनिया के, मरुस्थली प्रपात का दिखना, शाम ढले छत पर मद्धिम सा, तेरा और कभी चांद का चढ़ना, इतने सारे भ्रम की दुनिया, प्रेम तुम्हारा एक सच्चाई। मन शंकित शायद ये भ्रम है उतर स्वर्ग से कौन है आई। सुदरतम रचना के जैसी, भावोत्तम कथना के जैसी, निश्छलता प्रकृति की पूरण, मादकता मदनी के जैसी, कैसे संभव एक तुम में ही, भर दी सृष्टि की तरुनाई। मन शंकित शायद ये भ्रम है उतर स्वर्ग से कौन है आई। मन से पिघल गया है सारा, जो संताप भरा जग ने था, मिटती सारी पीड़ा मन की, मिटता ताप जो मन में था, ऐसी शीतल इन केशों की, बदली है जीवन पर छाई मन शंकित शायद ये भ्रम है उतर स्वर्ग से कौन है आई।

P278 कुछ नया सा हुआ

कुछ नया सा हुआ इश्क में रात भर, प्यार से दिल मेरा भींगता ही रहा, तुम बहुत दूर थे, पर तेरा दिल मुझे, अपनी बाहों में बस खींचता ही रहा। थे बहाने बहुत तुम ही आए नहीं, मेरे सपनों को पर रोक पाए नहीं, तेरी यादों में बस दिल मेरा बेखबर, सदियां बीती मगर रीतता हो रहा। तुम बहुत दूर थे, पर तेरा दिल मुझे, अपनी बाहों में बस खींचता ही रहा। तुमसे बेहतर मेरे इश्क का रहनुमा, न मिला और न कोई मिलेगा कभी, कैसे हो ये भला स्वप्न मैं तोड़ दूं , दिन जो निकला नयन मींचता ही रहा तुम बहुत दूर थे, पर तेरा दिल मुझे, अपनी बाहों में बस खींचता ही रहा। पास जब थे, मेरे तब भी क्या पास थे, खोए खोए तुम्हारे सब अहसास थे तुम तो मुंह फेर कर बस सताते रहे, मैं तुम्हें बाहों में खींचता ही रहा। तुम तो मुंह फेर कर बस सताते रहे, मैं तुम्हें बाहों में खींचता ही रहा।