ख्वाब बुनता रहा
ख्वाब बुनता रहा, सुन तुम्हारी सदा, आरजू मन की सब, आरजू ही रही। इश्क़ में डूब कर, बात ऐसी हुई, जिंदगी भर तेरी ज़ुस्तज़ु ही रही। मुझसे कहने लगी मेरी वीरानियाँ, इश्क़ कैसा भला तूने किससे किया, जो मिला न तुझे, एक पल के लिए, किसको तूने भला था ये दिल दे दिया। तुझको पाया नहीं, तुझको खोया नहीं। जिंदगी में तेरी एक कमी ही रही इश्क़ में डूब कर, बात ऐसी हुई, जिंदगी भर तेरी ज़ुस्तज़ु ही रही। कैसा आघात था जो हुआ नेह पर, फूल कांटे बने, जो बिछे सेज पर, धड़कनो की ध्वनि, प्रीत की रश्मियां, जग कुचलता रहा वक़्त की रेत पर, कुछ भी बाकी नहीं जो कहूँ तुमसे मैं, रात बोझिल नयन में नमी ही रही, इश्क़ में डूब कर, बात ऐसी हुई, जिंदगी भर तेरी ज़ुस्तज़ु ही रही। कुछ नया सा हुआ अब नई भोर है, गीत भी हैं नए, अब नया दौर है, चाहतें पर वही दिल में मेरे दबी, हैं उड़ानें नई और नई डोर है कितना चाहा जरा भी पिघली नहीं, बर्फ किस्मत पर मेरी जमी ही रही। इश्क़ में डूब कर, बात ऐसी हुई, जिंदगी भर तेरी ज़ुस्तज़ु ही रही।