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Showing posts from October, 2021

ख्वाब बुनता रहा

ख्वाब बुनता रहा, सुन तुम्हारी सदा, आरजू मन की सब, आरजू ही रही। इश्क़ में डूब कर, बात ऐसी हुई, जिंदगी भर तेरी ज़ुस्तज़ु ही रही। मुझसे कहने लगी मेरी वीरानियाँ, इश्क़ कैसा भला तूने किससे किया, जो मिला न तुझे, एक पल के लिए, किसको तूने भला था ये दिल दे दिया। तुझको पाया नहीं, तुझको खोया नहीं। जिंदगी में तेरी एक कमी ही रही इश्क़ में डूब कर, बात ऐसी हुई, जिंदगी भर तेरी ज़ुस्तज़ु ही रही। कैसा आघात था जो हुआ नेह पर, फूल कांटे बने, जो बिछे सेज पर, धड़कनो की ध्वनि, प्रीत की रश्मियां, जग कुचलता रहा वक़्त की रेत पर, कुछ भी बाकी नहीं जो कहूँ तुमसे मैं, रात बोझिल नयन में नमी ही रही, इश्क़ में डूब कर, बात ऐसी हुई, जिंदगी भर तेरी ज़ुस्तज़ु ही रही। कुछ नया सा हुआ अब नई भोर है, गीत भी हैं नए, अब नया दौर है, चाहतें पर वही दिल में मेरे दबी, हैं उड़ानें नई और नई डोर है कितना चाहा जरा भी पिघली नहीं, बर्फ किस्मत पर मेरी जमी ही रही। इश्क़ में डूब कर, बात ऐसी हुई, जिंदगी भर तेरी ज़ुस्तज़ु ही रही।

मेरे हर गीत में तुम हो

मेरे हर गीत में तुम हो,  ये दूरी क्यों बढ़ाई है, हैं मेरी आंख में आंसू,  तुम्हारी याद आई है, कि तुझसे दूर होकर के अभी तक इश्क़ रोता है, जमाना हो गया रूठे कभी मिलने तो आ आओ। कभी तुमसे ही रौनक थी, कभी तुमसे ही रोशन थी, जो रातें आज तन्हां हैं, जो गलियां आज सूनी हैं, मोहब्बत आज भी तन्हा,  मोहब्बत आज तक रुसबा, तेरी ही याद में डूबा, कभी तो दिल पर छा जाओ, जमाना हो गया रूठे कभी मिलने तो आ आओ। मुझे इन चाँद तारों की, कभी हसरत नही थी पर, मुझे दिलकश नजारों की, कभी चाहत नही थी पर, तुम्हारी चाह में कितना,  नयापन आज भी देखो, नए अरमान में डूबे, नए कुछ गीत गा जाओ, जमाना हो गया रूठे कभी मिलने तो आ आओ। कभी कहने नहीं देती, मोहब्बत की है मजबूरी, बहुत लंबी हुई देखो, जो अपने बीच थी दूरी, नया है आज फिर सूरज, नई रातें नया चंदा, जो बीती भुलकर उसको, गले फिर से लगा जाओ। जमाना हो गया रूठे कभी मिलने तो आ आओ।

सरकारों की असंवेदनशीलता

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सरकारें कितनी असंवेदनशील हो सकती हैं इसका उच्चतम उदाहरण अनेको बार सामने आया है। आज से 10 साल पहले भी  सैनिकों के शहादत पर सांसद कह देते थे कि सैनिक मरने के लिए ही तो नौकरी करते हैं इसकी इनको तनखाह मिलती है, और कालांतर में वो लोग मंत्री बन जाते हैं। इसमें वर्तमान सरकार को ही दोषी मानना बिल्कुल सही नहीं, इसमें हर कोई शामिल है, केंद्र की सरकार हो या राज्य की सरकारें हो, पंचायत हो, सब इसमें शामिल हैं। अफसरों की संवेदनशीलता खासकर वो अफसर जो जनता के सम्पर्क में आते हों वो कितने भी छोटे पद पर क्यों न हों लेकिन उनके झोपडी को मकान, मकान को बंगला बनते कितना समय लगता इसकी जानकारी किसको नही? हर भारतीय कभी न कभी इसका स्वाद ले ही चुका हैं। नोट बंदी, बिना गरीबो की सुध लिए लॉकडाउन लगाना, इसका ताजा उदाहरण हैं जिनसे देश की 85% आबादी किसी न किसी रूप में बुरी तरह प्रभावित हुई। इसका ताज़ातरीन उदाहरण गंगा में बहती लाशें है जिनको किसी भी वजह से दफनाया गया हो लेकिन ये दृश्य कितना विभत्स था इस बारे में लिखना मुश्किल है लेकिन इन सब बातों से आधुनिक राजाओं पर कोई फर्क नही पड़ता कोई कितना भी जनहित की बात करे लेकिन उ