शिकवा

तेरी हर आरज़ू, चाहत,
तेरे अहसास से शिकवा।
मेरे दिल में बसी तेरी,
सुहानी याद से शिकवा।
तुम्हारे खत भी रखते थे,
अभी तक वो वही पर है।
किया क्यों इश्क़ यूँ तुमसे,
मुझे इस बात से शिकवा।

मोहब्बत ही मोहबत थी,
तुम्हारा साथ जब से था।
मेरे अहसास में तुम थे,
मेरा अहसास जब से था।
मगर अब क्या करूँ तुमने,
चली वो चाल कि दिल को,
जमाने से मुझे है बस,
मेरे जज्बात से शिकवा।
तेरी हर आरज़ू, चाहत,
तेरे अहसास से शिकवा।

हाँ तेरी वो अदाएं, भोलापन
वो दिल को था भाया।
मैं सब कुछ भूल कर,
तेरे भरोसे कहां चला आया।
मगर अब कोई साथी न,
कोई है रास्ता, मंजिल,
किसी से क्या मुझे तो बस,
मेरे विश्वास से शिकवा।
तेरी हर आरज़ू, चाहत,
तेरे अहसास से शिकवा।

कोई भी कुछ कहे लेकिन,
मुझे अब गम नही होता।
तेरे यूं दूर जाने का,
यकीन हमदम नही होता।
मैं क्यों जिंदा, मैं क्यों तन्हा,
मुझे कुछ तो बता ओ रब।
मुझे तो खुद से है, और है,
मेरे हालात से शिकवा।
तेरी हर आरज़ू, चाहत,
तेरे अहसास से शिकवा।

Comments

Popular posts from this blog

अरमानों पर पानी है 290

रिश्ते

खिलता नही हैं