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Showing posts from December, 2016

विकास और प्रकृति

कितने राजाओं के वैभव, कितने रंकों की झौपड़ियां धूल हुईं, कितने विकास की फुलझिड़यां, देख शमशान का मूल हुईं। क्यों-कर खेल रहा सृष्टि से, मानव का अधिकार नहीं है, सबसे अद्भुत रचना ब्रम्हा की, लेकिन तू भगवान नहीं हैं। यदा यदा हि धर्मस्य में, श्रीकृष्ण यही बतलाते हैं, जो बाधक बनते सृष्टि कर्म में, तो खुद वो उसे मिटाते हैं। हर तरफ क्रंदन मानव का, देख मेरा मन बहुत ही रोता, कैसा विकास किया हमने, ऐसा कहर है हमपर टूटा। जरा सी पलकों के हिलने से, देख तेरा क्या हाल हुआ है। सुन ध्वनि ये, बिचलित है पर, क्रोधित नहीं महाकाल हुआ है। मानवता का भविष्य सुरक्षित, प्रकृति से कर, बैर नही हैं, कर विकास प्रकृति के संग, वरना तेरी खैर नहीं हैं। --नेपाल भूकंप की पृष्टभूमि पर लिखी गई--

जिंदगी ऐसी मेरी जाने, गुजरती क्यों है?

रंज जिंदगी ऐसी मेरी जाने,  गुजरती क्यों है, तू अभी तक मेरी साँसों में उतरती क्यों है। अब भी है रंज मेरे दिल को,  तेरे खोने का, मेरे हालात पर ये दुनियां यू हंसती क्यों है। अब भी छा जाती है तू, यादों के तूफां की तरह, तुझको जाना है तो जा, जाके पलटती क्यों है। खत सभी तेरे जला डाले थे, उसी पल, लेकिन तेरी यादों की शमा, दिल में मेरे, जलती क्यों है। क्या हुआ है इस शहर को, ए मालिक मेरे, शाम सुऩसान सी, सहमी सी गुजरती क्यों है। सर ये अब भी, मैं झुकाता हूं तेरे दर पर आकर, अब मेरी रात तन्हा-तन्हा सी गुजरती क्यूं है।

मेरी हर साँस पर पहरा

मेरी हर साँस पर पहरा, मेरी हर आस पर पहरा। भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा। मैं क्या पहनूं, क्या न पहनूं, मैं क्या बोलूं क्या ना बोलूं, मैं कब हँस दूँ, हँसू कैसे, मैं क्या सोचूं, क्या न सोचूं, मेरी हर चाह पर पहरा, यहां हर आह पर पहरा। भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।। खाने पर, और पीने पर, मेरे चलने पर और रूकने पर, जगने पर और सोने पर, मेरे कुछ कर गुजरने पर, यहां एहसास पर पहरा, लगा क्यों ख्वाब पर पहरा। भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।। भला ये कैसी दुनियां है, जहां हर गलती मेरी है, नहीं उन नजरों पर बंधन, कहां कुछ हस्ती मेरी है, मेरी हर प्यास पर पहरा, मेरे ज़ज्बात पर पहरा। भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।। मेरी हर एक कहानी पर, बचपन पर जवानी पर, मुझे ही दोष देना है, उसे अपनी हैवानी पर, मै हूँ नन्ही, मगर मिलता, मुझे हर घाव है गहरा। भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।। मेरी हर साँस पर पहरा, मेरी हर आस पर पहरा। भला ये कैसी दुनियां है, जहाँ हर बात पर पहरा।

तू क्यू हैरान है क्यू परेशान है

सफर तू क्यू हैरान है क्यू परेशान है, जिन्दगी के सफर की ये पहचान है तू जो बीती उसी को बस सच मानता है, सच तो आगे भी है, तू बस अनजान है। क्या हुआ जो, तेरा दिल ये टूट गया, क्या हुआ जो, तेरा ख्बाव टूट गया सब कुछ मिलता नही ये भी सच्चाई है, वो तेरा न था जो तुझसे छूट गया। सबकी हसरत यहाँ तो अधूरी है बस, कहाँ सम्पूर्ण कोई इन्सान है... खुद ही सहने हैं गम के थपेरे सभी, कोई दुख में तेरा साथ देगा नही, खुद ही जाना तुझे पार मझधार के, थाम ले कोई, ये अक्सर होगा नहीं, जो तेरे साथ है, वो भी हो कि न हो, बस बदलना ही, वक़्त की पहचान है..... ये भी माना अंधेरा घना छा गया वो जो छूटा तुझे याद फिर आ गया, अच्छी यादों को दिल में बसा कर रखो, फेंक दो जो तुम्हारी हसीं खा गया, तेरे आगे है कल का सबेरा नया, तेरा चलना ही मानव, तेरी शान है.....