रावण
कितने रावन है घूम रहे, देखो आज जमाने में। दुनिया सब कुछ भूल गई, पुतला एक जलाने में। था रावण, परनारी को जिसने, हरा था लेकिन छुआ नही था, साधु सज्जन सब लगे हुए है परनारी हथियाने में। कलयुग का ले नाम तो देखो, मानव कितना गिरने लगा, बूढ़े बच्चे सबकी लूटती, इज्जत आज जमाने मे। तेजाब हाथ मे लेकर फिरते, जो मिला न उसको मिटा देंगे, जो चाहा मिल जाये सबको, मुमकिन कहाँ जमाने मे। बस पुतलों के जलने भर से, नाश बदी का हो जाता, तो कोई भी पाप न होता, हम माहिर पुतले जलाने में। हे राम! जगो, सबके मन मे, छुपकर बैठे से क्या होगा? रावण का प्रतिकार करो, फिर छाया पूरे जमाने मे। बस दीप जला कर अंधियारो के, तूफान कैसे ये हारेंगे, प्रदीप्त ये तन मन करना होगा, तब होगी चमक जमाने मे।