कोई सूरत जुदाई की

मेरे महबूब मुझसे अब,
कोई सूरत जुदाई की,
बना न लेना दुनियां के,
किन्ही बहकावो में आकर।

मेरे दिल की सभी हसरत,
मैं तुझपर ही लुटा बैठा।
तेरी बस चाह बाकि है,
मैं दुनियां को भुला बैठा।
ये कैसे हो गया कि तू,
मुझे हर राह मिलती है।
कि तेरी एक हंसी को मैं,
तो हूँ दिल से लगा बैठा।
मेरे हमराह अलग मुझसे,
कोई मंजिल मोहब्बत की,
बना न लेना दुनियां के,
किन्ही बहकावो में आकर।

वो तेरी जुल्फों का मुख पर,
यूँ आ आ बिखर जाना।
वो नाज़ुक अँगुलियों से फिर,
तेरा जुल्फों को सुलझाना।
यहाँ सब लोग कहते है,
बहुत मगरूर तू है पर।
मैं दिल को तेरी चाहत का,
अजब सा रोग लगा बैठा।
मेरा दिल तोड़कर यूँ ही,
की राहें मोड़ कर के तुम,
चल न देना दुनिया के,
किन्हीं बहकावो में आकर।

कोई हसरत न टूटे, 
कोई अरमां न घायल हो।
मोहब्बत जिस्म न चाहे,
किसी की रूह पर कायल हो।
कि जिसकी चाह सच्ची है,
सुना वो बस उसी का है।
तेरी वो एक हँसी पर मैं,
मिटा तो सब मिटा बैठा।।
समझना प्यार है नेमत,
कही इस प्यार को मेरे
मिटा न देना दुनियां के,
किन्ही बहकावो में आकर।

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