इन नैनो से
इन नैनो से नैन लगा कर,
भूल ही जाऊं जग, कहता है,
मन घायल इन दो नयनो से,
तू पलको में हर पल रहता है
रात, चांदनी, रजनीगंधा,
दीप, पूर्णिमा, मावस भी तुम,
इन जुल्फों का खेल है ये सब,
जग को करती पागल भी तुम,
तेरी एक मुस्कान पर प्रियसी,
भूल ही जाऊं जग, कहता है,
देख तुझे जग दीवाना होता,
दोष मुझी पर एक रहता है।
मन था पत्थर, पारस सी तुम,
जीवन को चमकाने आये,
शांत था ये मन, भावों के तुम,
कई तूफान उठाने आये,
मैं तो बस इस प्रेम में सब कुछ
भूल ही जाऊं जग, कहता है,
लूट लो मुझको, अपना कर लो,
तुझमे ही तन मन रहता है।
मयखाना भी शरमाता है,
बहक बहक अक्सर जाता है,
सबको कुछ भी होश कहाँ जब,
जाम जाम से टकराता है,
इन होठो पर होठ लगा कर,
भूल ही जाऊं जग, कहता है,
मन तो पागल है क्या सोचे,
तू बस धड़कन में रहता है
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