तारों का मेला

मेहंदी लगाए, बिंदिया सजाए,
हाथों में चूड़ी, कंगन, नज़रे झुकाए,
घर में हुआ है मेरे तारों का मेला,
आंगन में उतरी गोरी, घूंघट गिराए।

तन का ये मंदिर, मन एक मूरत,
जिसमे बसी है तेरी ही सूरत,
आंगन ये  गोकुल, मन राधिका सा,
कान्हा सी तुम और, मैं साधिका सा।

मुझे एक बंसी सी, आवाज तो दो,
जिसे गाये जीवन बस वो राग तो दो,
मुझे कोई चाहत का अहसास न हो,
मुझे बाद तेरे कोई प्यास न हो।

हो सांसो की वीणा, हो अंगुली तुम्हारी,
तेरा गीत धड़कन ये, गाए हमारी,
मेरी प्यास समझो, ये अहसास समझो,
मेरी आँख और मेरे अंदाज समझो।

मुश्किल बहुत, तुमको ये सब बताना,
सांसें तुम्हें तो चाहें, दिल में बसाना,
मेरी आस, आहों की तुम ही सदा हो,
तुम ही हो सजदा तुम ही खुदा हो।

हाँ ये भी सच है तेरे लायक नही मैं,
तूँ गीत वो है जिसका गायक नही मैं,
मैं चाहता हूँ ये भी, कम कुछ कहाँ है,
और बात है ये तेरी चाहत नही मैं।

तुम ही कहो कैसे चाहत को अपनी,
मैं रोक लूँ दिल की आहट को अपनी,
तुम ही तो हो एक मंजिल हमारी,
कैसे बिसराऊँ मैं इस राहत को अपनी।

कैसे न तेरी ये यादों ने गाये,
कैसे कहो मन, मेरा मान जाए।
कैसे हो पूरे मन के सारे ये अरमान,
देखो, जो देखे तुमको, चंदा लजाये।

मेहंदी लगाए, बिंदिया सजाए,
हाथों में चूड़ी, कंगन नज़रे झुकाए,
घर मे हुआ है मेरे तारों का मेला,
आंगन में उतरी गोरी, घूंघट गिराए।

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