कब से मन पर तुम छाए हो (e)
कब से मन पर तुम छाए हो,
अब गीत मिलन के गा जाओ,
कब से तेरी प्रीत का प्यासा हूँ,
कुछ प्रेम सुधा बरसा जाओ।
जबसे ये प्रीत मेरी जागी,
अब दिल को कोई नहीं जंचता,
तेरे होने की चाहत पर,
अब कोई रंग नहीं फबता,
कब तक दिल को यूं समझाऊं,
तुम खुद आकर समझा जाओ।
कब से मन पर तुम छाए हो,
अब गीत मिलन के गा जाओ।
महबूब हो मेरे या तुम बस,
यूं ही कोई स्वांग रचाते हो,
क्यों क्षण भर यूं आकर के तुम,
जन्मों की प्यास बढ़ाते हो,
क्या प्रीत में मेरी खोट कोई,
गर है तो बस ठुकरा जाओ,
कब से मन पर तुम छाए हो,
अब गीत मिलन के गा जाओ।
तुमको पाने का स्वार्थ नही,
तुमको अर्पण की चाहत है,
तुमसे कुछ भी पा लेना क्या,
तुमको सब देना राहत है,
तन मन अर्पण है तुमको ये,
तुम आओ और अपना जाओ
कब से मन पर तुम छाए हो,
अब गीत मिलन के गा जाओ।
ebook published अभिव्यक्ति सांझा काव्य संग्रह
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